अब तक आपने पढ़ा सनी अपनी आदत अनुसार देर तक ही सोता है। आज भी सनी घोड़े बेचकर सोया हुआ है। आयुष सनी के यहाँ आया है। आयुष सनी को जगा रहा है। सनी और आयुष दोनों साथ में किचेन में होते है। सनी चाय बना रहा है। चाय पीने के बाद सनी बाथरूम की ओर भागता है। आयुष सनी के कमरे में बैठा सनी का इंतज़ार कर रहा होता है। फ्रेस होने के बाद सनी अपने कमरे में आ जाता है। आयुष और सनी में बातें हो रही होती है। किसी बात पर सनी झुंझला जाता है। सनी के झुंझलाने से आयुष सहम जाता है। उसे इस तरह किसी ने नहीं डाँटा था। आयुष की आँखे डबडबा गई। आँसुओं से भड़ी हुई आँखे और उदास चेहरे के साथ आयुष कुछ पल वहीं बैठा रहा। और अब आगे.............
कुछ पल बाद सनी जब आयुष की तरफ मुड़ा तो आयुष की हालत को देखकर वो समझ गया था की उसके डाँटने से आयुष को अंदर तक चोट लगा है। सुनो तुम रो रहे हो क्या पगला इतनी छोटी सी बात पर कोई रोता है भला सनी ने आयुष की बालों में हाथ फिराते हुए कहा। आपने सर पे सनी का हाथ फिरते ही मन में जमा सारा अवसाद आँसुओं के साथ बैहने लगा। ये वही अवसाद आँसुओं के साथ बैहकर बाहर निकल रहा था जो अभी-अभी सनी के डाँटने से मन में जमा था। आयुष ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। रो क्यों रहे हो तुम मैंने मारा क्या तुम्हें बस जरा सा तो डाँटा था इतनी सी बात पर भी कोई रोता है क्या सनी आयुष को समझा रहा था। आयुष के तो आँसू रोके नहीं रुक रहे थे। पता ही नहीं चल रहा था की वो किस बात को सोंचकर इतना रो रहा था। सनी ने उसको डाँटा था वो इसलिए रो रहा था या फिर कुछ और बात थी कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। झरने की तरह उसकी आँखों से आँसू बैहती जा रही थी। गमछे से आँसू पोछते हुए सनी ने आयुष के सिर को अपने सीने से लगा लिया और उसे प्यार से समझाने लगा। तुम्हारी और मेरी दोस्ती संभव नहीं है कैहने के लिए तो मैंने कैह दिया था लेकिन हम दोस्त नहीं बन सकते। कहाँ मैं इतना बड़ा हूँ और तुम छोटे से नादान से बालक हो। तुम्हारी उम्र ही क्या होगी अभी मुश्किल से तुम दस या बारह साल के होगे जरा बताओ तो हम दोनों में दोस्ती कैसे संभव है। सनी प्यार से आयुष को समझा रहा था। सनी कुछ सोंचकर ही आयुष की ओर दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ा रहा था। अगर वो आयुष से दोस्ती कर भी लेता तो चार या पाँच दिन में ही वो गाँव लौट जाता फिर दो दोस्त आपस में बिछड़ ही जाते। उम्र का कोई लेना देना नहीं होता भइया जहाँ विचार मिल जाते है वहीं दोस्ती हो जाती है आयुष ने भराई हुई आवाज़ में कहा। ठीक है मैं मानता हूँ तुम्हारी बातों को लेकिन मैं क्या करूँ मैं मजबूर हूँ मैं तुमसे दोस्ती नहीं कर सकता मैं नहीं चाहता की दोस्ती होने के बाद हम दोनों बिछड़ जाए और तुम मुझें याद करके रोओ। तुम जानना चाहते थे न मेरे बारे में तो आज मैं सब कुछ बताऊँगा तुम्हें। सनी ने आयुष को समझाते हुए कहा। लेकिन नादान बालक आयुष कहाँ समझने वाला था