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परिंडे भाग-2

7 दिसम्बर 2024

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प्रिय पाठकों पिछले भाग में आपने पढ़ा एक सख्स जो अपनी जिंदगी से बहुत परेशान है। उसका नाम सनी है हाल ही पहले जो गाँव से शहर आया है। मकान के दूसरे मंज़िल पर सनी का कमरा है जहाँ एक बालकोनी भी है। बालकोनी में खड़ा होकर सनी नीचे आते-जाते लोगों को देखते रैहता है। सनी का दोस्त अमन भी गाँव से शहर आ गया है। बालकोनी में खड़ा सनी अमन से फ़ोन पर बात कर रहा है। नीचे से एक बच्चा सनी को देख रहा होता है। वो बच्चा सनी से कुछ पूछता है। सनी उस बच्चे को जबाब देता है। और अब आगे................

क्या हुआ कौन है अमन ने पूछा। अरे कुछ नहीं वो एक बच्चा है पानी का कारोबार करता है नीचे वही है सनी ने कहा। कितने उम्र का है कहीं वो रिंकू जैसा तो नहीं है अमन ने पूछा। अरे नहीं-नहीं देखने से ऐसा नहीं लगता। शायद बारह बर्ष का होगा सनी ने कहा। बारह नहीं दस बर्ष का हूँ नीचे से लड़के ने जबाब दिया। इतने कम उम्र में काम कर रहे हो चाइल्ड लेवर वाला पकड़कर नहीं ले जाता तुमको पाप कहाँ है तुम्हारे सनी ने पूछा। पापा के नाम पर बच्चे ने कोई जबाब नहीं दिया। पढ़ते नहीं हो क्या क्यों काम करते हो यहाँ पर सनी ने फिर से पूछा। मैं काम नहीं करता ये अपना खुद का प्लान्ट है बच्चे ने जबाब दिया। खुद का ही है न सनी ने फिर से पूछा। हाँ-हाँ खुद का है बच्चे ने कहा। उसके बाद बच्चे को कुछ बोले बिना ही सनी अमन से बात करने लगा। देर तक दोनों की बाते चलती रही फिर दोनों की बात खत्म हुई। बातें खत्म करके सनी फिर से कमरे के अंदर चला गया।
गाँव से शहर आए हुए दोनों को ज्यादा वक्त नहीं हुआ था। इन दोनों के अलावा इनका एक और दोस्त गाँव से शहर आ गया था। वह भी इनलोगों से चालीस पचास किलोमीटर दूर था। इनलोगों का एक और दोस्त था जिसका नाम सुमन है। सुमन घर से भागकर यहाँ शहर आ गया था। कभी-कभी दोनों की सुमन से फ़ोन पर बातें हो जाती थी। इनलोगों के गाँव से शहर आए हुए लगभग दस से बारह दिन हुए थे। अमन और सुमन को तो काम मिल गया था लेकिन सनी अभी भी बेरोजगार बैठा था। उसके दिमाग में क्या खिचड़ी पक रहा था ये तो वो ही जाने। क्या करे बेचारा फ़ोन से बस काम के बारे में पता ही कर सकता है और कुछ तो कर नहीं सकता। कभी खाना खाता है कभी नहीं भी खाता बस चुपचाप अपने कमरे के अंदर पड़ा रैहता है। कमरे से बालकोनी, बालकोनी से कमरा कभी-कभी मर्ज़ी हुआ तो नीचे से गुटखा ले आया बस यही जिंदगी है उसकी। उसको गुटखा लाना होता है तभी वो कभी-कभी नीचे जाता है अन्यथा नहीं। बस उसकी दुनिया बालकोनी तक ही सीमित है। हर रोज की तरह एक और दिन बीत गया था। पहले की तरह ही सनी शाम के समय बालकोनी में खड़ा नीचे आते-जाते लोगो को देख रहा था।
आज उसे दिखा एक अनोखा और अद्भुत बच्चा। वो बच्चा वाकई कमाल का था। पैहली नज़र जो भी उसे देखता वो निश्चित ही मोहित हो जाता। दूधिया गोराई गुलाबी पतले होठ और लंबा खड़ा नाक उसके सुंदरता को चार चाँद लगाए जा रहा था। सनी जब पैहली बार उस बच्चे को देखा तो वो भी मोहित हो गया। सनी को उस बच्चे से पुत्र प्रेम हो गया। उसे देखते हुए सनी सोंचने लगा, कितना कमाल का है ये बच्चा। कितना चंचल और सुंदर है। नादान और खूबसूरत है। काश की इसी के जैसा मेरा भी एक बेटा होता। इसी की तरह शरारत और