नई दिल्लीः
जैसा नाम-वैसा काम। उम्र 92 साल। 64 साल की सेवा। अब तक डेढ़ लाख महिलाओं की डिलीवरी। पिछले 20 साल से बिना फीस के घर पर मरीजों का इलाज। इससे बड़ा और क्या परिचय हो सकता है किसी का। दाद देनी होगी डॉक्टर भक्ति देवी यादव की चिकित्सीय सेवा के प्रति अनन्य भक्ति की। जिस अवस्था में लोग खाट पकड़ लेते हैं, घरवालों के सहारे नित्य-क्रिया करने की मजबूरी होती है, उस उम्र में डॉक्टर भक्ति यादव घर पर बीमार महिलाओं का इलाज करने में सक्षम हैं। डॉक्टर भक्ति यादव कहती हैं कि इस अवस्था में भी यह ऊर्जा उन्हें गरीब महिलाओं के मुफ्त इलाज के सेवाभाव से मिलता है। बात अब इस तस्वीर की हो जाए। मौका गुरुवार का। स्थान डॉक्टर भक्ति देवी का घर। मध्य प्रदेश के मंत्री जयंत मलैया, कलेक्टर पी नरहरि पद्मश्री का मेडल और प्रशस्ति पत्र लेकर घर के दरवाजे पर दस्तक देते हैं। कहते हैं कि वे पद्मश्री मेडल लेकर आए हैं। इतना सुनते ही पूरा परिवार खुशी से नाच उठता है। फिर डॉक्टर भक्ति देवी को पद्मश्री अलंकरण सौंपते हैं। मेडल पाते ही डॉक्टर भक्ति मुस्कुरा उठीं। बोलीं कि उन्होंने तो सपने भी नहीं सोचा था कि अपनी ड्यूटी निभाने के लिए पद्मश्री जैसा सम्मान भी मिलेगा। वो भी घर पर। बेटे डॉ. रमण यादव बताते हैं कि- मां भक्तिदेवी इंदौर मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने वालीं पहली छात्रा थीं। 1949 में उन्होंने एडमिशन लिया और 1952 में कॉलेज की पहली एमबीबीएस छात्रा बनीं। फिर 1962 में एमएस की भी डिग्री हासिल कीं। दरअसल 30 मार्च को ही केंद्र सरकार ने उनकी सेवाभावना को देखते हुए पद्मश्री की घोषणा की थी। मगर 94 साल की उम्र होने के कारण वह राष्ट्रपति भवन जाकर पुरस्कार ग्रहण नहीं कर पाईं। नियम के मुताबिक जब कोई फंक्शन में नहीं शिरकत कर पाता तो जिले की डीएम सरकारी नुमाइंदे के तौर पर घर जाकर अलंकरण सौंपते हैं।