**डरावनी रात**
*(लड़की के संदर्भ में)*
रात थी गहरी, सन्नाटा था फैला,
आसमान में बादल काले थे छाए।
एक लड़की अकेली घर लौट रही थी,
दिल में था डर, आँखों में आशंका की छाया।
हवा थी तेज़, पेड़ भी हिल रहे थे,
जैसे कोई साया उसके पीछे चल रहा हो।
कदम बढ़ा रही थी, पर हर कदम पर डर,
आवाज़ें भी सुनाई देने लगीं, अजनबी और बिखर।
सड़कें थीं सुनसान, कोई दिखता नहीं था,
बस वो और उसकी परछाई थी, जैसे कोई पहरा दे रहा हो।
अंधेरा उसे घेर रहा था चारों ओर से,
उसका दिल धड़क रहा था जोर-जोर से।
एक मोड़ आया, वहाँ साया कुछ हिला,
लड़की ने झट से देखा, पर कोई नहीं मिला।
सांसें उसकी तेज़ हो गईं, कदम रुके नहीं,
पर दिल कह रहा था, "कुछ तो है यहाँ सही नहीं।"
हवा ने फिर किया एक जोरदार झोंका,
लड़की के कानों में आई एक हंसी का फूला हुआ धुंआ।
उसने मुड़कर देखा, पर कोई नहीं था,
बस वही अकेली, और रात का अंधेरा साथ था।
उसकी आँखें खोज रही थीं किसी सुरक्षित कोना,
पर हर दिशा में था बस डर का कोई और मुखौटा।
पत्तों की सरसराहट, कदमों की आहट,
कहीं से किसी ने कहा, "आज रात है खास, मत बढ़ाओ कदमों की रफ़्तार।"
लड़की ने साहस बटोरा, कदमों को तेज़ किया,
पर उसके मन में डर ने घेरा नया रचा।
आस-पास के पेड़ भी जैसे उसे घूर रहे थे,
हर तरफ़ से जैसे आवाज़ें उसे डराने की कोशिश में थे।
तभी उसकी नज़र पड़ी एक टूटी हुई झोपड़ी पर,
वहाँ से आ रही थी हल्की-हल्की रोशनी की लहर।
उसने सोचा, शायद वहाँ मिलेगा सहारा,
पर अंदर जाते ही लगा जैसे खो गया सारा किनारा।
अचानक दरवाजा ज़ोर से बंद हुआ,
लड़की ने देखा, अब कोई रास्ता नहीं खुला।
सामने दीवारों पर परछाइयाँ नाच रही थीं,
और हर एक परछाई उसे घेरने लगी थी।
उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा,
वह चिल्लाई, पर आवाज़ कहीं गुम हो गई थी।
उसने आँखें बंद कीं, हाथ जोड़कर भगवान को पुकारा,
“हे भगवान! मुझे बचा लो, ये रात है बहुत ही भयानक, सहारा दो मेरा।”
तभी दरवाज़ा अचानक से खुला,
और एक बूढ़ी औरत ने उसे बुलाया।
“आओ बिटिया, तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी मैं,
डर मत, ये रात अब और नहीं डराएगी तुझे।"
लड़की ने उसकी ओर देखा,
आँखों में विश्वास और डर की जंग थी।
पर उसने हिम्मत दिखाई और औरत की बात मानी,
रात का डर भी धीरे-धीरे दूर होने लगा, जैसे थी कोई पुरानी कहानी।
रात का अंधेरा अब ढलने लगा,
चाँदनी की किरणें रास्ता दिखाने लगीं।
लड़की ने फिर एक लंबी सांस ली,
और डरावनी रात से जीतकर घर की ओर चली।
डर अब भी था, पर हिम्मत उससे बड़ी थी,
उसने सीखा, हर अंधेरी रात के बाद सुबह होती है।
जीवन में डर तो आएंगे कई,
पर हिम्मत और साहस से पार पाएंगे वही।
**समाप्त**
यह कविता एक लड़की की डरावनी रात की यात्रा को दर्शाती है, जिसमें वह अंधकार और अजनबी माहौल से घिरकर भयभीत होती है, लेकिन अपनी हिम्मत से अंत में उस डर पर विजय प्राप्त करती है।