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रेलयात्रा

9 सितम्बर 2022

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ये रेल का सफर ,देखते ही कुछ पुरानी बात याद आ गयी। हैं तो सामान्य सी ही पर पता नहीं क्यों इतने सालों बाद भी, भूले नहीं । लोग कहते हैं कि सफर में अनजान  लोगों से कुछ नहीं लेना चाहिए खाने पीने का सामान।हम भी यही मानते हैं। पर उस सफर में कुछ ऐसा हुआ कि हमें अपनी सोच पर शर्मिंदगी हुई और आज भी होती है। सोचते हुए जान्हवी को पुराना किस्सा याद आ गया।
ये बात आज से बारह साल पहले की है।  हम जबलपुर से आगरा जा रहे थे अपने मायके ।मेरा भाई लेने आया था ,तो पतिदेव ने भेज दिया ।बच्चे छोटे थे तो स्कूल का कोई झंझट न था।   ये गाड़ी सुबह साढ़े पांच बजे छूट जाती थी। नयी नयी ट्रैन चली थी और ठंड भी पड़ रही थी तो ज्यादा भीड़ नहीं होती थी इस गाड़ी में।हम लोग नियत समय पर ट्रेन में बैठ गए। पतिदेब छोड़कर जा चुके थे । जब गाड़ी चलने लगी तो अपने आसपास नजर दौड़ाई तो पाया कि गाड़ी में हमारे अलावा सिर्फ एक शख्स ही बैठा दिखा वो भी सामने वाली सीट पर और पूरा कोच खाली। बच्चे जल्दी जागे थे तो सो गए । भाई भी सो गया। अब अकेले बैठे -2 क्या करे तो खिड़की से बाहर का नजारा देखने लगे। तभी लगा कि सामने बैठा व्यक्ति हमें ही देख रहा है, तो थोड़ा असहज लगा।पर ज्यादा ध्यान न दिया।  शायद वो भी अकेलेपन से बोर हो रहा  और  चाहता था कि हम लोग बात करे । बहुत देर सोचने के बाद उसने आखिर पूछ ही लिया - आप कहाँ जा रही हैं। आगरा, अपने मायके छोटा सा जबाब दिया हमने। अच्छा, फिर अपने बारे में  बताने लगा ।मैं भी छुट्टियों में घर आया था ,अब वापस जा रहा  हूँ जम्मूअपनी ड्यूटी पर।अच्छा ,बोल कर मुस्कुरा दी जान्हवी। फिर खामोशी  छा गई हमारे बीच।  मैं बात करना नहीं चाहती थी , पर सामने वाला सोच रहा था कि क्या बात हो सकती है हमारे बीच ।तभी कुछ  सोचते हुए  वो अपनी फैमिली के बारे में बताने लगे ,हम सिर्फ हां ,ह्म्म्म  करते  रहे । जब उन सज्जन को लगा कि  हम बात नहीं करना चाहते तो वो भी मन मार कर चुप हो गए।कुछ देर में बच्चे जाग गए  ,उनको भूख लगी  तो हमने उनको खाना निकाल कर दे दिया , पर उन सज्जन को न पूछा औपचारिकता वश भी। आजकल समय खराब है तो सफर में किसी का दिया कुछ भी न खाए ये बातें हमेशा ही घूमती रहती थीं ।शायद इसीलिए ,हमने शिष्टाचार का भी पालन नहीं किया ।पर शायद उनको ये बुरा लगा ,तभी कुछसमय बाद उन्होंने अपने बैग से एक डिब्बा निकाला ,उसमें से गुझिया निकाल कर  मेरे तरफ बढ़ा दी ,जिसे मैंने अपने बेटे को दे दी।उन्होंने हंसते हुए बोला - ये आपके लिए थी ,बच्चों को भी दूंगा। इतना बोलते ही उन्होंने एक गुझिया मेरी बेटी को और एक मुझे पकड़ा दी।