वो तो बस सनी से दोस्ती का जिद पकड़े बैठा था। कभी-कभी हमारे साथ ऐसा भी होता है की हमें पसंद कुछ और होता है और मिलता कुछ और है। यहाँ सनी का भी पसंद कुछ और ही था और उसे मिल कुछ और रहा था। वो सब मैं कुछ नहीं जानता आप मुझें अपनें बारे में बताए या न बताए मुझें आपकी दोस्ती चाहिए बस। आयुष ने भन्नाते हुए कहा। ठीक है जब तुम यही चाहते हो तो यही होगा लेकिन उससे पहले तुम जान तो लो मेरे बारे में। मैं कौन हूँ कहाँ से आया हूँ यहाँ क्यूँ रैह रहा हूँ मेरा मकसद क्या है सनी ने आयुष से कहा। ठीक है आपकी मर्जी आप बताना चाहते है तो बता सकते है आयुष ने कहा। सनी ने अपने बारे में बताना शुरू किया। सुनो मेरा नाम सनी है मैं बिहार के एक छोटे से गाँव से यहाँ आया हूँ। हाँ मैं यहाँ नौकरी करने आया हूँ लेकिन फिलहाल मैं कोई नौकरी नहीं करता। यहाँ आकर मेरी जिंदगी गुलामो जैसी हो गई है इससे अच्छा तो मैं गाँव में ही था। नरक सी जिंदगी लगती है मेरी यहाँ पे कितना अच्छा गाँव में था मैं। कम से कम नहीं कमाता था तो सुख शांती से तो था वहाँ मैं। यहाँ आकर तो सुख शांति नींद चैन सब गायब सा हो गया है। गैरो की क्या बात करूँ मैं मुझें तो अपनों ने ही ठुकराया है वजह बस इतना सा है की मैं निकम्मा हूँ मेरे पास पैसे नहीं है। और इतनी भी जल्दी मैं लाख करोड़ नहीं कमा लूँगा पैसे कमाने में भी समय लगता है। कोई मुझें नहीं समझता कोई मेरी कद्र नहीं करता। अच्छा होता की मैं कवारा रैहता शादी करबाकर लोगों ने मेरे गले में ढोल बांध दिया है कभी इधर से बज रहा हूँ तो कभी उधर से बज रहा हूँ।
वो मेरी औरत है तो उसे तो मेरा कद्र करना चाहिए था लेकिन वो कभी मेरे साथ नरमी से पेश नहीं आती। वो मेरे साथ कुछ ऐसा बर्ताव करती है जैसे की मैं उसका कोई पालतू कुत्ता हूँ। किसी को मेरा कद्र ही नहीं है। इस फकीरी में जो मेरा साथ न दे वो रिश्ता सच्चा हो ही नहीं सकता। गरीबी में जो औरत अपने पति का हाथ छोड़ दे और अमीर होने पर साथ निभाने आए उस औरत से तो अच्छा एक बेश्या होगी। कम से कम हमें पता तो होता है कि बेश्या को सिर्फ पैसा प्रिय होता है। और पल दो पल दिल भी बहल जाता है। जिंदगी ने मुझें एक सबक सिखाई है दोस्त जहाँ में सब पैसों के पीछे भागता है। पैसों के बदौलत गैर भी अपना बन जाता है। और पैसा नहीं है तो अपनों का भी व्यवहार गैरो जैसा हो जाता है। कैहते-कैहते सनी गंभीर हो गया। अपनी बात कैहने के बाद सनी चुपचाप और शांत होकर बिस्तर के एक कोने में बैठ गया।
क्या होगा आगे क्या सनी अपने जीवन के बारे में और कुछ भी आयुष को बताएगा। क्या आयुष और सनी दोस्त बन पाएँगे। क्या सनी गाँव लौट जाएगा। क्या कुछ ही पल में दो दोस्त आपस में बिछड़ जाएँगे। क्या अमित सनी से दोस्ती कर पाएगा। गाँव में कैसा था सनी का जीवन। क्या आयुष की वजह से सनी में कोई नया बदलाव आएगा।
आखिर क्या फैसला लेगा सनी। जानने के लिए पढ़िए अगला भाग। और जरूर करे लेखक को फॉलो।
कहानी जारी रहेगी........................................