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सच्चे प्रेमी

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तुम जिसे ठुकरा गयी, वो अब जग को रास आ रहा है,जो सुना तुमने नहीं वो धून ज़माना गा रहा है,तुमने बोला था न बरसेगी जहाँ एक बूँद भी कल,उस जमीं के नभ पे इक्छित काला बादल छा रहा है,रात के डर से अकेला तुमने छोड़ा था जिसे कल ,उसकी खातिर आज सजकर, सूर्य का रथ आ रहा है,काँच का टुकड़ा समझकर फेंक आई तुम जिसे थी,पैसो

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