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संतोषी माता व्रत कथा

10 मई 2022

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एक बुढ़िया थी, उसके सात बेटे थे। 6 कमाने वाले थे जबकि एक निक्कमा था। बुढ़िया छहों बेटों की रसोई बनाती, भोजन कराती और उनसे जो कुछ जूठन बचती वह सातवें को दे देती।

एक दिन वह पत्नी से बोला- देखो मेरी माँ को मुझ पर कितना प्रेम है।

वह बोली- क्यों नहीं, सबका झूठा जो तुमको खिलाती है।

वह बोला- ऐसा नहीं हो सकता है। मैं जब तक आँखों से न देख लूं मान नहीं सकता।

बहू हंस कर बोली- देख लोगे तब तो मानोगे।

कुछ दिन बाद त्यौहार आया। घर में सात प्रकार के भोजन और चूरमे के लड्डू बने। वह जांचने को सिर दुखने का बहाना कर पतला वस्त्र सिर पर ओढ़े रसोई घर में सो गया। वह कपड़े में से सब देखता रहा। छहों भाई भोजन करने आए। उसने देखा, माँ ने उनके लिए सुन्दर आसन बिछा नाना प्रकार की रसोई परोसी और आग्रह करके उन्हें जमाया। वह देखता रहा।

छहों भोजन करके उठे तब माँ ने उनकी झूठी थालियों में से लड्डुओं के टुकड़े उठाकर एक लड्डू बनाया।

जूठन साफ कर बुढ़िया माँ ने उसे पुकारा- बेटा, छहों भाई भोजन कर गए अब तू ही बाकी है, उठ तू कब खाएगा।

वह कहने लगा- माँ मुझे भोजन नहीं करना, मैं अब परदेश जा रहा हूँ।

माँ ने कहा- कल जाता हो तो आज चला जा।

वह बोला- हाँ आज ही जा रहा हूँ। यह कह कर वह घर से निकल गया।

सातवें बेटे का परदेश जाना-

चलते समय पत्नी की याद आ गई। वह गौशाला में कण्डे (उपले) थाप रही थी।

वहाँ जाकर बोला-

हम जावे परदेश आवेंगे कुछ काल,

तुम रहियो संतोष से धर्म आपनो पाल।

वह बोली-

जाओ पिया आनन्द से हमारो सोच हटाय,

राम भरोसे हम रहें ईश्वर तुम्हें सहाय।

दो निशानी आपन देख धरूं में धीर,

सुधि मति हमारी बिसारियो रखियो मन गम्भीर।

वह बोला- मेरे पास तो कुछ नहीं, यह अंगूठी है सो ले और अपनी कुछ निशानी मुझे दे।

वह बोली- मेरे पास क्या है, यह गोबर भरा हाथ है। यह कह कर उसकी पीठ पर गोबर के हाथ की थाप मार दी। वह चल दिया, चलते-चलते दूर देश पहुँचा।

परदेश मे नौकरी-

वहाँ एक साहूकार की दुकान थी। वहाँ जाकर कहने लगा- भाई मुझे नौकरी पर रख लो।

साहूकार को जरूरत थी, बोला- रह जा।

लड़के ने पूछा- तनखा क्या दोगे।

साहूकार ने कहा- काम देख कर दाम मिलेंगे। साहूकार की नौकरी मिली, वह सुबह 7 बजे से 10 बजे तक नौकरी बजाने लगा। कुछ दिनों में दुकान का सारा लेन-देन, हिसाब-किताब, ग्राहकों को माल बेचना सारा काम करने लगा। साहूकार के सात-आठ नौकर थे, वे सब चक्कर खाने लगे, यह तो बहुत होशियार बन गया।

सेठ ने भी काम देखा और तीन महीने में ही उसे आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना लिया। वह कुछ वर्ष में ही नामी सेठ बन गया और मालिक सारा कारोबार उसपर छोड़कर चला गया।

पति की अनुपस्थिति में सास का अत्याचार-

इधर उसकी पत्नी को सास ससुर दु:ख देने लगे, सारी गृहस्थी का काम कराके उसे लकड़ी लेने जंगल में भेजते। इस बीच घर के आटे से जो भूसी निकलती उसकी रोटी बनाकर रख दी जाती और फूटे नारियल की नारेली में पानी। एक दिन वह लकड़ी लेने जा रही थी, रास्ते में बहुत सी स्त्रियां संतोषी माता का व्रत करती दिखाई दी।

