बिजनेस स्टैंडर्ड के नितिन सेठी और साई मनीष की ख़बर तो यही कह रही है कि स्टार्ट अप इंडिया का हाल पुराने बजाज स्कूटर जैसा है। थोड़ा टेढ़ा करके किक मारते जाने पर भी स्टार्ट नहीं हो रहा है। 2015 के साल में प्रधानमंत्री मोदी ने स्टार्ट अप इंडिया का एलान किया था।1 जनवरी 2016 को लांच हुआ था। इसके लिए 10,000 करोड़ के बजट का प्रावधान किया गया था। लेकिन फंड बना 22 जून 2016 तक। इसके लिए सीडबी को मैनेजर बनाया गया है। लेकिन अभी तक जो प्रगति हुई है वो न के बराबर है। उससे ज़्यादा तो इस पर मंत्रियों ने इंटरव्यू देकर मुफ्त में मीडिया स्पेस ले लिया। क्या पता सरकार ने इसके प्रचार में कितने पैसे फूंक दिये हों। भौकाल बनाया गया कि लोग प्रस्ताव लेकर आ रहे हैं, कंपनियां खुल रही हैं और रोज़गार मिल रहे हैं।
अख़बार ने लिखा है कि अभी तक सिडबी ने 10,000 करोड़ की जगह 1,315 करोड़ का ही फंड बनाया है। चार निवेश कंपनियों को 110 करोड़ देने की बात हुई है। इस पैसे में से सिर्फ 5 करोड़ 66 लाख रुपये ही जारी हुए हैं। यानी 10000 करोड़ के स्टार्ट अप इंडिया के एक साल बीत जाने पर छह करोड़ ही जारी हुए हैं। ये हाल है उस नीति का जो नाम से ही लगती है कि किक मारा नहीं कि स्कूटर स्टार्ट हो गया। आर टी आई से मिले जवाब के आधार पर अख़बार ने ऐसा लिखा है। अख़बार को कई सवालों के जवाब नहीं मिले हैं। रिपोर्ट पढ़कर समझ आता है कि सिडबी ने कुछ करोड़ का फंड बनाती है। मगर फंड बना देने का मतलब नहीं कि पैसा निवेश कर देती। रिपोर्ट में सरकार का पक्ष नहीं है। पक्ष से मतलब वित्त मंत्री टाइप किसी का जवाब नहीं है। उम्मीद है सरकार इस रिपोर्ट के सामने अपने तथ्य रखने की कोशिश करेगी। मंत्री लोग ट्विट करेंगे।
समझना चाहिए कि आख़िर कहां चूक होती है। क्या सरकार की मंशा सिर्फ योजनाओं के एलान में होती है। अब हर पता है कि योजनाओं का प्रचार होता है,उनकी जांच नहीं होती है। योजना का प्रचार कीजिए, लोग इस यकीन में जीने लगते हैं कि बहुत काम हो रहा है। अगर मोदी सरकार द्रुतगामी सरकार है, तेज़ गति से फैसले लेने वाली सरकार है तो एक साल में सिर्फ 6 करोड़ के निवेश की प्रगति क्यों होती है।कई बार सिस्टम की गति समझ नहीं आती है। क्या लोग इस फंड का लाभ लेने नहीं गए, जो इस रिपोर्ट से साफ नहीं होता है, क्या लोग अपने प्रस्ताव लेकर तो गए मगर स्टार्ट अप के तहत फंड मिला ही नहीं। नई नीयत से बनी इस नई नीति की यह दुर्गति भी पुरानी नीतियों सी ही है।
मीडिया में हो यह रहा है कि वहां सूचनाओं की जगह कम है। रिपोर्टर एंकर यही ट्वीट करने में व्यस्त हैं कि यूपी में बीजेपी जीत रही है। आम व्यवहार में भी देखिये तो आप पाठक भी सूचनाओं को कम महत्व देते हैं। धारणा ही सूचना है। ख़बरों के भीतर जाकर चालाकियों को नहीं समझते हैं. जो भी हेडलाइन बना दिया उसी को ख़बर समझ लेते हैं। सरकार धारणा बनाती है, मीडिया उस धारणा को आगे बढ़ाता है, आप धारणा में जीने लगते हैं। बड़ा काम हो रहा है। काफी कुछ बदल रहा है। इस परिघटना को सिर्फ मोदी सरकार के संदर्भ में न देखें। हर सरकार के संदर्भ में यह बात लागू होती है। एक दो योजनाएं ज़मीन पर काम करती हैं, बस हो गया काम। बाकी सब कुछ वैसा ही चलता रहता है जैसा पहले से चल रहा होता है। उम्मीद है गाली देने वाला दस्ता इन सब सवालों को भी वायरल कराएगा। फर्ज़ीवाड़ा थोड़ा कम होगा।