नई दिल्ली : साल 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी रुपया गिरने पर मनमोहन सिंह की खूब खिंचाई करते दिखे वहीँ अब साल 2013 के बाद रुपया डॉलर के मुकाबले सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। रूपये में सबसे बड़ी गिरावट के बाद वृहस्पतिवार को डॉलर के मुकाबले 68.86 रूपये पर पहुँच गया। इससे पहले 28 अगस्त 2013 को रुपया 68.85 के ऑल टाइम लो पर पहुंचा था।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व जहाँ और घरेलू संकेतों की वजह से विदेशी निवेशक इक्विटी मार्केट से पैसा निकाल रहे हैं। इससे भी रुपए पर दबाव है। ट्रम्प की जीत के बाद से डॉलर के मुकाबले रुपया 2.9 फीसदी टूट चुका है। भारत में नोटबंदी के बाद जीडीपी में भी दो प्रतिशत तक की गिरावट आने की उम्मीद है। मेकलई फाइनैंशियल के प्रमुख जमाल मेकलई का मानना है कि नोटबंदी से रिजर्व बैंक की साख पर थोड़ा असर पड़ा है और विदेशी निवेशक इतने उदार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अगर डॉलर का सहारा नहीं मिला तो आने वाले दिनों में रुपया 71-71.50 के स्तर तक जा सकता है। रुपये में गिरावट से किसी को आश्चर्य नहीं हुआ है। कुछ समय से इसकी अटकलें चल रही थी और विदेश के बिना डिलिवरी वाले वायदा बाजार से इसका स्पस्ट संकेत मिल रहा था। हालांकि रिजर्व बैंक के दखल के कारण रुपये में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं दिखता है लेकिन बाजार विदेश के वायदा से संकेत ले लेता है।
भारतीय बाजारों से विदेशी निवेशक अब तक 22,000 करोड़ रुपये से अधिक की रकम निकाल चुके हैं क्योंकि अमेरिका में ब्याज दरें बढऩे की संभावना है जबकि भारत में गिरने की। इस कारण निवेशकों के लिए आर्बिटाज के जरिये कमाई का मौका खत्म हो गया है। इसके अलावा नवंबर में विदेशी मुद्रा में 17-16 अरब डॉलर की अनिवासी जमा राशि भी बाहर निकली है और करीब 1 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बॉन्ड भी बाजार में गिरावट के कारण अपने करार मूल्य से नीचे चले गए हैं। हालांकि मुख्य कारण डॉलर में उछाल ही माना जा रहा है।