प्रिय पाठकों पिछले भाग में अपनें पढ़ा एक सख्स जिसका नाम सनी है। वो अपनी जिंदगी से बहुत परेशान है। हाल ही पहले सनी गाँव से शहर आया है। इसके अलावा उसका दो दोस्त अमन और सुमन भी गाँव से शहर आ गया है। शहर में सनी का बिल्कुल भी मन नहीं लगता। वो घर से बाहर भी नहीं निकलता। कभी-कभी वो बालकोनी में हवा खाने आ जाता है। सुबह का वक़्त है सनी बालकोनी में खड़ा नई सुबह और नई ताज़गी का आनंद ले रहा है। उसकी नज़र किसी को ढूंढ रही है। अचानक से सनी की नज़रों ने कुछ देख और उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। और अब आगे............
उसे फिर से वो बच्चा दिखा। बच्चे को देखते हुए सनी फिर से पुत्र स्नेह में डूब गया। चुपचाप वो उस बच्चे की सारी हरकतों को देख रहा था। आज एक बात तो पक्का हो गया था की वो मकान मालिक के घर में ही रैहता था। हो सकता है वो कोई किरायेदार होगा या फिर वो मकान मालिक का ही बेटा होगा। अभी यह पता नही चला था की वह कौन है। अभी बस इतना पता चला था की वो मकान मालिक के घर में ही रैहता है। सनी देर तक उस बच्चे को देखता रहा फिर देखते ही देखते वो बच्चा सनी के आँखों के सामने से ओझल हो गया। सनी भी अपने कमरे के अंदर चला गया। खाना पीना खाकर आराम करने के लिए लेट गया। सनी अभी भी उस बच्चे के बारे में सोंच रहा था। काश की इसी तरह मेरा भी बेटा होता। सनी बाप बनने वाला था। एक पल के लिए उसे गाँव में रह रही बीबी का भी ख्याल आता। लेकिन उस बालक के प्रति सनी इतना मोहित हो चुका था की वो बीबी को भी जरूरी नहीं समझता। ये कैसा रिश्ता था कैसा लगाव था। पता नहीं यह कैसा आकर्षण था। अब तो सनी का रोज का आदत हो गया था वो हर रोज़ उस बच्चे को एक नज़र जरूर देखता। अगर वो बच्चा उसे न दिखे तो वो बेचैन सा हो जाता था। काफी दिनों के बाद सनी एक दिन बाहर निकला था। अपनें ही घर के निकट सड़क पर वह इधर से उधर टहल रहा था। धीरे-धीरे सनी में बदलाव आने लगा था। जो कभी अपनें कमरें से बाहर नहीं निकला आज वो घर के बाहर सड़क पर टहल रहा था। और ये सब शायद उस बच्चे की वजह से था। जिसके दिल से दया और करुणा खत्म हो चुका था जो सनी पत्थर बन चुका था अब वो पिघलकर मोम बन रहा था। दया और करुणा के भाव उसके दिल में पनप उठे थे। एक बुरा इंसान धीरे-धीरे अच्छा बनने लगा था। शायद यह उसके नई जिंदगी का शुरआत था या शायद कोई साज़िश। पता नहीं उस सनी को आज तक कोई समझ नहीं पाया था। हर शाम सड़क पर टहलना अब सनी के लिए ये हर रोज का कहानी था। दिन बीत रहे थे और धीरे-धीरे सनी का लोगों से भी जान पहचान बढ़ रहा था। एक दिन की बात है सुबह के लगभग नौ बज रहे थे सनी सोकर उठा ही था। सनी बालकोनी में आकर खड़ा हो गया। धूप भी सर तक खिल आई थी। सामने ही छत पर वो बच्चा भी था जिससे सनी पुत्र प्रेम करता था। सनी उस बच्चे को ही देख रहा था। उस बच्चे को कुछ भी पता नहीं था की सनी कब से उसे देखते रैहता है और क्यों देखते रैहता है। वो छोटा बालक छत पर फूलों को पानी दे रहा था। अचानक से उसकी नज़र सनी पर पड़ी। उस बालक ने सनी को आश्चर्यता से देखा। यहाँ के माहौल में ढलने में जरा सा वक़्त लगेगा। पहले की तरह सवरने में जरा सा वक़्त लगेगा। मैं परदेसी हूँ यहाँ यारों। लोगों के बीच घुलने मिलने में जरा सा वक़्त लगेगा। बालक को अपनी ओर आश्चर्यता से देखते हुए सनी ने शायरी बोला। बालक ने भी कोई जबाब नहीं दिया।
बिना मुस्कुराए बिना कोई जबाब दिए वो पौधों को पानी देने लगा। सनी लगातार उसको देखता रहा और न जाने कैसी-कैसी कल्पनाओं में डूबता गया। अब सनी का हर रोज़ का यह आदत बन गया था। सनी उस बालक का हर छोटी बड़ी हरकतों पर नज़र रखने लगा था। वो बालक कब घर से बाहर निकलता है कब घर के अंदर जाता है कब घूमने और खेलने जाता है। उस बालक के कितने दोस्त है और कौन-कौन से है हर छोटी बड़ी बात सनी को पता था। अब तो सनी को यहाँ तक भी पता था की कब वो बालक सोता है और कब जागता है। शायद सनी मन ही मन कुछ सोंच रहा था। जरूर उस बालक को लेकर सनी के मन में कुछ उल्टा सीधा चल रहा था। ऐसा प्रतीत होता था की जल्द ही सनी कोई उल्टा सीधा हरकत करने वाला है। आखिर ऐसा क्या चल रहा था सनी के मन में की वो उस बालक के पीछे ही पड़ गया था। आखिर क्यों रख रहा था सनी उस बालक का पल-पल का खबर। पता नहीं सनी आगे क्या करने वाला था उस बालक के साथ। एक दिन की बात है दोपहर को सनी अपने बालकोनी में खड़ा था तभी वो बालक आया और दरवाजा खटखटाने लगा। आंटी-आंटी की आवाज़ लगाता हुआ न जाने कब से वो बालक दरवाजा खटखटाए जा रहा था। सनी भी बहुत देर से उसी बालक को देखे जा रहा था। सनी का एक मन हुआ की वो उस बालक को बोले की दरवाजा खटखटाने से कोई फायदा नहीं है। वो बेल बजाए। आंटी घर पर नहीं है। और उनकी दोनों लड़कियाँ टीवी देख रही है जिसकी वजह से वो दरवाज़े की खटखटाहट की आवाज़ नहीं सुन पा रही है। फिर पता नहीं सनी ने क्या सोचकर उस बालक को कुछ नहीं कहा। वो बस चुपचाप उसे देखता ही रहा। सब सनी से रहा नहीं गया तो वो नीचे जाकर दरवाजा खुलबाया। दरवाजा खुलने के बाद सनी ने करीब से उस बालक को देखा और गैहरी कल्पनाओं में डूब गया। सनी कभी उसे बाइक पर बैठकर घुमाता तो कभी उसके लिए आइसक्रीम खरीदता।
कहानी जारी रहेगी......................