मोहिनी एकादशी को लेकर एक और कथा प्रचलित :-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार की बात है प्रभु श्री राम जी ने महर्षि वशिष्ठ से कहा हे गुरुश्रेष्ठ! मैंने जनक नंदिनी सीता जी के वियोग में बहुत कष्ट भोगे हैं, अतः मेरे कष्टों का नाश किस प्रकार होगा? आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताने की कृपा करें, जिससे मेरे सभी पाप और कष्ट नष्ट हो जाएं। आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताएं जिसके प्रभाव से समस्त पापों और दुखों से मुक्ति प्राप्त हो सके। भगवान राम को संबोधित करते हुए वशिष्ठ मुनि ने कहा, हे राम आपका प्रिय नाम समस्त प्राणियों के दुखों का नाश करता है लेकिन फिर भी आपने जनकल्याण के लिए ये प्रश्न पूछा है, जो कि प्रशंसनीय है। मैं आपको एक एकादशी व्रत का माहात्म्य सुनाता हूं - वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम मोहिनी एकादशी है। इस एकादशी का उपवास करने से मनुष्य के सभी पाप तथा क्लेश नष्ट हो जाते हैं। इस उपवास के प्रभाव से मनुष्य मोह के जाल से मुक्त हो जाता है। अतः हे राम! दुखी मनुष्य को इस एकादशी का उपवास अवश्य ही करना चाहिये। इस व्रत के करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
वशिष्ठ मुनि ने बताया प्राचीन समय में सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसी नगरी में एक वैश्य रहता था, जो धन- धान्य से परिपूर्ण था। उसका नाम था धर्मपाल, वह सदा पुण्य कर्मों में ही लगा रहता था। दूसरों के लिए कुआं, मठ बगीचा, पोखरा और घर बनवाया करता था। भगवान श्री विष्णु की भक्ति में वह सदा लीन रहता था। उस वैश्य के पांच पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़ा पुत्र अत्यन्त पापी व दुष्ट था। वह वेश्याओं और दुष्टों की संगति करता था। इससे जो समय बचता था, उसे वह जुआ खेलने में व्यतीत करता था। वह बड़ा ही अधम था और देवता, पितृ आदि किसी को भी नहीं मानता था। अपने पिता का अधिकांश धन वह बुरे व्यसनों में ही उड़ाया करता था। मद्यपान तथा मांस का भक्षण करना उसका नित्य कर्म था।
जब काफी समझाने-बुझाने पर भी वह सीधे रास्ते पर नहीं आया तो दुखी होकर उसके पिता, भाइयों तथा कुटुम्बियों ने उसे घर से निकाल दिया और उसकी निंदा करने लगे। घर से निकलने के बाद वह अपने आभूषणों तथा वस्त्रों को बेच-बेचकर अपना गुजारा करने लगा। फिर वह चोरी करने लगा। एक बार चोरी करते समय सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और कारागार में डाल दिया। कुछ समय बाद उसे नगर छोड़ने पर विवश होना पड़ा और वह जंगल में पशु पक्षियों को मारकर पेट भरने लगा। उसी समय वह कौटिन्य मुनि के आश्रम में जा पहुंचा। इन दिनों वैशाख का महीना था। कौटिन्य मुनि गंगा से स्नान करके आ रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों के छीटे मात्र से पापी को कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई। वह ऋषि के पास जाकर हाथ जोड़कर कहने लगा हे महात्मा! मैंने बहुत सारे पाप किए हैं, कृपया मुझे इन पापों से मुक्त होने का उपाय बताएं। महर्षि ने उसे एकादशी व्रत का महत्व समझाया और एकादशी व्रत रखने को कहा। ऋषि ने कहा कि अगर तुम वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करोगे तो इसके उपवास करने से तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे क्योंकि इस एकादशी को मोहिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस व्रत के प्रभाव से वैश्य पुत्र के सभी पाप नष्ट हो गए। अंत में वह गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को गया. संसार में इस व्रत से उत्तम दूसरा कोई व्रत नहीं है।इसके माहात्म्य के श्रवण व पाठ से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह पुण्य एक सहस्र गोदान के पुण्य के बराबर है।