संतोषी माता का व्रत-

वह वहाँ खड़ी होकर कथा सुनने लगी और पूछा- बहिनों तुम किस देवता का व्रत करती हो और उसके करने से क्या फल मिलता है। यदि तुम इस व्रत का विधान मुझे समझा कर कहोगे तो मैं तुम्हारा बड़ा अहसान मानूंगी।

तब उनमें से एक स्त्री बोली- सुनो, यह संतोषी माता का व्रत है। इसके करने से निर्धनता, दरिद्रता का नाश होता है और जो कुछ मन में कामना हो, सब संतोषी माता की कृपा से पूरी होती है। तब उसने उससे व्रत की विधि पूछी।

संतोषी माता व्रत विधि-

वह भक्तिनि स्त्री बोली- सवा आने का गुड़ चना लेना, इच्छा हो तो सवा पांच आने का लेना या सवा रुपए का भी सहूलियत के अनुसार लाना। बिना परेशानी और श्रद्धा व प्रेम से जितना भी बन पड़े सवाया लेना। प्रत्येक शुक्रवार को निराहार रह कर कथा सुनना, इसके बीच क्रम टूटे नहीं, लगातार नियम पालन करना, सुनने वाला कोई न मिले तो धी का दीपक जला उसके आगे या जल के पात्र को सामने रख कर कथा कहना। जब कार्य सिद्ध न हो नियम का पालन करना और कार्य सिद्ध हो जाने पर व्रत का उद्यापन करना।

तीन मास में माता फल पूरा करती है। यदि किसी के ग्रह खोटे भी हों, तो भी माता वर्ष भर में कार्य सिद्ध करती है, फल सिद्ध होने पर उद्यापन करना चाहिए बीच में नहीं। उद्यापन में अढ़ाई सेर आटे का खाजा तथा इसी परिमाण से खीर तथा चने का साग करना। आठ लड़कों को भोजन कराना, जहाँ तक मिलें देवर, जेठ, भाई-बंधु के हों, न मिले तो रिश्तेदारों और पास-पड़ोसियों को बुलाना। उन्हें भोजन करा यथा शक्ति दक्षिणा दे माता का नियम पूरा करना। उस दिन घर में खटाई न खाना। यह सुन बुढ़िया के लड़के की बहू चल दी।

व्रत का प्रण करना और माँ संतोषी का दर्शन देना-

रास्ते में लकड़ी के बोझ को बेच दिया और उन पैसों से गुड़-चना ले माता के व्रत की तैयारी कर आगे चली और सामने मंदिर देखकर पूछने लगी- यह मंदिर किसका है।

सब कहने लगे संतोषी माता का मंदिर है, यह सुनकर माता के मंदिर में जाकर चरणों में लोटने लगी।

दीन हो विनती करने लगी-

माँ मैं निपट अज्ञानी हूँ, व्रत के कुछ भी नियम नहीं जानती, मैं दु:खी हूँ। हे माता ! जगत जननी मेरा दु:ख दूर कर मैं तेरी शरण में हूँ।

माता को दया आई-

एक शुक्रवार बीता कि दूसरे को उसके पति का पत्र आया और तीसरे शुक्रवार को उसका भेजा हुआ पैसा आ पहुँचा। यह देख जेठ-जिठानी मुंह सिकोडऩे लगे।

लड़के ताने देने लगे-

काकी के पास पत्र आने लगे, रुपया आने लगा, अब तो काकी की खातिर बढ़ेगी।

बेचारी सरलता से कहती-

भैया कागज आवे रुपया आवे हम सब के लिए अच्छा है। ऐसा कह कर आँखों में आँसू भरकर संतोषी माता के मंदिर में आ मातेश्वरी के चरणों में गिरकर रोने लगी। माँ मैंने तुमसे पैसा कब माँगा है।

मुझे पैसे से क्या काम है। मुझे तो अपने सुहाग से काम है। मैं तो अपने स्वामी के दर्शन माँगती हूँ। तब माता ने प्रसन्न होकर कहा- जा बेटी, तेरा स्वामी आयेगा।

यह सुनकर खुशी से बावली होकर घर में जा काम करने लगी। अब संतोषी माँ विचार करने लगी, इस भोली पुत्री को मैंने कह तो दिया कि तेरा पति आयेगा लेकिन कैसे? वह तो इसे स्वप्न में भी याद नहीं करता।

उसे याद दिलाने को मुझे ही जाना पड़ेगा। इस तरह माता जी उस बुढ़िया के बेटे के पास जा स्वप्न में प्रकट हो कहने लगी- साहूकार के बेटे, सो रहा है या जागता है।

वह कहने लगा- माता सोता भी नहीं, जागता भी नहीं हूँ कहो क्या आज्ञा है?

