
लखनऊ। जब अखिलेश यादव ने मंत्रिमंडल से चाचा शिवपाल यादव को निकाला और शिवपाल पार्टी मुखिया मुलायम सिंह के पास पहुंचे तो वे रो पड़े। मुलायम ने अखिलेश पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जो बाप का नहीं हुआ वह बात का क्या मान-ख्याल रखेगा। यह बातें मुलायम ने अखिलेश की ओर से हुई कार्रवाई के बाद आवास पर हुई बैठक में कही।
पांच दशक की राजनीति मिट्टी में मिलने पर निराश दिखे नेताजी
बैठक में शामिल नेताओं के मुताबिक इससे पहले उन्होंने नेताजी को इतना निराश कभी नहीं पाया था। पांच दशक की राजनीति को जिस तरह से शिवपाल-रामगोपाल और अखिलेश की लड़ाई मटियामेट करती दिख रही, उससे मुलायम को अफसोस होना लाजिमी है। कभी 1967 में मुलायम सिंह पहली बार विधानसभा सदस्य बने और फिर 1977 में मंत्री बने। 1980 में कांग्रेस की सरकार में भी राज्य मंत्री रहे। बाद मे चौधरी चरण सिंह के लोकदल के अध्यक्ष बने। पांच दिसंबर 1989 से 24 जनवरी 1991 तक फिर पांच दिसंबर 1993 से तीन जून 1996 और 29 अगस्त 2003 से 11 मई 2007 तक तीन बार मुख्यमंत्री रहे। इससे पहले 2006 में मुलायम सिंह संयुक्त मर्चा सरकार में देश के रक्षामंत्री रहे। इस प्रकार देखें तो करीब पांच दशक की मुलायम की लंबी राजनीति रही है।
जिन्हें विरासत आगे बढ़ाना है वो खुद लड़-कट रहे
मुलायम को अफसोस इस बात का रहा कि उन्होंने पांच दशक की सफल राजनीति कर 1992 में बनी समाजवादी पार्टी को यूपी में पहाड़ बना दिया। जब उनके भाईयों और बेटे को राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने की बारी आई और वो भी चुनाव सिर पर मंडरा रहा है। तब उनमें राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को लेकर सिर-फुटव्वल हो रही है। जिससे मुलायम सिंह की पांच दशक की मेहनत पर पानी फिरता दिख रहा है। यही वजह रही की पार्टी की बैठक में बहुत भावुक बातें बोलीं। बुजुर्गियत की लाचारी साफ झलक रही थी। पार्टी नेता अजीत सिंह की मानें तो मुलायम ने बैठक में साफ कह दिया कि बाप का न हुआ तो बात का क्या होगा।मीटिंग में मुलायम की बातों से झलक रहा था कि वे पार्टी में टूट से बहुत गमगीन हैं। वजह कि उनकी चार दशक की राजनीति मिट्टी में मिलती दिख रही है।