नई दिल्ली : यूपी में समाजवादी पार्टी के घराने में चल रही बाप-बेटे की घमासान को शांत कराने की तमाम कोशिशों के बावजूद ना हो अखिलेश यादव और ना ही मुलायम सिंह यादव समझौता करने के लिए तैयार हैं. जिसके चलते आज़म खान का प्रयास भी खली गया. बताया जाता है कि अब दोनों लोग अपने - अपने कंडीडेट को सूबे कि 403 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ाने की तैयारी कर चुके हैं.
अखिलेश की शर्तें मुलायम खेमा मानने को तैयार नहीं
सूत्रों के मुताबिक अखिलेश यादव द्वारा पेश की गई शर्तों को मुलायम सिंह यादव खेमा मानने को तैयार नहीं हुआ है. यहां तक कि दोनों खेमे अपनी-अपनी शर्तों पर अड़े रहे. मुलायम सिंह यादव का मानना है कि अखिलेश की शर्तों को मानने का मतलब है कि पार्टी में उनकी कोई भूमिका नहीं रह जाएगी. उधर पार्टी सूत्रों का कहना है कि आजम खान ने अभी भी हार नहीं मानी है. वे दोनों को मनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं.
पहले की मुलाकात भी बेनतीजा रही
इससे पहले बुधवार को शिवपाल यादव और आजम खान ने मुलायम सिंह यादव से उनके घर जाकर मुलाकात की. मंगलवार को दिन में और फिर रात लखनऊ में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की बातचीत हुई जो बेनतीजा रही थी. इसमें कोई फॉर्मुला नहीं निकल सका था. मुलायम और अखिलेश की इस बैठक में चाचा शिवपाल भी मौजूद थे. इस बीच रामगोपाल यादव ने दिल्ली में चुनाव आयोग के साथ बैठक के बाद कहा कि कोई समझौता होने नहीं जा रहा. हम अखिलेश यादव की अध्यक्षता में चुनाव लड़ने जा रहे हैं.
मुलाकात के दौरान अखिलेश पक्ष ने रखी थी ये पेशकश
- मुलायम सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष रहें
- अमर सिंह पार्टी के बाहर रहें
- शिवपाल को केंद्र की राजनीति में भेजा जाए
- शिवपाल यूपी की सियासत में दखल ना दें
- अखिलेश पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बनें
- रामगोपाल यादव को टिकट बांटने का अधिकार मिले
अधिकांश MLA अखिलेश के साथ
चुनाव आयोग से मुलाकात के बाद आज रामगोपाल यादव ने कहा है कि 90 फीसदी विधायक अखिलेश यादव का समर्थन कर रहे हैं. इसलिए उनके गुट को ही समाजवादी पार्टी माना जाना चाहिए. रामगोपाल ने यह भी कहा कि पार्टी का चुनाव चिह्न भी उनके गुट को ही मिलना चाहिए. इससे पहले सोमवार को मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव, अमर सिंह और जया प्रदा चुनाव आयोग पहुंचे थे और अपना पक्ष रखा था.
हथियार डालने को कोई तैयार नहीं
साइकिल का हैंडल कौन थामेगा अब गेंद चुनाव आयोग के पाले में है हालांकि यह भी सही है कि इस तरह के मामलों में फैसले के लिए कई महीनों का वक्त चाहिए. ऐसे में साइकिल जब्त हो सकती है. इसका अहसास दोनों खेमों को है, लेकिन हथियार डालने को कोई तैयार नहीं.
चुनाव आयोग दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद करेगा फैसला
चुनाव आयोग के मुताबिक वह दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद ही फैसला करेगा, जिसकी सुनवाई कोई सदस्य नहीं बल्कि पूरा कमीशन करेगा. लेकिन इसमें कुछ महीनों का वक्त लग सकता है. पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी के मुताबिक इस तरह के मामलों में फैसला सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक दिए जाते हैं. देखा जाएगा कि बहुमत किसके साथ है. फैसला नहीं होने पर चुनाव चिन्ह फ्रीज हो जाएगा. दोनों पक्षों को अस्थायी चुनाव चिह्न मिलेगा. दोनों पार्टियां भी अस्थायी चिह्न चुन सकती हैं.