लखनऊ ब्यूरो: उत्तर प्रदेश का यह विधान सभाई चुनाव प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राजनीति क भविष्य के लिये मील के पत्थर जैसा महत्वपूर्ण है। इसलिये उसके रणनीतिकारों ने इस चुनाव की व्यूह रचना करते समय पूर्वांचल में जातीय समीकरण के साथ ही प्रत्याशी की संभावित विजय का पूरा पूरा ध्यान रखा है। इसकी सबसे खास वजह यह है इन्हीं दो बातों अमल में लाने के बाद ही इस चुनाव में भाजपा की अपेक्षा सपा और बसपा को कहीं अधिक सीटें मिलती रही है। भाजपा की राह में अभी तक सबसे बडी बाधा उसमें चल रहा भयानक अंतर्कलह भी रहा है। इस बार ऐसा कुछ भी नहीं है। सिर्फ वरुण गांधी को छोडकर नीचे से लेकर ऊपर तक पूरी भाजपा एकजुट है।
पूर्वांचल में जातीय समीकरण के मद्देनजर इस बार भाजपा ने इसे बडी गंभीरता से अपनी चुनावी रणनीति में महत्वपूर्ण बदलाव किया है। इसमें सबसे खास बात इस तथ्य पर पूरा जोर देना रहा है कि चुनाव के जिस चरण में सपा अथवा बसपा में जो मजबूत दिखे, उसे कमजोर बताना होगा। मसलन, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनाव के पहले चरण में बसपा मुस्लिम और दलित गठजोड में जुटी थी, तो भाजपा ने मुस्लिम वोटों के बंटवारे के लिये अपना रणनीतिक दांव चल दिया। इससे मुस्लिम मतों का आसानी से बंटवारा हो गया।
इसी तरह, दूसरे चरण का चुनाव मुस्लिम बहुल क्षेत्र में था। यहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक माने जाते है। इसलिये भाजपा ने यहां बसपा पर अपना यही दांव लगा दिया। नतीजतन, लखनऊ में मुस्लिम वोटों का इस हद तक जमकर विभाजन हुआ कि वह बुरी तरह तितर बितर हो गया। इतना ही नहीं, इसी चरण में भाजपा ने यादव बहुल इटावा तथा आसपास के जिलों में कानून और व्यवस्था का मुद्दा उछाल दिया। यह दांव चलकर उसने अपने पक्ष में इस अंचल के गैरयादवों के वोटों का ध्रुवीकरण कर दिया।
सूत्रों की माने, तो अब पूर्वांचल में वह अपने इसी चुनावी फार्मूले को लागू करने जा रही है। यहां 170 सीटों पर चुनाव होने जा रहा हैं। सत्ता में आने के लिये इन सीटों पर उसकी बढते होना बहुत आवश्यक है। इन सीटों पर कभी बसपा तो कभी सपा हावी होती रही है। 2007 के चुनाव में यहां बसपा को 98 सीटें मिली थीं, तो 2012 में सपा 106 सीटों पर काबिज हुई थी। भाजपा को क्रमशः 17 और 19 सीटें ही मिली थी,जबकि लोकसभा के चुनाव में उसे 137 सीटों पर बढत मिली थी।
बहरहाल, इस बार सूबे की सत्ता में आने के लिये भाजपा की इन सीटों पर बढत बहुत जरूरी है। इसके लिये उसने जातीय समीकरण को ध्वस्त करने के साथ ही सपा-बसपा के वोटबैंक में सेंध लगाने के लिये बडी जीतोड मेहनत की है। वैसे, इस बार यहां अंसारी बंधुओं के बसपा में शामिल होने से मायावती की राह अधिक आसान हो गयी है। नतीजतन, पूर्वांचल में बसपा का दलित और मुस्लिम वोटबैंक मजबूत हुआ है। इस स्थिति में भाजपा की रणनीति यह हो सकती है कि वह सपा को कमजोर बताकर उसके वोटबैंक को बसपा से भयभीत कराना चाहेगी। इससे सपा के वोटबैंक का एक हिस्सा भाजपा के पक्ष में मतदान कर सकता है।
इसके अलावा, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी यहां विकास के मुद्दे को वोटों के ध्रुवीकरण से जोड सकते हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने इलाहाबाद और फतेहपुर की चुनावी सभाओं में गांवों में कब्रिस्तान तो श्मशान जैसे जुमलों से कर दी है। योगी आदित्य नाथ और प्रदेश भाजपाध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य के हिंदुत्व के बोल को प्रधान मंत्री और धारदार बनाने की कोशिश कर सकते हैं।