आज की दिखावे की दुनिया में कई लोग ऐसे हैं, जिनके आंतरिक मन नही मिलते हैं लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए वे, एक-दूसरे के खास बने रहते हैं उन लोगों के लिए कबीर दास जी ने नीचे लिखे गए दोहे में बड़ी सीख दी है –
दोहा-
“इष्ट मिले अरु मन मिले, मिले सकल रस रीति। कहैं कबीर तहँ जाइये, यह सन्तन की प्रीति।”
अर्थ-
उपास्य, उपासना-पध्दति, सम्पूर्ण रीति-रिवाज और मन जहां पर मिले, वहीँ पर जाना सन्तों को प्रियकर होना चाहिए।
क्या सीख मिलती है-
कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमारे जहां दिल मिले और मन मिले, उन्हीं से दोस्ती रखनी चाहिए। सिर्फ दिखावे लिए ही मित्र नहीं बनना चाहिए, जो मन को अच्छा लगे उनसे ही दोस्ती करनी चाहिए।