नई दिल्ली : शहीदे-आज़म भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को लाहौर के सेंट्रल जेल में फांसी दी गई। 70 साल बाद पूरा देश उन्हें आज के दिन याद कर रहा है लेकिन सरकार के दस्तावेजों में भगत सिंह आज भी शहीद नही हैं।
जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी तब बीजेपी इस मुद्दे को खूब उठाती थी और अब खुद को राष्ट्रवादी मानने वाली बीजेपी की सरकार सत्ता है फिर भी भगत सिंह को शहीद घोषित नही किया जा सका है। जेडीयू के सांसद के सी त्यागी ने इस मुद्दे को 19 अगस्त 2013 को सदन में उठाया था तब बीजेपी नेता वैंकया नायडू ने इसका समर्थन किया था।
क्रांतिकारी भगत सिंह शहीद घोषित करने के लिए सरकार के खिलाफ शहीद-ए-आजम के वंशज (प्रपौत्र) यादवेंद्र सिंह संधू लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं। यूपीए सरकार में संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला ने उस वक्त कहा था कि ‘सरकार उन्हें बाकायदा शहीद मानती है और अगर सरकारी रिकार्ड में ऐसा नहीं है तो इसे सुधारा जाएगा।
केंद्र में अब बीजेपी सरकार है और बीजेपी हमेशा से खुद को राष्ट्रवादी पार्टी भी मानती रही है। अक्टूबर 2016 को जब इस मामले में सरकार से जानकारी मांगी गई तो गृह मंत्रालय के जवाब में साफ़ कहा गया कि उनके पास इसका कोई रिकॉर्ड नही है।
यादवेंद्र सिंह संधू के मुताबिक वह इस मामले को लेकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी, बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय विनय सहस्त्रबुद्धे से मिल चुके हैं लेकिन अब भी उन्हें भगत सिंह को शहीद का दर्जा मिलने का इंतज़ार है।