माँ कहने लगी- तेरे घर-बार कुछ है कि नहीं।

वह बोला- मेरे पास सब कुछ है माँ-बाप है बहू है क्या कमी है।

माँ बोली- भोले पुत्र तेरी बहू घोर कष्ट उठा रही है, तेरे माँ-बाप उसे परेशानी दे रहे हैं। वह तेरे लिए तरस रही है, तू उसकी सुध ले।

वह बोला- हाँ माता जी यह तो मालूम है, परंतु जाऊं तो कैसे? परदेश की बात है, लेन-देन का कोई हिसाब नहीं, कोई जाने का रास्ता नहीं आता, कैसे चला जाऊं?

माँ कहने लगी- मेरी बात मान, सवेरे नहा धोकर संतोषी माता का नाम ले, घी का दीपक जला दण्डवत कर दुकान पर जा बैठ।

देखते-देखते सारा लेन-देन चुक जाएगा, जमा का माल बिक जाएगा, सांझ होते-होते धन का भारी ठेर लग जाएगा। अब बूढ़े की बात मानकर वह नहा धोकर संतोषी माता को दण्डवत धी का दीपक जला दुकान पर जा बैठा। थोड़ी देर में देने वाले रुपया लाने लगे, लेने वाले हिसाब लेने लगे। कोठे में भरे सामान के खरीददार नकद दाम दे सौदा करने लगे। शाम तक धन का भारी ठेर लग गया। मन में माता का नाम ले चमत्कार देख प्रसन्न हो घर ले जाने के वास्ते गहना, कपड़ा सामान खरीदने लगा। यहाँ काम से निपट तुरंत घर को रवाना हुआ।

उधर उसकी पत्नी जंगल में लकड़ी लेने जाती है, लौटते वक्त माताजी के मंदिर में विश्राम करती। वह तो उसके प्रतिदिन रुकने का जो स्थान ठहरा, धूल उड़ती देख वह माता से पूछती है- हे माता! यह धूल कैसे उड़ रही है?

माता कहती है- हे पुत्री तेरा पति आ रहा है। अब तू ऐसा कर लकड़ियों के तीन बोझ बना ले, एक नदी के किनारे रख और दूसरा मेरे मंदिर पर व तीसरा अपने सिर पर।

तेरे पति को लकड़ियों का गट्ठर देख मोह पैदा होगा, वह यहाँ रुकेगा, नाश्ता-पानी खाकर माँ से मिलने जाएगा, तब तू लकड़ियों का बोझ उठाकर जाना और चौक में गट्ठर डालकर जोर से आवाज लगाना- लो सासूजी, लकडिय़ों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो, नारियल के खेपड़े में पानी दो, आज मेहमान कौन आया है? माताजी से बहुत अच्छा कहकर वह प्रसन्न मन से लकड़ियों के तीन गट्ठर बनाई। एक नदी के किनारे पर और एक माताजी के मंदिर पर रखा।

इतने में मुसाफिर आ पहुँचा। सूखी लकड़ी देख उसकी इच्छा उत्पन्न हुई कि हम यही पर विश्राम करें और भोजन बनाकर खा-पीकर गाँव जाएं। इसी तरह रुक कर भोजन बना, विश्राम करके गाँव को गया। सबसे प्रेम से मिला। उसी समय सिर पर लकड़ी का गट्ठर लिए वह उतावली सी आती है। लकड़ियों का भारी बोझ आंगन में डालकर जोर से तीन आवाज देती है- लो सासूजी, लकड़ियों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो। आज मेहमान कौन आया है।

यह सुनकर उसकी सास बाहर आकर अपने दिए हुए कष्टों को भुलाने हेतु कहती है- बहु ऐसा क्यों कहती है? तेरा मालिक ही तो आया है। आ बैठ, मीठा भात खा, भोजन कर, कपड़े-गहने पहिन। उसकी आवाज सुन उसका पति बाहर आता है।

अंगूठी देख व्याकुल हो जाता है।

माँ से पूछता है- माँ यह कौन है?

