नई दिल्लीः पंजाब पुलिस की महिला सब इंस्पेक्टर मंजीत ने आज सात फेरे लिए। वो भी अपनी ही सहेली के साथ। मंजीत ने ऐसी शादी रचाकर न केवल महकमे बल्कि चिर-परिचितों को भी चौंका दिया। जालंधर के पुराने इलाके पक्का बाग के मंदिर में धूम-धाम से शादी हुई। खास बात रही कि दोनों लड़कियों की समलैंगिक शादी को परिवार वालों का भी साथ मिला। इस घटना ने एक बार फिर ऐसे रिश्तों और शादियों पर बहस छेड़ दी है।
भारत में समलैंगिक शादी का पहला मामला पिछले साल आया था। जब पश्चिम बंगाल के 30 वर्षीय घटक अपने दोस्त संजय से शादी करने के लिए इस कदर उतावले थे कि सर्जरी कराकर लड़की बन गए। पिछले साल कोलकाता में पारंपरिक बंगाली रीति-रिवाज से शादी रचाई थी। भारतीय मान्यताओं के विपरीत जब इस शादी को कानूनी मान्यता मिली तो मामला पूरे देश में चर्चा-ए-खास रहा। इससे और पहले झांकें तो कुछ और शादियां हो चुकी हैं। अमेरिका के कैलिफोर्निया में भारतीय मूल के दो युवकों कार्तिक और संदीप ने शादी की थी।
क्या कहता है भारतीय कानून
आईपीसी की धारा 377 के अनुसार यदि कोई वयस्क स्वेच्छा से किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित करता है तो, वह आजीवन कारावास या 10 वर्ष और जुर्माने से भी दंडित हो सकता है।
उदारवादी वामपंथी टाइप के लोगों से संबंधित नाज फाउंडेशन ने आईपीसी की इस धारा से संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के उल्लंघन और मौलिक अधिकारों के हनन का हवाला देते दिल्ली हाई कोर्ट में इसे खत्म धारा 377 को खत्म करने की मांग की थी। जिस पर
2 जुलाई 2009 को दिल्ली हाईकोर्ट ने वयस्कों द्वारा आपसी रजामंदी से स्थापित किए जाने वाले यौन संबंधों के संदर्भ में धारा 377 को असंवैधानिक घोषित कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने पलटा फैसला-माना अपराध
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय समाज की जटिलताओं, सामाजिक मान्यताओं और परिवेश को ध्यान में रखते हुए समलैंगिकता को जायज ठहराने वाले दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को अवैध ठहराया।
सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 को कहा कि आइपीसी की धारा 377 को हटाने का अधिकार संसद के पास है और जब तक यह लागू है तब तक इसे अवैध नहीं ठहराया जा सकता है। दरअसल औपनिवेशिक काल के दौरान 1860 में बना यह कानून अप्राकृतिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखता है।
भारत की कुल जनसंख्या में समलैंगिकों की संख्या 0.2 फीसदी है। केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट को दी गई जानकारी के अनुसार भारत में समलैंगिकों की संख्या लगभग 20 लाख है जिनमें से 7 फीसदी (लगभग 1.75 लाख) एचआईवी से संक्रमित है।