पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार नारद जी ने भगवान विष्णु से षटतिला एकादशी की कथा और उसके महत्व के बारे में बताने का निवेदन किया. तब श्रीहरि विष्णु ने उनको षटतिला एकादशी की कथा सुनाई, जिससे इस व्रत के महत्व का पता चलता है.
एक नगर में एक ब्राह्मणी थी, जो भगवान विष्णु की भक्त थी. वह सभी व्रत नियम से करती थी. एक बार उसने लगातार एक माह तक व्रत किया, जिससे वह कमजोर हो गई. व्रत के प्रभाव से शरीर शुद्ध हो गया. भगवान विष्णु ने सोचा कि व्रत के पुण्य से उसे विष्णु लोक में स्थान मिल जाएगा, लेकिन उसकी आत्मा तृप्त नहीं रहेगी.
उस ब्राह्मणी ने पुण्यकर्म और व्रत किए थे, लेकिन एक गलती की थी कि उसने कभी किसी को कोई दान नहीं दिया था. इस वजह से उसे विष्णु लोक में तृप्ति नहीं मिल पाती. भगवान विष्णु उसकी आत्म तृप्ति के लिए स्वयं ही उसके घर भिक्षा मांगने पहुंच गए. उन्होंने उसके दरवाजे पर पहुंचकर आवाज लगाई और भिक्षा मांगी. उस ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु को भिक्षा में मिट्टी का एक पिंड दिया.
श्रीहरि विष्णु वहां से अपने लोक आ गए. मृत्यु के बाद वह ब्राह्मणी विष्णुलोक पहुंच गई. वहां पर उसे एक कुटिया और आम का एक पेड़ मिला. वह खाली कुटिया देखकर दुखी हो गई. उसने पूछा कि उसने पूरे जीवन सभी व्रत नियम से किए, फिर उसे विष्णु लोक में खाली कुटिया और आम का पेड़ ही क्यों मिला?
इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि तुमने कभी भी किसी को कोई दान नहीं दिया. इसका दंड तुम्हें यहां मिला है. तब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. उसने प्रभु से इससे मुक्ति का मार्ग पूछा. तब उन्होंने बताया कि तुम अपनी कुटिया का द्वार बंद कर लेना, जब देव कन्याएं तुमसे मिलने आएं, तो उनसे षटतिला एकादशी व्रत की विधि पूछ लेना. षटतिला एकादशी व्रत विधि जानने के बाद ही कुटिया का द्वार खोलना.
एक दिन जब देव कन्याएं उससे मिलने के लिए आईं, तो उसने वैसे ही किया जैसे भगवान विष्णु ने कहा था. देव कन्याओं ने उसे षटतिला एकादशी व्रत के बारे में विस्तार से बताया. तब उसने माघ कृष्ण एकादशी को षटतिला एकादशी व्रत पूरे विधि विधान से किया. व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया धन धान्य से परिपूर्ण हो गई. षटतिला एकादशी व्रत के दिन तिल का दान करना चाहिए.