माँ बोली- बेटा यह तेरी बहु है। जब से तू गया है तब से सारे गाँव में भटकती फिरती है। घर का काम-काज कुछ करती नहीं, चार पहर आकर खा जाती है।

वह बोला- ठीक है माँ मैंने इसे भी देखा और तुम्हें भी, अब दूसरे घर की ताली दो, उसमें रहूँगा।

माँ बोली- ठीक है, जैसी तेरी मरजी। तब वह दूसरे मकान की तीसरी मंजिल का कमरा खोल सारा सामान जमाया। एक दिन में राजा के महल जैसा ठाट-बाट बन गया। अब क्या था? बहु सुख भोगने लगी। इतने में शुक्रवार आया।

शुक्रवार व्रत के उद्यापन में हुई भूल, किया खटाई का इस्तेमाल-

उसने पति से कहा- मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है।

पति बोला- खुशी से कर लो। वह उद्यापन की तैयारी करने लगी। जिठानी के लड़कों को भोजन के लिए कहने गई। उन्होंने मंजूर किया परन्तु पीछे से जिठानी ने अपने बच्चों को सिखाया, देखो, भोजन के समय खटाई माँगना, जिससे उसका उद्यापन पूरा न हो।

लड़के जीमने आए खीर खाना पेट भर खाया, परंतु बाद में खाते ही कहने लगे- हमें खटाई दो, खीर खाना हमको नहीं भाता, देखकर अरुचि होती है।

वह कहने लगी- भाई खटाई किसी को नहीं दी जाएगी। यह तो संतोषी माता का प्रसाद है।

लड़के उठ खड़े हुए, बोले- पैसा लाओ, भोली बहू कुछ जानती नहीं थी, उन्हें पैसे दे दिए।

लड़के उसी समय हठ करके इमली खटाई ले खाने लगे। यह देखकर बहु पर माताजी ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए। जेठ जेठानी मन-माने वचन कहने लगे। लूट-लूट कर धन इकट्ठा कर लाया है, अब सब मालूम पड़ जाएगा जब जेल की मार खाएगा। बहू से यह सहन नहीं हुए।

माँ संतोषी से माँगी माफी-

रोती हुई माताजी के मंदिर गई, कहने लगी- हे माता! तुमने क्या किया, हंसा कर अब भक्तों को रुलाने लगी।

माता बोली- बेटी तूने उद्यापन करके मेरा व्रत भंग किया है।

वह कहने लगी- माता मैंने कुछ अपराध किया है, मैंने तो भूल से लड़कों को पैसे दे दिए थे, मुझे क्षमा करो। मैं फिर तुम्हारा उद्यापन करूँगी।

माँ बोली- अब भूल मत करना।

वह कहती है- अब भूल नहीं होगी, अब बतलाओ वे कैसे आवेंगे?

माँ बोली- जा पुत्री तेरा पति तुझे रास्ते में आता मिलेगा। वह निकली, राह में पति आता मिला।

वह पूछी- कहाँ गए थे?

वह कहने लगा- इतना धन जो कमाया है उसका टैक्स राजा ने माँगा था, वह भरने गया था।

वह प्रसन्न हो बोली- भला हुआ, अब घर को चलो। कुछ दिन बाद फिर शुक्रवार आया..

फिर किया व्रत का उद्यापन-

वह बोली- मुझे फिर माता का उद्यापन करना है।

पति ने कहा- करो, बहु फिर जेठ के लड़कों को भोजन को कहने गई। जेठानी ने एक दो बातें सुनाई और सब लड़कों को सिखाने लगी। तुम सब लोग पहले ही खटाई माँगना।

लड़के भोजन से पहले कहने लगे- हमें खीर नहीं खानी, हमारा जी बिगड़ता है, कुछ खटाई खाने को दो।

वह बोली- खटाई किसी को नहीं मिलेगी, आना हो तो आओ, वह ब्राह्मण के लड़के लाकर भोजन कराने लगी, यथा शक्ति दक्षिणा की जगह एक-एक फल उन्हें दिया। संतोषी माता प्रसन्न हुई।

संतोषी माता का फल-

माता की कृपा होते ही नवमें मास में उसके चन्द्रमा के समान सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र को पाकर प्रतिदिन माता जी के मंदिर को जाने लगी।

