नई दिल्लीः पिछले दो महीने के घटनाक्रम से चुनाव में नुकसान की आशंका से डरी समाजवादी पार्टी ने आखिरकार महागठबंधन की दिशा में कदम बढ़ा ही दिए। पहले शिवपाल यादव की रालोद मुखिया अजित सिंह और जदयू नेता शरद यादव से मुलाकात और अब राहुल गांधी के दूत व चुनावी मैनेजर प्रशांत किशोर से सपा सुप्रीम मुलायम सिंह यादव से मीटिंग ने साफ कर दिया है कि अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो चुनाव से पहले लोहियावादी, चौधरीचरण सिंह और गांधीवादी राजनीति से जुड़े दल बिहार की तर्ज पर महागठबंधन का मोर्चा भाजपा के खिलाफ खड़ा कर सकते हैं।
सपा के सिल्वर जुबली पर दिख सकता है महागठबंधन का अक्स
पांच नवंबर को स्थापना के 25 साल पूरे होने पर समाजवादी पार्टी रजत जयंती समारोह मनाने जा रही। लखनऊ में इस दौरान लोहिया, चरण और गांधीवादी दलों को एकजुट करने की मुलायम सिंह ने तैयारी की है। यही वजह है कि उन्होंने परिवारिक कलह का आंशिक रूप से निपटारा होते ही प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव को महागठबंधन के नेताओं से मुलाकात का टास्क सौंप दिया। शिवपाल और मुलायम सिंह यादव की ओर से कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल, राजद और जदयू को निमंत्रण भी भेजा है। ऐसे में अगर सभी दलों के नेता पांच नवंबर को जुटते हैं तो एक प्रकार से यह महागठबंधन की झलक(अक्स) होगी।
क्या कांग्रेस और सपा सचमुच में कर सकते हैं गठबंधन
महागठबंधन की राह में दलों की महत्वाकाक्षा सबसे बड़ी रोड़ा है। बरेली कॉलेज के राजनीतिक वि ज्ञान के प्राध्यापक डॉ. आरपी यादव कहते हैं कि अगर कांग्रेस ने शीला दीक्षित के रूप में मुख्यमंत्री का चेहरा न तय किया होता तो इस गठबंधन की राह थोड़ी आसान थी। मगर सपा अखिलेश के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी, यह दीगर बात है कि चुनाव में जीत के बाद नेता चुनने की बात राजनीतिक तौर पर पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव कर रहे हैं। इस प्रकार कांग्रेस और सपा चुनाव से पहले शायद ही सीएम दावेदार के मुद्दे पर एकमत हो सकें।