नादानी करता फिरता। ऐसे ही चाँद की तरह खूबसूरत होता। मैं जब भी उसे देखता तो मैहसुस करता की साक्षात आसमान से चाँद जमीन पर उतर आया है। उस बच्चे को और उसकी चंचलता को देखते हुए सनी पुत्र स्नेह में डूब गया। धीरे-धीरे समय गुजरता गया शाम ढल गई और रात भी हो गया। वो चंचल बच्चा सनी की नज़रों से भी दूर हो गया। हर रोज़ की तरह सनी खाना खाकर सो गया। उसका तो बस एक ही जिंदगानी था। बस बालकोनी तक ही सीमित उसका कहानी था। अगले दिन फिर से सनी बालकोनी में खड़ा था। आज शायद वो थोड़ा उदास लग रहा था। उसकी नज़रे किसी को ढूंढ रही थी। उसकी नज़रें जरूर ही उस चंचल बच्चे को ढूंढ रही थी। पर वो बच्चा सनी को कहीं दिख नहीं रहा था। सनी कभी नीचे पानी का द्राम भरते हुए बच्चे को देखता तो कभी आते-जाते लोगों को। कभी-कभी देर तक मकान मालिक के दरवाज़े पर टकटकी लगाए रैहता क्योंकि वो उस बच्चे को मकान मालिक के ही दरवाज़े पर देखा था। निश्चित ही वो उसी घर में रैहता है या हो सकता है की वो मकान मालिक का ही बेटा हो। आज सनी जरा बेचैन सा था क्योंकि बालकोनी में खड़े-खड़े उसे बहुत देर हो चुका था और वो बच्चा अब तक उसे नहीं दिखा था। ऐसा लग रहा था की आज उसका इक्षा पूरा नहीं होगा। और हकीकत में ऐसा ही हुआ। बेचारा अंत में थक हारकर कमरे के अंदर चला गया।
कमरे में भी सनी उसी लड़के के बारे में सोंच रहा था। पता नहीं यह कैसा रिश्ता था कैसा लगाव था की रह-रह कर सनी को उसी लड़के का ख्याल आता था। सनी अपना डायरी निकाला और उसमें कुछ लिखा। इसी तरह एक और दिन भी बीत गया। एक नई सुबह और नई ताज़गी के साथ सनी फिर से बालकोनी में खड़ा था। सुबह के लगभग सात बज रहे थे। सूरज की हल्की-हल्की किरणें धरती का चरण स्पर्श कर रही थी। सनी बालकोनी में खड़ा नई सुबह और नई ताज़गी का आनंद ले रहा था। ऐसी सुबह वो कभी-कभी ही देखता है। क्योंकि वो रात को देर से सोता है जिस कारण से वो नौ बजे के बाद ही बिस्तर छोड़ता है। आज उसकी नींद जल्दी खुल गई थी। जिसके कारण वो सुबह के ताज़गी का आनंद ले पा रहा था। हल्की-हल्की ठंडी-ठंडी हवा भी चल रही थी जिससे ऐसा मैहसुस हो रहा था की प्रकृति के काफी करीब हूँ। आज सनी को काफी आनंद आ रहा था। आज वो आते-जाते लोगों को भी एक अलग ही नज़रिए से देख रहा था। अचानक से उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।
कहानी जारी रहेगी..................................

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रचनाएँ
Parindey
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अपने गर्भबति पत्नी को छोड़कर सनी गाँव से सहर आ गया था। सनी पैसे कमाने के लिए गाँव छोड़कर शहर तो आ गया था लेकिन यहाँ उसे कोई नौकरी नहीं मिली थी। यहाँ सनी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। वो काफी अकेला और उदास रैहता था। इसी बीच आयुष नाम के एक लड़के से उसको दोस्ती हो जाता है। आयुष सनी के साथ काफी समय बीतता है और वो सनी को एक बाप की तरह प्यार करने लगता है। जब सनी गाँव लौट रहा होता है तब आयुष उसके साथ कुछ ऐसा करता है जिसकी सनी से कल्पना भी नहीं की थी। कैसे आयुष ने सनी के जीवन में नई रौशनी डाली, और क्या उसकी मित्रता सनी को एक नया उद्देश्य देने में सफल होगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए "Parindey"
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