माँ ने सोचा- यह रोज आती है, आज क्यों न इसके घर चलूं। यह विचार कर माता ने भयानक रूप बनाया, गुड़-चने से सना मुख, ऊपर सूंड के समान होठ, उस पर मक्खियां भिन-भिन कर रही थी।

देहली पर पैर रखते ही उसकी सास चिल्लाई- देखो रे, कोई चुड़ैल डाकिन चली आ रही है, लड़कों इसे भगाओ, नहीं तो किसी को खा जाएगी। लड़के भगाने लगे, चिल्लाकर खिड़की बंद करने लगे।

बहु रौशनदान में से देख रही थी, प्रसन्नता से पगली बन चिल्लाने लगी- आज मेरी माता जी मेरे घर आई है। वह बच्चे को दूध पीने से हटाती है। इतने में सास का क्रोध फट पड़ा।

वह बोली- क्या उतावली हुई है? बच्चे को पटक दिया। इतने में माँ के प्रताप से लड़के ही लड़के नजर आने लगे।

वह बोली- माँ मैं जिसका व्रत करती हूँ यह संतोषी माता है।

सबने माता जी के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे- हे माता! हम मूर्ख हैं, अज्ञानी हैं, तुम्हारे व्रत की विधि हम नहीं जानते, व्रत भंग कर हमने बड़ा अपराध किया है, जग माता आप हमारा अपराध क्षमा करो। इस प्रकार माता प्रसन्न हुई। बहू को प्रसन्न हो जैसा फल दिया, वैसा माता सबको दे, जो पढ़े उसका मनोरथ पूर्ण हो।

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रचनाएँ
व्रत कथाओं का संकलन
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यह संसार, यह शरीर, सुख-दुख सब परिवर्तनशील हैं। इस कारण मानव को व्रत और वेदांत दोनों की आवश्यकता होती है और होती रहेगी। व्रत और वेदांत हर परिस्थिति में मानव का संबल बनते हैं। आपने पढ़ा कि-वर्ष में २४ एकादशी व्रत होता है और २४ प्रदोष व्रत होता है। जिनमे की अलग-अलग दिन पड़ने वाले प्रदोष को वार के उस नाम से जाना जाता है, इन व्रतों में एकादशी व्रत भगवान विष्णु को तो प्रदोष व्रत शिवजी को समर्पित है। इसी प्रकार सप्ताह के सात दिन में सात व्रत होती है|
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श्री महालक्ष्मी व्रत कथा

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महालक्ष्मी देवी धन और समृद्धि की देवी हैं। इसलिए, धनी और समृद्ध जीवन की कामना करने वाले भक्तों द्वारा लगातार सोलह दिनों तक उनकी पूजा की जाती है। इस व्रत से जुड़ी एक किंवदंती के अनुसार, पांडव राजा युधि

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श्री गणेश जी की व्रत कथा

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श्री गणेश जी परम पूजिये हैं। ऐसा कहा जाता है कि किसी भी कार्य से पहले या पूजा विधि शुरू करने से पहले श्री गणेश की पूजा करना महत्वपूर्ण है, और कई लाभ लाता है। साथ ही जब कोई गणेश जी का व्रत रखता है तो श

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करवा चौथ की पौराणिक व्रत कथा

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करवा चौथ एक बहुत ही प्रसिद्ध व्रत है। यह न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में हिंदू परंपरा का पालन करने वाली महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। करवा चौथ एक बहुत ही प्रसिद्ध व्रत है। यह न केवल भारत में बल

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अहोई अष्टमी व्रत कथा

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अहोई अष्टमी उत्तर भारत में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। अहोई अष्टमी के दिन ज्यादातर माताएं अपने बच्चों की भलाई के लिए एक दिन का उपवास रखती हैं। करवा चौथ के चार दिन बाद अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है।

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कहानी 1 भाई दूज को लेकर एक पौराणिक कथा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य देव और उनकी पत्नी संग्या को संतान की प्राप्ति हुई, पुत्र का नाम यम और पुत्री का नाम यमुना था। सन्न्या भगवान सूर्यदेव की तपस्य

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होलिका और प्रहलाद की व्रत कथा

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हिरण्यकश्यप और उसकी पत्नी कयाधु के पुत्र प्रहलाद का जन्म और पालन-पोषण ऋषि नारद के मार्गदर्शन में हुआ था, जब हिरण्यकशिपु अमरता प्राप्त करने के लिए भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने में व्यस्त था। प्रहलाद

