अब तक आपने पढ़ा सनी के आँसू की कुछ बूंदे एक बालक के गालों पर जा टपकी थी। बालक ने सनी की ओर देखा और उसे एहसास हुआ की सनी किसी वजह से रो रहा है। बालक ने सनी से बात की और पता लगाने का कोसिस करने लगा की आखिर सनी क्यो रो रहा था। बालक कुछ पल के लिए सनी के कमरे में आया था। वही से सनी का उसका नाम पता चला। बालक अपने घर जा चुका है। सनी अब भी बालक के बारे में सोंच रहा है। आयुष के बारे में सोचकर सनी कभी खुश रो रहा है तो कभी उदास। और अब आगे..........
थोड़ी देर पहले ऐसा लग रहा था जैसे बहुत कुछ है। कितनी चंचलता थी कितना खुशी था कितना अनुराग था।कुछ समय पहले ऐसा लग रहा था की कोई तो है। और अभी कितना सन्नाटा है। कितनी शांती है यहाँ। है कौन यहाँ घर की चार दीवारे छत और सनी। और कुछ भी तो नहीं है। न वो अपनापन है न वो खुशी, न वो चंचलता है और न ही वो अनुराग। है तो बस खालीपन। है तो बस अकेलापन। इसके सिबा और कुछ भी तो नहीं है। रैह-रैह कर सनी का मन विचलित सा हो जा रहा था। एक पल में मन करता की उठे और जाकर आयुष के पास बैठ जाए और घंटो बाते करते रहे। फिर सोचता एक अजनबी को किसी के घर यू ही चले जाना ठिक नहीं है। अब सनी पहले से ज्यादा परेशान और बेचैन हो गया था। रैह-रैह कर उसका मन विचलित हो उठता था। उसे बड़ी बेचैनी होने लगी थी। अपने बिस्तर पर पड़ा-पड़ा मोबाइल में कुछ छेड़ छाड़ कर रहा था। लेकिन आज उसका मन मोबाइल छेड़ते हुए भी नहीं लग रहा था। रैह-रैह कर उसे आयुष की छवि ही याद आ रही थी।
"इंसान कैसा भी हो चाहे वो गलत रास्ते पर भी क्यो न हो प्रेम उसमें बदलाव ला ही देता है। यह प्रेम ही तो है जो बूड़े से बूड़ा इंसान को अच्छा बनने पर मजबूर कर देता है। और यह प्रेम कैसा भी हो सकता है किसी भी प्रकार का हो सकता है। चाहे वो पुत्र प्रेम हो चाहे दोस्ती का प्यार हो या फिर किसी और प्रकार का प्यार हो। प्यार में वो ताकत है जो गलत रास्ते पर चल रहे इंसान को भी सही रास्ते पर ले आता है। आयुष की वजह से सनी में बदलाव की उम्मीद जगी है। और शायद उसमें बदलाव भी होने लगा है।"
बेचैन सनी अपने कमरे से बाहर निकल आया और बालकोनी में जाकर खड़ा हो गया। लेकिन आज बालकोनी में भी उसका मन नहीं लग रहा था। कुछ पल वो बालकोनी में रुका और फिर नीचे उत्तर आया। नीचे आकर सनी सड़क पर इधर उधर टहलने लगा। वो सख्स जो कभी अपने कमरे से बाहर निकलना पसंद नहीं करता था। जो गरज पड़ने पर ही क्षण दो क्षण बाहर आया करता था। आज वो सख्स बाहर निकल आया था और सड़क पर टहल रहे था। सनी सड़क पर टहल ही रह था की तभी उसका नज़र उस दस साल के बालक पर पड़ा जो की उसके मकान के ठिक नीचे पानी का प्लांट चलाता था। बालक सनी को देखकर उसके पास चला आया और उससे बाते करने लगा। तुम यहाँ पर नए हो क्या पहले कभी नहीं देखा तुम्हें यहाँ पर बालक ने सनी के पास आते ही कहा। सड़क के ठीक किनारे पर एक मारुति कार खड़ी थी। नया क्या हूँ हाँ इस जगह पर नया आया हूँ पर दिल्ली मेरे लिए बिल्कुल भी नया नहीं है। मेरा बराबर यहाँ आना जाना लगा रैहता है। सनी ने कार में अपनी पीठ टिकाते हुए कहा। क्या मतलब तुम पहले भी दिल्ली आ चुके हो या फिर तुम दिल्ली में ही कही रैहते थे। वो बालक भी आकर सनी के ठीक बगल में खड़ा हो गया। उस बालक ने भी कार में अपनी पीठ ठिका दी। और बड़े ही मासूमियत के साथ सनी को देखने लगा। रैहता तो नहीं हूँ बस मेरा आना जाना लगा रैहता है। सनी ने बड़े ही इत्मीनान के साथ कहा। उसके कैहने से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मानो दिल्ली से उसका कोई पुराना संबंध है या फिर दिल्ली ही उसका घर संसार है। तुम कही नौकरी करते हो क्या उस बालक ने बड़ी ही मासूमियत के साथ सनी से सवाल किया। हाँ कुछ ऐसा ही समझ लो कैहते हुए सनी बालक की तरफ तीक्ष्ण नज़रों से देखा। बालक का चेहरा देखते हुए सनी कुछ सोच रहा था। बालक ने भी कुछ बोलना उचित नहीं समझा। सनी अब भी बालक की ओर देख रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था की वो किसी बात को लेकर अपने दिल में तस्सली कर रहा हो। तुम यहाँ काम करते हो क्या कुछ ही पल बाद चुप्पी को तोड़ते हुए सनी ने उस बालक से सवाल किया। नहीं मैं यहाँ काम नहीं करता ये अपना ही प्लांट है। बालक ने कुछ इस कदर जबाब दिया जैसे वो अंदर से असहज और डर हुआ हो। डरो मत घबराओ नहीं मैं कोई पुलिसवाला नहीं हूँ हाँ मैं जो पूछ रहा हूँ चुपचाप उसका जबाब देते जाओ। सनी ने बालक से इस कदर कहा जैसे कोई शिक्षक अपने क्षात्र को डांटकर समझाता है। इतने में ही आयुष भी अपनें घर से निकल आया था। टहलते-टहलते वो सनी के पास से गुजरा। आयुष ने सनी को उस बालक से बात करते हुए देखा। आयुष को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था की उनदोनो को साथ देखकर वो चिढ़ सा गया हो।आयुष ने तीक्ष्ण नज़रों से सनी को देखा और आगे की ओर बढ़ गया। वो बालक और सनी अब भी कार से पीठ टिकाए खड़े थे। दोनों में बातें हो रही थी। वैसे तुम्हारा नाम क्या है सनी ने बालक से पूछा। मेरा नाम अमित है तुम्हारा क्या नाम है बालक ने अपना जबाब देते हुए सनी से तुरंत ही पूछा। मेरा नाम जानकर तुम क्या करोगे वैसे एक बात बताओ तुम पढ़ते नहीं हो क्या। नाम बाली बात को टालते हुए सनी ने अमित से पूछा। पढ़ता हूँ दूसरी क्लास में। नाम नहीं बताना है तो मत बताओ ऐसे क्यों बोल रहे हो। अपना जबाब देते हुए अमित ने कहा। अमित की बातों का उसपर कोई असर ही नहीं हुआ। ऐसा लग रहा था मानो उसके पास कोई करुणा ही नहीं उसके पास कोई दिल ही नही कोई दया ही न हो। जो सख्स आयुष के प्रति एकदम नर्मदिल और कोमल था वो अमित के लिए इतना शख्त कैसे हो सकता था। जरूर कोई बात थी जो सनी सबसे छुपा रहा था।
आखिर ऐसी कौन सी बात थी जो सनी सबसे छुपा रहा था। अमित के प्रति सनी इतनी शख्ती से क्यों बात कर रहा था। आयुष के लिए उसके मन में दया और करुणा क्यों था। आयुष ने तीक्ष्ण नज़रों से सनी को क्यों देखा था। क्या अमित के प्रति सनी नरम हो पाएगा। क्या आयुष के दिमाग में कुछ खुराफाती चल रहा है। आखिर क्या है ये सनी कोई बला या फिर कुछ और। और क्यों नहीं बताना चाहता वो अपने बारे में और अपना नाम। क्या होगा आगे जानने के लिए पढ़िए अगला भाग। और जरूर करे लेखक को फॉलो।
कहानी जारी रहेगी...................