इस संसार में कई ऐसे लोग हैं जो गुस्से में आकर अपना आपा खो बैठते हैं, और तो और कई लोग दूसरे की जान तक लेने से नहीं हिचकिचाते ऐसे लोगों के लिए कबीर दास जी ने निम्नलिखित दोहे में बड़ी सीख दी है –
दोहा-
“गारी ही से उपजै, कलह कष्ट औ मीच। हारि चले सो सन्त है, लागि मरै सो नीच।”
अर्थ-
गाली से झगड़ा सन्ताप एवं मरने-मारने तक की बात आ जाती है। इससे अपनी हार मानकर जो विरक्त हो चलता है, वह सन्त है, और (गाली गलौच एवं झगड़े में) जो व्यक्ति मरता है, वह नीच है।
क्या सीख मिलती है-
कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह यह सीख मिलती है कि हमें अपने गुस्से पर नियंत्रण रखना चाहिए और विपरीत समय में समझदारी से काम लेना चाहिए।