आज के समय में अक्सर लोग अपनी कड़वी भाषा से दूसरे का मन दुखाते हैं या फिर ऐसे बोल बोलते हैं जो नकारात्मकता फैलाती है ऐसे लोगों के लिए कबीर दास जी का यह दोहा शिक्षाप्रद है –
दोहा-
“ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय।”
हिन्दी अर्थ-
मन के अहंकार को मिटाकर, ऐसे मीठे और नम्र वचन बोलो, जिससे दुसरे लोग सुखी हों और स्वयं भी सुखी हो।
क्या सीख मिलती है-
कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने घमंड में नहीं रहना चाहिए और अक्सर दूसरों से मीठा ही बोलना चाहिए, जिससे दूसरे को खुशी मिल सके और सकारात्मकता फैल सके।