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सोमवार व्रत कथा

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ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति भगवान शिव को समर्पित है और सोमवार का व्रत रखता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आज तक लोग सोमवार का व्रत रखते हैं और इसी के साथ इस कथा को सुनते हैं। एक कस्बे में ए

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श्री सत्यनारायण कथा (प्रथम अध्याय)

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एक समय की बात है नैषिरण्य तीर्थ में शौनिकादि, अठ्ठासी हजार ऋषियों ने श्री सूतजी से पूछा हे प्रभु! इस कलियुग में वेद विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिल सकती है? तथा उनका उद्धार कैसे होग

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श्री सत्यनारायण कथा (द्वितीय अध्याय)

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सूत जी बोले: हे ऋषियों ! जिसने पहले समय में इस व्रत को किया था उसका इतिहास कहता हूँ, ध्यान से सुनो! सुंदर काशीपुरी नगरी में एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण रहता था। भूख प्यास से परेशान वह धरती पर घूमता रहता

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श्री सत्यनारायण कथा (तृतीय अध्याय)

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सूतजी बोले: हे श्रेष्ठ मुनियों, अब आगे की कथा कहता हूँ। पहले समय में उल्कामुख नाम का एक बुद्धिमान राजा था। वह सत्यवक्ता और जितेन्द्रिय था। प्रतिदिन देव स्थानों पर जाता और निर्धनों को धन देकर उनके कष्ट

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श्री सत्यनारायण कथा (चतुर्थ अध्याय)

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सूतजी बोले: वैश्य ने मंगलाचार कर अपनी यात्रा आरंभ की और अपने नगर की ओर चल दिए। उनके थोड़ी दूर जाने पर एक दण्डी वेशधारी श्रीसत्यनारायण ने उनसे पूछा: हे साधु तेरी नाव में क्या है? अभिवाणी वणिक हंसता हुआ

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श्री सत्यनारायण कथा (पंचम अध्याय)

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सूतजी बोले: हे ऋषियों ! मैं और भी एक कथा सुनाता हूँ, उसे भी ध्यानपूर्वक सुनो! प्रजापालन में लीन तुंगध्वज नाम का एक राजा था। उसने भी भगवान का प्रसाद त्याग कर बहुत ही दुख सान किया। एक बार वन में जाकर वन

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मंगलवार व्रत कथा

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ऋषिनगर में केशवदत्त ब्राह्मण अपनी पत्नी अंजलि के साथ रहता था। केशवदत्त के घर में धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी। नगर में सभी केशवदत्त का सम्मान करते थे, लेकिन केशवदत्त संतान नहीं होने से बहुत चिंतित रह

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बृहस्पतिवार की व्रत कथा

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॥ अथ श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा ॥ भारतवर्ष में एक प्रतापी और दानी राजा राज्य करता था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था। यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी, वह न ही गरीबों को दान देत

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साईं बाबा व्रत कथा

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एक बार की बात है। कोकिला नाम की एक महिला अपने पति महेश भाई के साथ गुजरात के एक शहर में रहती थी। वे दोनों एक-दूसरे के साथ प्रेम भाव से रहते थे। लेकिन उसके पति का स्वभाव बहुत ही झगड़ालू था। वही कोकिला ब

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संतोषी माता व्रत कथा

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रविवार की व्रत कथा

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प्राचीन काल में एक बुढ़िया रहती थी। वह नियमित रूप से रविवार का व्रत करती। रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती, उसके बाद सूर्य भगवान की

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तुलसी विवाह की पौराणिक कथा

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हिंदू धर्म में तुलसी पूजन का बड़ा महत्त्व है। ऐसा माना जाता है की तुलसी में साक्षात लक्ष्मी जी का निवास है। महिलायें तुलसी विवाह भी करती हैं जो की कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी को होती है। ऐसी मान्यता

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सकट चौथ की व्रत कथा

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आज सकट चौथ का व्रत मनाया जाता है। आज शाम को गणेश जी की पूजा होती है और गणेश जी की कथा सुनी जाती है। आप आज के व्रत की कोई भी प्रचलित कथा सुन एवं पढ़ सकते हैं। सकट चौथ के व्रत में शंकर भगवान और गणेश जी क