उसी समय मेरा भाई आ गया जो दूसरी तरफ सो रहा था।जैसे ही उन्होंने उसे देखा तो मेरी तरफ इशारा करते हुए बोले - आप रहने दीजिए  ,आप अपनी खाइये हम दूसरी देते हैं।फिर डिब्बे में से एक गुझिया निकाल कर भाई की तरफ बढ़ा दी ।उसने भी ले ली और खाते हुए गेट की तरफ बढ़ गया। वो सज्जन भी  गुझिया खाते हुए बाहर देखने लगे।इधर हमने गुझिया ले तो ली पर मन में कुछ गलत खयाल आने लगे कि इसमें कुछ मिला हुआ तो ,जब काफी देर तक हम वो गुझिया हाथ में  ही पकड़े रहे तो उन्होंने हमें टोक ही दिया ।कब तक पकड़े रहेगी खा लीजिये।हमने भी सोच लिया कि अब जो भी होगा देखा जाएगा,और गुझिया खा ली। वो सज्जन भी मुस्कुराते हुए हमें देखने लगे।कुछ समय बाद खुद ही बोले - मैडम ,आपसे एक बात कहें ,आप बुरा मत मानना ।बोलिये  ,आप क्या कहना चाहते हैं जान्हवी बोली।आपको लोगों की पहचान नहीं है। लोगों को परखना सीखिए।हमने पूछा - ऐसा क्यों बोल रहे हैं आप। वो बोले - हमने देखा आपको, जब आपको हमने गुझिया दी तो आपने न खाने की पूरी कोशिश की । अरे हम आर्मी वाले हैं लोगों  की रक्षा करना हमारा काम है ।हम किसी को नुकसान कैसे पहुंचा सकते है।हमने आपको अपने बारे में बताया भी ।फिर भी आपको यकीन न हुआ हम पर।वो तो हमने आपको खाने को इसलिए दी थी कि अकेले खाना हमारी किस्मत में है ।बहुत कम मौके मिलते है हमें अपनी किस्मत बदलने के। वरना हमारी जिंदगी में  अकेलापन कुछ इस तरह है कि महीनों हो जाते है इंसानों की शक्ल देखे हुए। दिखता है तो सिर्फ वर्दी वाले और नियम ,कायदे । सामान्य शक्ल और आवाज सुनने को भी तरस जाते है हम लोग।आप सिविलियन क्या समझेंगे हमारे अकेलेपन को कहते हुए उनकी आंखें नम हो आयी।सुनकर जान्हवी को भी शर्मिंदगी हुई अपनी सोच पर।  नहीं sir ,ऐसी कोई बात नहीं है ।हम आपका दिल नहीं दुखाना चाहते थे पर आप तो जानते ही है कि समय कितना खराब है । आजकल कैसी -2 घटनाएं हो रही है ।बस इसीलिए थोड़ा सावधान रहती हूं।  ह्म्म्म ,ये तो है ।  वैसे अपने देश के जवानों का बहुत सम्मान करते हैं हम ।आप लोगों की वजह से ही हम लोग अपने घरों में सुरक्षित है ।इसके लिए आपको और आप  जैसे हजारों जवानों को सेल्यूट है sir। तभी उस्का भाई भी आ गया फिर तीनों बड़ी देर तक बातें करते रहे। उनकी बातें खत्म न हुई पर उनका स्टेशन जरूर आ गया ।तो उन लोगों ने उन सज्जन को यात्रा की शुभकामनाएं देते हुए उनसे विदा ली और अपने घर की ओर बढ़ चले।
आज भी जब वो सफर करती है तो ये वाकया जरूर याद आ जाता है उसे और शर्मिंदगी भी होती है कि अनजाने में ही एक भले आदमी का दिल दुखाया था।पर क्या करें आज के युग में अच्छे लोग आटे में नमक बराबर ही मिलते हैं बाकी को आटा ही आटा  मिलता है।

आशा झा सखी

जबलपुर  मध्यप्रदेश

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