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राख

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अंत सही,।ता उम्र आँग की लपटों में जलते रहे, अंत मे राख़ हो गए।ता उम्र पानी की लहरों में नहाते रहे, अंत में जल प्रवाह हो गए। ता उम्र मिट्टी में खेलते रहे अंत हुआ, उसी में दफन हो गए।ता उम्र हवाए घेरती रही, अंत मे वह खुद छोड़कर चली गई।पुनर्जन्म की कहानियां तो अतीत से भी परे होती है।इस जन्म का हमे कुछ पता

हवा चली शीतल पवन आती थी।आँधी तूफान लाती थी।अब हवा मे बीमारी हैं।हवा अब वाइरस बन गई हैं।वह अब पेड़, गली से नहीं,लोगो के श्वास नली से निकलती हैं।पतझड़ अब पेड़ो मे नहीं,अब तो पतझड़ इंसानों मे दिखती हैं।कटा पेड़ न्यूज मे दिखता हैं।मरा इंसान कब्रुस्तान या समसान मे दिखता हैं।पेड़ की टहनियाँ सूख कर खाद बनती हैं।

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राख... कैसे रिश्ते ये... कैसे ये नाते है... अपना ही खून हमे कहा अपनाते है... प्यार कहो या कहो वफ़ा... सबकुछ तो सिर्फ बातें है... रिशतें कहो या कहो अपने... सबकुछ तो सिर्फ नाते है... बातें लोग भूल जाते है... नाते है टूट जाते है... कोनसी कसमें कोनसे वादें... यहां अपने पीछे छूट जाते है... कितना भी कहलो

मापनी-२१२२ २१२२ २१२२ २१२“मुक्तक”समांत- आने पदांत – के लिएघिर गए जलती शमा में मन मनाने के लिए। उड़ सके क्या पर बिना फिर दिल लगाने के लिए। राख़ कहती जल बनी हूँ ख्वाइसें इम्तहान में- देख लो बिखरी पड़ी हूँ पथ बताने के लिए॥-१ समांत- आम पदांत – अबकौन किसका मानता है देखते अंजाम सब

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