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माँ, मुझे डर लगता है (माँ-बेटी का संवाद)

30 अक्टूबर 2022

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**माँ, मुझे डर लगता है**  

*(माँ-बेटी का संवाद)*  


बिटिया बोली माँ से, धीरे-धीरे कर कह,  

"माँ, मुझे डर लगता है, ये दुनिया है कैसी वह?"  

दुख भरी हैं कहानियाँ, जो रोज़ सुनाई जातीं,  

क्या यही है सच माँ, या कहीं कोई बात छुपाई जाती?


माँ ने बिटिया को पास बुलाया, गले से लगाया,  

नन्हें हाथों को पकड़कर, प्यार से उसे समझाया।  

"सच कहूं बेटी, ये दुनिया कुछ ऐसी ही है,  

पर डर के नहीं जीते, हमें हिम्मत से चलना है।"


बिटिया ने आँसू भरी आँखों से कहा फिर,  

"पर माँ, लड़कियाँ क्यों हैं असुरक्षित हर दिन?"  

"क्यों नहीं कर सकते हम आज़ादी से सफर,  

क्यों सिखाया जाता है हमें ही सहन करना हर जहर?"


माँ ने गहरी सांस भरी, आँखों में चिंगारी,  

"बेटी, तुम्हारे सवालों में सच्चाई भारी।  

लेकिन याद रखना, कमजोर नहीं हो तुम,  

हक की लड़ाई में हर कदम चलोगी तुम।"


बेटी ने फिर सवाल किया, चिंता में घिरकर,  

"पर माँ, यह समाज क्यों देता है हमें ही डर?  

क्यों चाहिए हमें सहमति हर बात में,  

क्यों रोकते हैं हमें उन्नति की हर रात में?"


माँ ने मुस्कुराकर कहा, "बिटिया मेरी प्यारी,  

समाज का यह रूप बना है बहुत सारी,  

पर याद रखना, हर दिन नहीं एक सा होता,  

जो बदलना चाहे, वो नई दिशा में ही सोता।"


"तुम हो शक्ति, तुम हो नारी, तुम ही हो सब कुछ,  

तुमसे है संसार, तुम्हीं से है हर रूप।  

तुम्हें डरना नहीं है, बल्कि आगे बढ़ना है,  

दुनिया की हर बुराई से तुम्हें लड़ना है।"


बिटिया ने फिर पूछा, आँखों में सपने सजाए,  

"माँ, क्या मैं भी कर सकती हूँ बड़े-बड़े काम,  

क्या समाज मुझे देगा मेरा सही मुकाम?"  

माँ ने माथे पर चूमा, विश्वास से भरी,  

"तुम कर सकती हो सब, दुनिया होगी तुम्हारी।"


"बिटिया, हर कदम तुम्हारे साहस की निशानी होगी,  

तुम्हारी उड़ान में कोई रुकावट नहीं होगी।  

समाज की जंजीरों को तोड़ना है तुम्हें,  

अपने सपनों को सच में बदलना है तुम्हें।"


"जब कोई कहे 'तुम नहीं कर सकती ये काम',  

तुम अपनी आवाज़ से बदल देना उनका धाम।  

हर वो बंधन, जो तुम पर डाला जाएगा,  

तुम्हारी हिम्मत से ही समाज संभल पाएगा।"


बिटिया ने माँ की बातों में पाया सहारा,  

अब उसे डर नहीं, हिम्मत थी अपार सारा।  

"माँ, अब मैं नहीं डरूंगी किसी से,  

तुम्हारे शब्द हैं मेरी ताकत, हर घड़ी में।"


माँ ने हँसकर कहा, "बिटिया, यही है असली बात,  

डर नहीं, हिम्मत से ही कटेगी ये रात।  

तुम बनोगी मिसाल, दुनिया को दिखलाओगी,  

तुम्हारी ताकत से ही नई सुबह लाओगी।"


बिटिया ने अब जोश भरे दिल से कहा,  

"माँ, मैं अब डर से नहीं, साहस से जीऊँगी,  

दुनिया में नई इबारत खुद से लिखूँगी।  

तुमने जो दिया है, वही मेरा है रस्ता,  

अब कोई नहीं रोक सकेगा मेरा हौसला।"


माँ ने सिर पर हाथ रखा, आशीर्वाद भरा,  

"बिटिया, तेरा भविष्य है उज्ज्वल, सुनहरा।  

डर को हराकर जब तुम जीतोगी सब,  

तुम्हारे कदमों से ही खुलेगा नया संसार, कल का ढब।"


समाज का परिदृश्य बदलने को तैयार है,  

नारी की शक्ति में आज भी वही भार है।  

बिटिया के साहस से अब होगा नया सवेरा,  

डर नहीं, हिम्मत से जीना है अब सारा बसेरा।  


**समाप्त**  


यह कविता माँ-बेटी के बीच उस संवाद को दर्शाती है जिसमें समाज की बुराइयों और असुरक्षाओं के बावजूद हिम्मत और साहस के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा दी जाती है। माँ बेटी को डर से मुक्त कर, उसे दुनिया में अपने हक और अधिकारों के लिए लड़ने की शक्ति देती है।

Geetanjali polai "Geet"

Geetanjali polai "Geet"

बहुत ही सुन्दर और हृदय स्पर्शी रचना 👌👌🙏

17 जून 2024

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत सुंदर लिखा है आपने कृपया मेरी कहानी बहू की विदाई के हर भाग पर अपना लाइक 👍 दे दें

7 अगस्त 2023

निक्की तिवारी

निक्की तिवारी

बहुत hi अच्छा लिखा aapne

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