नई दिल्लीः समाजवादी पार्टी में अब घमासान थामने का एक ही रास्ता है मुलायम सिंह का मुख्यमंत्री बन जाना। मुलायम सिंह की छत्रछाया के नीचे ही अखिलेश-रामगोपाल और शिवपाल एंड कंपनी यानी दोनों विरोधी गुट एक साथ काम कर सकते हैं। रविवार को जो जबर्दस्त झटका दोनों गुटों ने एक दूसरे को दिया, उससे अब साफ हो गया है कि एक दूसरे के अंडर में न अखिलेश काम कर सकते हैं न शिवपाल। ऐसे में मुलायम ही वह वटवृक्ष हैं जिसकी छाया के नीचे अखिलेश और शिवपाल दोनों को एक साथ रहने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
कल अखिलेश की बैठक से निकला था फैसला, आज मुलायम का दिन
रविवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विधानमंडल की बैठक में बुलाकर चाचा शिवपाल, गायत्री समेत चार मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाकर कड़क रवैया दिखाया था। एक दिन बाद आज मुलायम की पार्टी पदाधिकारियों के साथ बैठक होनी है। दरअसल पहले मुलायम ने ही पार्टी में बगावत रोकने के लिए बैठक बुलाई थी मगर अखिलेश को लगा था कि नेताजी कोई फैसला करें उससे पहले ही विधायकों का शक्ति प्रदर्शन करा लिया जाए। यह सोचकर अखिलेश ने रविवार को ही विधायकों की बैठक बुलाकर जता दिया था कि विधायकों का बहुमत उन्हें नेता मानता है। अब सोमवार को दोपहर होने जा रही बैठक में मुलायम रविवार को हुए घटनाक्रम पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से राय-मशविरा लेंगे। चूंकि पार्टी टूट की कगार पर है। इस नाते कहा जा रहा है कि मुलायम सिंह यादव खुद आगे आकर सत्ता की कमान संभाल सकते हैं।
दोनों पक्षों को नेताजी की हुकूमत मंजूर
जब भी विवाद होता है तो शिवपाल कहते हैं कि उन्हें नेताजी जो कहेंगे वही मानेंगे। अखिलेश भी कुछ पूछने पर कहते हैं कि नेताजी की बात मान्य होगी। निष्कासन के बाद रामगोपाल भी कह चुके हैं कि नेताजी उनके बड़े भाई हैं। जो कहेंगे वही मानेंगे। मुलायम सिंह के करीबियों का कहना है कि 2012 में अखिलेश के राजतिलक के बाद जो शिवपाल एंड कंपनी ने मुंह फुला लिया है, अब गहराई कलह को थामने के लिए वे खुद आगे आएंगे तो शायद मामला सुलझ जाए। लिहाजा पार्टी ही नहीं विरोधी दलों की भी निगाह मुलायम की बैठक के नतीजों पर टिकी है।