नई दिल्ली : सूबे के डीजीपी जावीद अहमद को भी पुलिस के आचरण पर उठने वाली उंगली से शर्म आ जाती है, लेकिन एटा पुलिस की आत्मा कचोटती तक नहीं है, उन्हें काम अपने स्तर से ही करना है. फिर चाहे पुलिस की छवि बिगड़े या बने, इससे उन्हें कोई मतलब नहीं है. डीजीपी ने पत्र तो इस उम्मीद से भेजा था, शायद पुलिस उनकी भावुक अपील से अपने आचरण व कार्यप्रणाली में सुधार करेगी, लेकिन जिले में तो उल्टी गंगा बहाई जा रही है. न आरोपियों पर कार्यवाही हो रही है और न ही उनके संरक्षणकर्ता पुलिस अधिकारियों पर. और तो और जांच के नाम पर शिकायतकर्ताओं को जांच सौंपने का 'लॉलीपॉप' थमाया जा रहा है. तो वहीं जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों का साथ निभाया जा रहा है.
डीजीपी के भावुक पत्र के अंश भी भूले मातहत
दरअसल पुलिस के आचरण व कार्यप्रणाली पर उठने वाली उंगली, सरेआम जनता को अपमानित करने, घूस लेते वीडियो वायरल होने आदि मामले उजागर होने पर प्रदेश के डीजीपी जावीद अहमद ने प्रदेश के सभी पुलिस प्रमुखों को पत्र लिखकर पुलिस सुधार को भावुक अपील की थी. उन्होंने अपने पत्र में यहां तक लिखा था कि मुझे तो शर्म आती है, आपकी आत्मा कचोटती भी है या नहीं. विस्तार से लिखे पत्र में डीजीपी ने लिखा था कि आजकल आमजन भी मीडिया है. हर पल हमारा आचरण स्कैन हो रहा है. इसलिए अपने आचरण में सुधार करें.
डीजीपी की अपील बेअसर
डीजीपी की इस भावुक अपील का जिले की पुलिस पर कोई असर नहीं हुआ. नजीर आपके सामने पेश हैं. जनपद के कई पुलिस अधिकारी व कर्मचारियों की मौखिक, लिखित, ट्वीटर आदि के माध्यम से कई शिकायतें हुईं, परन्तु किसी में भी कोई कार्यवाही नहीं हुई. शिकायतें भी गंभीर प्रकृति रहीं, परन्तु सभी में जांच होने का 'लॉलीपॉप ' थमा दिया गया. आज तक धरातल पर कोई जांच तक नहीं हुई. अब तो ट्वीटर पर पुलिस की होने वाली शिकायतों का जवाब देना ही बंद कर दिया गया. ये है एटा पुलिस.
मोबाइल लुटेरों को पकड़कर छोड़ने की जांच अधर में
देहात कोतवाली के एसओ पर मोबाइल लुटेरों को पकड़कर छोड़ने के गंभीर आरोप लगे, परन्तु आज तक सीओ सिटी निवेश कटियार इसकी जांच तक नहीं कर पाए. जबकि डीजीपी के ट्वीट पर स्वयं एसएसपी अजय शंकर राय ने यह जांच उन्हें सौंपी थी. 13 सितम्बर को सौंपी गई जांच अभी तक किसी निष्कर्ष के इन्तजार में है. एसओ देहात ने 24 अगस्त को 2 लुटेरों को माल सहित पकड़ा था. शिनाख्त भी हुई, आरोपी 2 दिन हवालात में रहे, परन्तु जेल नहीं गए. एएसपी के आदेश पत्रांक- 159 दिनांक- 3 अगस्त,16 के बाद भी कोई मुक़दमा पंजीकृत नहीं किया गया. इसके बाद भी तहरीर दी गईं, परन्तु एसओ आरोपियों पर मेहरबान ही बने रहे.
35 हजार लेकर गुडवर्क को पुलिस ने बदला बेडवर्क में
सूत्रों के अनुसार एसओ पीड़ित व उच्चाधिकारियों को गुमराह करते रहे, और मोटी रकम लेकर आरोपियों को छोड़ दिया. रकम की चर्चा भी खुलकर आ गई है. यह रकम 35 हजार के लगभग बताई जा रही है. डीजीपी की भावुक अपील का गला घोंटते हुए एसओ ने गुडवर्क को पूरे पुलिस महकमे के आचरण पर बदनुमा दाग लगाते हुए उसे बेडवर्क में बदल दिया. इस मामले में डीजीपी से लेकर आईजी, एसएसपी तक के आदेश एसओ के आगे बौने साबित हुए. आज तक न तो लुटरों पर कोई कार्यवाही हुई और न ही एसओ पर. इसके अलावा और भी कई मामलों में पुलिस की गंभीर शिकायतें पुलिस के आलाअफसरों तक पहुंची हैं.
क्यों लटकी हैं जांच ?
लेकिन अभी तक सभी जांच के नाम पर अटकी हैं. पुलिस की शिकायतों के एक मामले में तो जिले के आला पुलिस अफसर के स्टेनो ने सिर्फ मोबाइल वार्ता पर ही शिकायत ख़त्म कर दी. उन्होंने सम्बन्धित शिकायत में उल् लेख ित तथ्यों की जांच करना तक मुनासिब नहीं समझा, जबकि आरोप गंभीर थे और जांच भी किसी क्षेत्राधिकारी को नहीं, बल्कि जिले के आलाअफसर को ही सौंपी गई.
यूपी पुलिस पर उठने लगीं उंगलियां
इसके बाद भी उन्होंने कोई कार्यवाही नहीं की. ऐसे में खुद ही समझा जा सकता है कि जिले में डीजीपी की भावुक अपील के साथ- साथ उनके आदेशों का कितना अनुपालन हो रहा है. इन मामलों में वरिष्ठ अफसरों की चुप्पी भी लोगों के जेहन में कई सवाल खड़े कर जाती है. अफसर जानबूझ कर चुप्पी साधे हैं या फिर उन्हें अँधेरे में रखा जा रहा है, यह तो वही जानें. बहरहाल मामला उजागर होने पर त्वरित निर्णय लेने की भी आम जनता व पीड़ित उनसे अपेक्षा रखते हैं .