... कभी 'दबंग' तो कभी 'वांटेड' तो कभी 'बॉडीगार्ड' के नाम से मशहूर बॉलीवुड के बैडबॉय सलमान खान फिर से लोगों के बीच चर्चा के विषय बने हुए हैं. हालाँकि, इस बार उन्होंने ना ही किसी हिरन को मारा है और ना ही लोगों के ऊपर अपनी गाड़ी चढ़ाई है, बल्कि बोलते-बोलते इनकी जुबान फिसली (Salman khan rape statement) है. जी हाँ, अपनी आने वाली फिल्म सुल्तान को लेकर हो रही प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पत्रकार को जवाब देते सलमान ने अपना दर्द बयां किया कि 'शूटिंग के बाद वो इतना थक जाते थे कि वो चल नहीं पाते थे, उनका पैर लड़खड़ाने लगता था और ऐसी में वो रेप पीड़ित महिला की तरह महसूस करते थे. जाहिर है, बोलते-बोलते एक बेहद घटिया और स्तरहीन तुलना का शब्द सलमान ने बेहद आसानी से निकाल दिया था और फिर हंगामा तो होना ही था. सब और सलमान की आलोचना शुरू हो गयी, कुछ उनके खिलाफ बोल रहे हैं तो कुछ उनके पक्ष में भी बोलने वाले हैं. खैर इस हंगामे से सलमान को कुछ खास फर्क नहीं पड़ा होगा, क्योंकि उन जैसों के लिए तो ये आम बात है. बल्कि, इस बात के लिए बुद्धिजीवी वर्ग और समाजशास्त्रियों को उनका "शुक्रिया अदा" करना चाहिए कि सलमान ने हमारे सामने एक ऐसा मुद्दा छोड़ा है जिस पर गहराई से सोचने की जरुरत आ पड़ी है. यह बेहद अजीब बात है कि इस गम्भीर 'बदजुबानी मुद्दे' की तरफ लोगों का ध्यान न जाकर, सारा फोकस इस बात पर है कि सलमान ने इतनी असंवेदनशील बात कैसे बोल दी. महिला आयोग का कारण बताओ नोटिस भेजना बिलकुल जायज़ है, किन्तु लोगबाग यह जरूर सोचें कि आखिर हमारा समाज बदजुबानी का बिंदासपन से प्रयोग क्यों करने लगा है? 'बलात्कार' जैसे शब्द की तुलना करने वाले एक व्यक्ति को अगर इतना भी पता नहीं है कि जब एक औरत की आबरू उतरती है, तो तकलीफ शरीर में ही नहीं दिमाग और आत्मा तक में होती है. उसकी अंतरात्मा के चीथड़े उड़ जाते हैं, और उसका स्वाभिमान पैरों तले रौंदा जाता है. ठीक से चल न पाना तो बस ऊपरी दर्द है. लेकिन फिर भी इस वाकया के लिए जो आलोचना हो रही है वो गलत नहीं है, बल्कि गलत ये है कि हम इस 'बदजुबानी' की तह तक जाने कि चेष्टा नहीं ही रही है. सलमान ने यह जो बात बोली है, ऐसा नहीं है कि यह 'अजूबा' बोल है. बल्कि ऐसी भाषा तो हमारी आम बोल चाल में गहराई से शामिल हो चुकी है. युवा तो युवा...