ये समय है, दौड़ता है,
जो खड़े हैं और केवल देखते हैं इसे,
उनको छोड़ता है, बहुत पीछे।
किन्तु वे जो चाहते हैं, साथ चलना,
जानते हैं रुख बदलना,
पहुँच पाएँ या न पाएँ
ना सही, दौड़कर तो, देख लेते हैं वही।
यही क्या कम है, ये समय है,
एनआईटी संभावनाओं के लिए,
क्यों लगाए आस हम बैठे रहें ?
स्वाति की एक बूंद की,
तृष्णा भला, क्यूंकर सहे ?
क्यों न पी लें आज के अनमोल क्षण,
समय ने जो, स्वयं आकर दे दिये,
यह बहुत है, ये समय है।
आज कुछ है, कल नहीं वह,
और कल, वह भी नहीं कल।
तो दुखें क्यों ?
समय को चलने दें उसकी चाल से बस,
बचाए रहें, अपने आप को भूचाल से,
यही सच है, ये समय है।
-उषा
मैं एक मनोवैज्ञानिक जिसका झुकाव दर्शन शास्त्र की ओर अधिक है पेशे से शिक्षिका प्रधानाचार्या और शौक के लिहाज़ से एक लेखिका ,कवियित्री, चित्रकार व गायिका . D