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सुन्दरकाण्ड श्री रामचरित मानस

10 मई 2022
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॥श्लोक॥ शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं। ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्॥ रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं। वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्॥१॥

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तिल चौथ की व्रत कथा

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एक शहर में देवरानी - जेठानी रहती थी। जेठानी अमीर थी और वहीँ देवरानी गरीब थी। देवरानी गणेश जी की भक्त थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काट कर बेचता था और अक्सर बीमार ही रहता था। देवरानी, जेठानी के घर का

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वट सावित्री व्रत कथा

10 मई 2022
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यह विवाहित हिंदू महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण पालन है, व्रत ज्येष्ठ के महीने में या तो पुरीना या अमावस्या पर मनाया जाता है। उपवास 'त्रयोदशी' (13 वेंदिन) से शुरू होता है और पूर्णि माया अमावस्या पर समाप

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बुधवार व्रत कथा

10 मई 2022
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पौराणिक कथा के अनुसार, मधुसूदन नाम का एक व्यक्ति समतापुर नगर में रहता था. उसका विवाह पास के ही बलरामपुर की संगीता से हुआ था. वह सुंदर और सुशील थी. एक दिन मधुसूदन अपनी पत्नी को साथ लाने के लिए अपने ससु

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कामदा एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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कामदा एकादशी यह व्रत रखने से पाप और कष्ट मिटते हैं. भगवान श्री विष्णु की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं. जो लोग व्रत रखते हैं, उनको कामदा एकादशी व्रत कथा का पाठ

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पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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पुत्रदा एकादशी का महत्त्व: श्री युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! मैंने श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की कामिका एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप मुझे श्रावण शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? व्रत करने की विध

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षटतिला एकादशी की व्रत कथा

11 मई 2022
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पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार नारद जी ने भगवान विष्णु से षटतिला एकादशी की कथा और उसके महत्व के बारे में बताने का निवेदन किया. तब श्रीहरि विष्णु ने उनको षटतिला एकादशी की कथा सुनाई, जिससे इस व्रत के महत

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जया एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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जया एकादशी व्रत आज है. माघ शुक्ल एकादशी को जया एकादशी व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु  की पूजा करते हैं और जया एकादशी व्रत कथा का श्रवण करते हैं. इस व्रत कथा के श्रवण से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त

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विजया एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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विजया एकादशी का व्रत आज 26 फरवरी दिन शनिवार को है. इस व्रत को करने से विजय की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और व्रत कथा का श्रवण किया जाता है. इस व्रत कथा के श्रवण करने या पढ़

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विजया एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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विजया एकादशी का व्रत आज 26 फरवरी दिन शनिवार को है. इस व्रत को करने से विजय की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और व्रत कथा का श्रवण किया जाता है. इस व्रत कथा के श्रवण करने या पढ़

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आमलकी एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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आमलकी एकादशी का व्रत हर वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को होता है। इस वर्ष आमलकी एकादशी  इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भगवान विष्णु जी की पूजा विधि विधान से की जाती है। दिन भर व्रत रखा ज

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पापमोचनी एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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पापमोचनी एकादशी व्रत  पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा करते हैं और पापमोचनी एकादशी व्रत कथा का पाठ क

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कामदा एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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कामदा एकादशी व्रत विधि :-  आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली कामदा एकादशी की पूजा विधि इस प्रकार है: इस दिन स्नान से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें और भगवान की पूजा करें।  एकादशी व्रत के एक दिन

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वरुथिनी एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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यह व्रत वरुथिनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है. इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा करने से कष्ट एवं दुख दूर होते हैं और स्वर्ग की प्राप्ति होती है. जिन पर भगवान विष्णु की कृपा होती है, उनको मृत्यु के ब

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मोहिनी एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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मोहिनी एकादशी को लेकर एक और कथा प्रचलित :-  पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार की बात है प्रभु श्री राम जी ने महर्षि वशिष्ठ से कहा हे गुरुश्रेष्ठ! मैंने जनक नंदिनी सीता जी के वियोग में बहुत कष्ट भोगे है

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अपरा एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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हिंदी पंचाग के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के प्रत्येक ग्यारहवीं तिथि को एकाशी कहते हैं। एक वर्ष में कुल 24 एकादशी पड़ते हैं। वहीं, मलमास होने पर इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। एकादशी के दिन भगवान विष्

