यह व्रत वरुथिनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है. इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा करने से कष्ट एवं दुख दूर होते हैं और स्वर्ग की प्राप्ति होती है. जिन पर भगवान विष्णु की कृपा होती है, उनको मृत्यु के बाद मोक्ष भी मिलता है. जो लोग इस दिन व्रत रखते हैं, वे वरुथिनी एकादशी कथा का पाठ भी करते हैं, जिससे व्रत का महत्व पता चलता है. आइए जानते हैं वरुथिनी एकादशी व्रत कथा के बारे में.
वरुथिनी एकादशी व्रत कथा :-
एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से वरुथिनी एकादशी व्रत के महत्व को बताने का निवेदन किया. तब श्रीकृष्ण ने कहा कि वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी ही वरुथिनी एकादशी है. इस व्रत को करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. उन्होंने वरुथिनी एकादशी व्रत के महत्व को इस कथा के माध्यम से बताया.
एक समय में नर्मदा नदी के तट पर राजा मांधाता राज्य करते थे. वह धर्मात्मा एवं दानी व्यक्ति थे. एक बार वे जंगल के पास तपस्या कर रहे थे. तभी वहां एक भालू आया और उनके पैर को चबाने लगा. फिर वह राजा को घसीट कर जंगल में ले गया. इस दौरान राजा की तपस्या भंग हो गई और वे घायल हो गए.
उन्होंने भगवान विष्णु को मन ही मन ध्यान करके अपने प्राणों की रक्षा की प्रार्थना की. तब भगवान विष्णु प्रकट हुए और अपने चक्र से उस भालू को मारकर राजा मांधाता के प्राणों की रक्षा की. भालू के हमले में राजा मंधाता अपंग हो गए थे, इस वजह से वे दुखी और कष्ट में थे. उन्होंने भगवान विष्णु से इस शारीरिक और मानसिक पीड़ा को दूर करने का उपाय पूछा.
तब श्रीहरि ने कहा कि यह तुम्हारे पूर्वजन्म के अपराध का फल है. तुमको मथुरा में वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखना होगा और मेरे वराह अवतार की पूजा करनी होगी. उसके पुण्य प्रभाव से ही कष्ट और दुख दूर होंगे.
भगवान विष्णु के बताए अनुसार राजा मांधाता मथुरा पहुंच गए और विधिपूर्वक वरुथिनी एकादशी का व्रत रखा और वराह अवतार की पूजा की. इस व्रत के पुण्य फल से राजा मांधाता के कष्ट और दुख दूर हो गए, वे फिर से शारीरिक तौर पर अच्छे हो गए. उनको भगवान विष्णु की कृपा से स्वर्ग की प्राप्ति भी हुई.