कुछ अनाम पर्यावरण प्रेमी!
एक बार एक सज्जन पहाडों में चढाई
कर रहे थे| उनके पास उनका भारी थैला था| थके माँदे बड़ी मुश्किल से एक एक
कदम चढ रहे थे| तभी उनके पास से एक छोटी लड़की गुजरी| उसने अपने छोटे भाई को
कन्धे पर उठाया था और बड़ी सरलता से आगे बढ़ रही थी| इन सज्जन को बहुत
आश्चर्य हुआ| कैसे यह लड़की भाई का बोझ ले कर चल रही है जब कि मुझे तो एक
थैला ले जाना दुभर हो रहा है? उन्होने लड़की से पूछा तो उसने बताया कि यह
मेरे लिए बोझ नही है, मेरा भाई है| उसका भला कैसे बोझ होगा? तब उनके समझ
में आया| यह कहानि बिल्कुल अर्थपूर्ण है| जब तक हम किसी बात को पराया समझते
हैं, तब तक वह हमारे लिए बोझ होता है, कर्तव्य होता है| लेकिन जब उसी बात
को हम अपनाते हैं; अपना मानते हैं, तो वह सरल और सहज होता है|
ठीक यही बात पर्यावरण के सम्बन्ध
में भी हैं| आज हम कितना समझते हैं कि पर्यावरण की रक्षा करना बड़ा कठिन
हैं; बहुत मुश्किल काम हैं; लेकिन हमारे बहुत नजदीक ऐसे उदाहरण मिलते हैं
जिससे विश्वास मिलता है कि पर्यावरण की रक्षा करना उतनी भी कठिन बात नही
है| जैसे कई लोग आज मानते हैं- कई किसानों की यह धारणा है कि गाय को
संभलना; गाय का पालन करना आज बहुत कठिन हो गया है| आज गौपालन 'viable' नही
हैं| आज वह एक 'asset' नही, बल्की एक 'liability' है| लेकिन थोड़ी आँखें
खुली रखी तो हमे दिखाई देता है कि यह अपरिहार्य नही है| आज भी ऐसे घूमन्तू
समुदाय (nomadic tribes) हैं जो स्वयं बुरी स्थिति में होने के बावजूद
गायों को पालते हैं| उनके लिए गाय कोई वस्तु नही; उनका स्वयं का ही एक अंग
है| कुदरत से ताल्लुक रखनेवाले समुदायों में यह भी देखा जाता हैं कि चाहे
उनके खाने के लिए कुछ हो ना हो, जो भी अतिथि उनके पास जाएगा, भूखा नही
जाएगा| इन्सान तो दूर, वे कुत्ते को भी भूखा नही रखेंगे| अपनी सम्पदा उसके
साथ भी शेअर करेंगे|
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