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पाण्डव निर्जला एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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जीवन मंत्र :-  निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का मात्र धार्मिक महत्त्व ही नहीं है। ये व्रत मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के

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योगिनी एकादशी व्रत

11 मई 2022
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योगिनी एकादशी  प्रत्येक वर्ष आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। योगिनी एकादशी व्रत को करने से 88 हजार ब्राह्राणों को भोजन करने के बराबर का फल मिलता है इसलिए इस व्रत का अपना विशेष म

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देवशयनी एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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देवशयनी एकादशी का महत्त्व: ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष माहात्म्य का वर्णन किया गया है। इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। यह एकादशी आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की ए

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कामिका एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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महाभारतकाल में एक समय में कुंतीपुत्र धर्मराज युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण ने कहा, “हे भगवन, कृपा करके मुझे श्रावण कृष्ण एकादशी का नाम और महत्व बताइए। श्रीकृष्ण ने कहा कि हे युधिष्ठिर! इस एकादशी की कथा एक स

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श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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मान्यता है कि इस एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से संतान सुख की प्राप्ति का वरदान प्राप्त होता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्रावण पुत्र

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अजा एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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अजा एकादशी का महत्त्व: अर्जुन ने कहा: हे पुण्डरिकाक्ष! मैंने श्रावण शुक्ल एकादशी अर्थात पुत्रदा एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के विषय में भी

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परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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पद्मा एकादशी या 'परिवर्तनी एकादशी' भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहा जाता है। यह लक्ष्मी का परम आह्लादकारी व्रत है। इस दिन आषाढ़ मास से शेष शैय्या पर निद्रामग्न भगवान विष्णु शयन करते हुए करवट

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इंदिरा एकादशी की व्रत कथा

11 मई 2022
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पितृ पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत अधिक महत्व होता है। इस पावन दिन भगवान विष्णु की विधि- विधान से पूजा- अर्चना की.. पितृ पक्ष में पड़ने वाली ए

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पापांकुशा एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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पापांकुशा एकादशी का महत्त्व: अर्जुन कहने लगे कि हे जगदीश्वर! मैंने आश्विन कृष्ण एकादशी अर्थात इंदिरा एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे आश्विन/क्वार माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के वि

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रमा एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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रमा एकादशी कब मनाई जाती हैं उत्तरी भारत के कैलेंडर के अनुसार रमा एकादशी कार्तिक माह में आती है, जबकि तमिल कैलेंडर में ये पुरातास्सी महीने में आती है. आंध्रप्रदेश, कर्नाटका, गुजरात एवं महाराष्ट्र में

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देवोत्थान / प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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देवोत्थान एकादशी का महत्त्व: धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! मैंने कार्तिक कृष्ण एकादशी अर्थात रमा एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के व

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उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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उत्पन्ना एकादशी का महत्त्व: धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! मैंने कार्तिक शुक्ल एकादशी अर्थात प्रबोधिनी एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एका

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मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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मोक्षदा एकादशी का महत्त्व: धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! मैंने मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी अर्थात उत्पन्ना एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एक

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सफला एकादशी व्रत कथा

11 मई 2022
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सफला एकादशी का महत्त्व: धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे जनार्दन! मैंने मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी अर्थात मोक्षदा एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के व

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पहला प्रदोष व्रत,

11 मई 2022
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हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। हर माह दो प्रदोष व्रत पड़ते हैं। एक शुक्ल पक्ष में और दूसरा कृष्ण पक्ष में। इस व्रत का नाम प्रदोष माना गया है।  हिंदू पंचां

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शनिवार पहला प्रदोष व्रत कथा

11 मई 2022
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हर महीने में प्रदोष व्रत दो बार आता है. एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में. साल के पहले महीने जनवरी में इस बार पहला प्रदोष व्रत  है. इसलिये इसे शन‍ि प्रदोष भी कहा जाता है. प्रदोष व्रत के दिन भगवान

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सोम प्रदोष व्रत

11 मई 2022
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भगवान विष्णु की पूजा के लिए जिस तरह एकादशी को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, उसी प्रकार भगवान शिव की पूजा के लिए प्रदोष का विशेष महत्व है। इसमें भी सोमवार को पड़ने वाला प्रदोष श्रेष्ठ माना जाता है।

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