नई दिल्ली : समाजवादी कुनबे में पिछले कई महीनों से चल रही घमासान भले ही दुनिया को दिखाने के लिए ख़त्म कर दी गयी है, लेकिन हकीकत यह है कि बाप-बेटे ही नहीं बल्कि चाचा शिवपाल और भतीजे सीएम अखिलेश के बीच अभी भी भीतर ही भीतर मनमुटाव चल रहा है.
सीएम अखिलेश फिर बने बबुआ
ये बात 'इंडिया संवाद' नहीं बल्कि पिछले कुछ दिनों से सपा पार्टी में जारी हुए फरमान कह रहे हैं. विदित हो कि जिस राज्यसभा सांसद अमर सिंह को सीएम अखिलेश पराया बता रहे थे, उन्हें ही पार्टी मुखिया मुलायम सिंह ने संसदीय बोर्ड का सदस्य बना देने का फरमान जारी कर दिया. यही नहीं अब अमर सिंह को सपा का स्टार प्रचारक भी बनाया जा रहा है. कल तक अमर सिंह को ताल ठोंककर ललकारने वाले मुलायम के चचेरे भाई डॉ राम गोपाल भी अमर को लेकर बाहरी बता रहे थे. अब क्या मजबूरी हो गयी कि वह उनको अब अपना प्रिय मित्र कह रहे हैं और उनको मनोनीत करने की चिट्ठी जारी कर रहे हैं.
चुनाव में हो सकता है नुकसान
सूत्रों के मुताबिक सीएम अखिलेश भी चुपचाप बैठे हैं. क्या वजह है कि घर में मची इस घमासान को लेकर कहीं मुलायम विधानसभा चुनाव से पहले सूबे कि जनता को यह संदेश तो नहीं देना चाहते हैं कि उनके कुनबे में कोई मतभेद नहीं है. लेकिन सीएम अखिलेश के नजदीकि जानकारों का कहना है कि सपा में अखिलेश के विरोध के बावजूद ऐसे लोगों को चाचा शिवपाल ने टिकट बांट दिए है, जिनका उन्होंने पुरजोर तरीके से विरोध शुरू से किया था.
मुलायम ने अखिलेश को किया किनारे
और तो और जिस अमर सिंह को घर का बाहरी व्यक्ति सीएम अखिलेश कह रहे थे. अब वही बाहरी व्यक्ति अमर सिंह समाजवादी कुनबे का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बन गया है. पहले मुलायम ने उनको संसदीय बोर्ड का सदस्य और अब पार्टी का स्टार प्रचारक बनाने की चर्चा चल रही है. इसी तरह चाचा शिवपाल ने भी टिकट बंटवारा करते समय अखिलेश से कोई सलाह नहीं ली और अपराधियों और माफियाओं को पार्टी का टिकट विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए दे दिया. फिलहाल मुलायम जानते हैं कि अखिलेश अभी राजनीति में परिपक्य नहीं हो सके हैं. जिसके चलते उनको किनारे लगाते हुए पार्टी की जिम्मेदारी मुलायम सिंह और शिवपाल ने अपने कन्धों पर ले ली है.
पुराने रीतिरिवाज है सपा में धक्का देने का
दरअसल समाजवादी पार्टी ने यह करके दिखा दिया है कि धक्का खाने वालों को तरजीह ही नहीं मिलेगी बल्कि लालबत्ती और टिकट के भी तोहफे से नवाजा जायेगा. अब यह बात दीगर है कि कौन किसके लिए धक्का खाया. जिसने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का गुणगान करने पर धक्का खाया. उस जावेद आब्दी को मुख्यमंत्री ने लालबत्ती थमा दी, लेकिन जिस अतीक अहमद को शिवपाल की गलबहियां करने के चलते मुख्यमंत्री ने धक्का दिया. उनको उपकृत करने वाला लालबत्ती देने की हैसियत में न हो तो क्या हुआ. कमसे कम टिकट तो थमाया ही जा सकता है. इसलिए प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने उन पर लगे तमाम आरोपों को दरकिनार कर विधानसभा में उम्मीदवार बनाने की मुनादी कर दी.
सपा में धक्के की शुरुआत डीपी यादव से हुई
समाजवादी पार्टी में धक्के की शुरुआत डीपी यादव से हुई थी. सत्ता के शुरुआती दिनों में ही कभी डीपी यादव को पार्टी स्तर पर धकियाकर समाजवादी पार्टी के नये युग का उद्घोष मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किया था. और ऐलान किया था कि अब समाजवादी पार्टी में माफियावाद नहीं चलेगा. साढ़े चार साल तक इसकी पुरजोर कोशिश भी की. लेकिन अब जब वह संगठन में प्रभावी नहीं हैं और प्रदेश अध्यक्ष का पद उनके पास नहीं है तो समाजवादी पार्टी ने तकरीबन अपने करीबी सभी दागियों को टिकट देकर एक इशारा तो शिवपाल यादव ने कर ही दिया है कि अब टिकट बंटवारे में अखिलेश की नहीं चल रही.
क्या देर सबेर टिकट कट सकते हैं प्रत्याशियों के ?
यह भी संभव है कि देर-सबेर इन टिकटों में बदलाव हो जाए और सभी दागियों के टिकट भी कट जाएं. अगर ऐसा हो तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि समाजवादी पार्टी में अंतिम तौर पर निर्णायक वही होता है जो अखिलेश यादव चाहते हैं। फाइनल गोल वही मारते हैं। बीते तकरीनब बीस दिनों से समाजवादी कुनबा यह संदेश देने की हर संभव कोशिश कर रहा है कि सब कुछ ठीक है। अब आपसी रार खत्म हो चुकी है। कभी शिवपाल रामगोपाल के पैर छूकर संदेश देते हैं तो मुख्यमंत्री चाचा शिवपाल को बुके देकर और मंच पर पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं. लेकिन अब फिर दिखने लगा है कि जो दिख रहा है. वह सच नहीं है और जो सच है. वह अब दिखने लगा है.
रार की शुरुआत सपा हाईकमान खेमे से हुई
इस बार रार की शुरुआत भी सपा हाईकमान खेमे से हुई. बीते दिनों कई बार शिवपाल के कहने पर अखिलेश बिग्रेड के साथियों ने सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव से मिलकर माफीनामा दिया और संगठन के लिए काम करने का मौका देने की अपील की. मुलायम ने भी सबको जुटने का संदेश दिया. लेकिन जब पंद्रह दिन बीतने के बाद भी इन सबकी वापसी नहीं हुई तो संदेश यही गया कि प्रदेश अध्यक्ष ने इनकी वापसी पर पलीता लगा दिया. ऐसे में अखिलेश के पास यही उपाय था कि उन्होंने उस जावेद आब्दी को कभी शिवपाल के महकमे सिंचाई विभाग का सलाहकार बना दिया, जिसे उनका गुणगान करने पर शिवपाल ने रजत जयंती समारोह के मंच से धक्का दे दिया था. ऐसा करके मुख्यमंत्री ने संदेश देने की कोशिश की कि अभी भी बाजी उनके हाथ से निकली नहीं है. लेकिन मुख्यमंत्री को पता नहीं था कि उन्हें अगले दिन ही काउंटर मिल जायेगा और ऐसे प्रत्याशियों का ऐलान होगा जो उनकी स्वच्छ छवि को ही बट्टा लगा देंगे.