नई दिल्लीः दिल्ली में जो विधायक मंत्री नहीं बन सके, उन्हें केजरीवाल सरकार ने संसदीय सचिव बनाकर मंत्रियों जैसी सुविधाएं देनी शुरू कर दी। विधायकों को खुश करने के इस असंवैधानिक तरीके पर याचिका दाखिल कर 21 विधायकों की सदस्यता खतरे में डालने वाले दिल्ली हाई कोर्ट के 28 वर्षीय वकील प्रशांत उमराव को खतरा महसूस हो रहा है। ऑफिस इन प्राफिट केस का खुलासा करने वाले इस युवा वकील ने फेसबुक पर पोस्ट लिखकर खुद को खतरा बताया है। कहा है कि विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि आम आदमी पार्टी ने कुछ लोगों को मेरे पीछे लगा रहा है। अगर कुछ होता है तो इसके लिए केजरीवाल जिम्मेदार होंगे। 'इंडिया संवाद' से बातचीत में प्रशांत उमराव ने कहा कि उन्हें कुछ लोगों ने खतरे के प्रति आगाह किया है।
प्रशांत की याचिका के बाद से मलाई काटने वाले विधायक पड़े मुश्किल में
प्रशांत उमराव ही वह वकील रहे जिन्होंने केजरीवाल सरकार पर अपने 21 विधायकों को नियम विपरीत लाभ पहुंचाने के मकसद से संसदीय सचिव का पद देने का मामला सबसे पहले उठाया। उन्होंने चुनाव आयोग के सामने याचिका दाखिल की थी। जिस पर आयोग ने बीते 16 मार्च को केजरीवाल सरकार को नोटिस जारी कर 11 अप्रैल तक स्पष्टीकरण देने को कहा। मगर विधायकों ने जवाब नहीं दिया। जिस पर दस मई तक फिर मौका मिला। सरकार ने आधा-अधूरा जवाब दिया, मगर आयोग संतुष्ट नहीं हुआ। आगे कई दफा सुनवाई करते हुए अब गेंद चुनाव आयोग के पाले में है। कभी भी 21 विधायकों की सदस्यता खारिज हो सकती है।
विधायकों के फंसने पर केजरीवाल ने पास कराया बिल, राष्ट्रपति ने बिल ठुकराया
दरअसल नियम के मुताबिक दिल्ली सरकार में सात मंत्री और एक संसदीय सचिव हो सकता है। मगर केजरीवाल सरकार ने विभागों की निगरानी के बहाने एक नहीं 21 संसदीय सचिव बना दिए। संसदीय सचिव लाभ का पद होता है। विधायक लाभ का पद नहीं ले सकते। अगर केजरीवाल को विभागों की निगरानी का काम सौंपना था तो विधायकों को विधानसभा समितियों का सदस्य या अध्यक्ष बना सकते थे। मगर उन्होंने विधायकों को मलाई खाने के लिए संसदीय सचिव पद बांट दिए। जब इसका खुलासा हुआ तो केजरीवाल ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति को वैध कराने के लिए विधानसभा में बिल पास कराया। जब बिल उप राज्यपाल(एलजी) के पास पहुंचा तो उन्होंने नियम विपरीत होने पर इस पर हस्ताक्षर नहीं किया। राष्ट्रपति ने भी बिल को नहीं माना। वजह कि संसदीय सचिव बनाने से पहले दिल्ली सरकार को संबंधित बिल पास कराना चाहिए। तभी संसदीय सचिव बने विधायकों की सदस्यता मुश्किल में नहीं पड़ती।