नई दिल्लीः पिछड़े 48 घंटे में अपमान का कड़वा घूंट पीने के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सुकमा में 25 जवानों की शहादत का बदला लेने के लिए उस जाबांज पुराने आइपीएस को चुना है, जिसने तीन दशक तक तीन राज्यों के जंगलों में खौफ का पर्याय रहे चंदन तस्कर वीरप्पन को ठोंका था। वो भी तब जब तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल के उन घने जंगलों में घुसने से सेना के जवान भी कांपते थे। वीरप्पन की दहशत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने सेना और तीनों राज्यों की सरकार को चुनौती दी थी कि हिम्मत है तो पकड़कर दिखा दो। मगर बरसों की लुका-छिपी खेल के बाद आखिरकार इस आइपीएस ने बड़ी-बड़ी डरावनी मूंछो वाले वीरप्पन का काम तमाम कर दिया। इस जाबांज आइपीएस का नाम है के विजय कुमार। जब सुकमा में जवानों का भीषण नरसंहार हुआ और पूरे देश में खलबली मच गई तो मोदी-राजनाथ चिंतित हो उठे। तय हुआ कि अब उसी आइपीएस को मिशन में उतारा जाए, जो वीरप्पन जैसे तस्कर को मार चुका हो। लिहाजा रिटायर्ड होने के बावजूद विजय कुमार नामका यह शेर एक बार फिर कंधे पर गन रखकर जंगलों को खंगालने निकलेगा।
विजय ने कहा-जो हाल वीरप्पन का किया, वही हाल नक्सली नेताओं का करूंगा
राजनाथ की ओर से खुली छूट मिलने के बाद अब के विजय कुमार ने नक्सलियों के खात्मे की भी कसम काई है। चूंकि खुद सीआरपीएफ के डीजी रह चुके हैं, इस नाते सीआरपीएफ के जवानों की शहादत ने अंदर से हिला दिया है। राजनाथ से साफ कह दिया है कि जो हाल वे वीरप्पन का कर चुके हैं, वहीं हाल हिडमा सुकमा में जवानों को मारने वाले नक्सली नेता हिडमा और बाकी नक्सलियों का करेंगे। जब के विजय कुमार को आखिरी बार मिशन वीरप्पन के मोर्चे पर लगाया गया था, तब उन्होंने कसम ले ली थी कि वे जब तक वीरप्पन को पकड़ नहीं लेंगे, तब तक अपने सिर के बाल नहीं मुड़वाएंगे। यह वो वीरप्पन था, जिसके गिरेबान तक पहुंचने के लिए तीन-तीन राज्यों की पुलिस को करीब 30 सालों तक जंगलों की खाक छाननी पड़ी। ऑपरेशन पर भी 20 करोड़ से ज्यादा खर्च हुए। देश के सबसे बड़े ऑपरेशन का नेतृत्व करने के बाद एक इंटरव्यू में खुद विजय कुमार कसम खाने की बात कह चुके हैं। बकौल वियय कुमार-वीरप्पन को मारने के लिए मैं माथा टेकने बन्नारी अम्मान मंदिर पहुंचा था। यहां कमस खाई कि जब तक वीरप्पन का खात्मा नहीं हो जाता है, तब तक मैं अपने सिर के बाल नहीं मुड़वाऊंगा। वीरप्पन की तलाश में मैं 1994 में पहली बार गया था। 2001 में छह महीने के लिए दूसरी बार आया था। आखिरकार 18 अक्टूबर 2004 को तीन साथियों के साथ तमिलनाडु के धरमपुरी जिले के पपरापत्ति जंगल में जब वीरप्पन मौजूद रहा थो उसे एनकाउंटर में मार गिराने में सफलता मिली। वीरप्पन का एनकाउंटर करने के बाद हमने बन्नारी अम्मान मंदिर जाकर मुंडन कराया।
राजनाथ बोले-सब कुछ ले लो, हमें सिर्फ रिजल्ट चाहिए
गृहमंत्रालय के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने इंडिया संवाद को बताया कि मोदी के कहने पर जब राजनाथ सिंह ने मीटिंग में बुलाया तो आइपीएस के विजय कुमार ने पूरी छूट देने की बात कही। इस पर राजनाथ ने कहा सिर्फ छूट ही नहीं जो संसाधन आप कहोगे, हर चीज देंगे। क्या चाहिए आपको-हेलीकॉप्टर, टेक्निकल सपोर्ट, कमांडो। कुछ भी चिंता मत करिए। हर चीज मिलेगा। आपके काम में कोई दखल नहीं देगा। बस अब और जवानों की मौत नहीं होनी चाहिए। सब कुछ ले लो, मगर हमें नतीजा दो। बस इसी से हमें मतलब है।
नक्सलियों से लड़ने का कारगर मॉडल बना चुके हैं विजय
के विजय कुमार सीआरपीएफ के डीजी रह चुके हैं। जब 2010 में दंतेवाड़ा में नक्सली वारदात में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे। तब के. विजय कुमार की ओर से ईजाद नक्सलियों से लड़ने के मॉडल पर अमल हुआ। टेक्निकल टीम,
इंटेलीजेंस विंग, लोकल इंटेलीजेंस, डॉग स्क्वायड, सहित कई टीमों के बीच समन्वय बनाकर नक्सलियों के खिलाफ मुहिम छेड़ी गई। जिससे टॉप क्लास के नक्सलियों में अधिकांश को निपटाया जा सका। विजय वैसे तो रिटायर्ड हो चुके हैं, मगर उनकी जाबांजी और ऑपरेशन्स को लेकर विशेषज्ञता को देखते हुए केंद्र सरकार बतौर एडवाइजर उनकी सेवाएं ले रही हैं। मगर अब वे मैदान में
वीरप्पन का विभीषण खोजकर मार गिराया था वीरप्पन को
दो दशक से वीरप्पन के पीछे हाथ धोकर के विजय कुमार पड़े रहे। तब जाकर वीरप्पन को मारने में कामयाबी मिली। पूछने पर के विजय कुमार कहते हैं कि जब ठोस प्रयास के बाद भी कामयाबी नहीं मिली तो हमने रणनीति बनाई कि दुश्मन को मारने के लिए दुश्मन का ही सहारा लेना होगा। लिहाजा वीरप्पन के हर मूवमेंट पर नजर रखनी शुरू की। उसके करीबियों तक पहुंचकर वीरप्पन की हर स्टाइल को जानने-समझने की कोशिश की। आखिरकार सटीक मुखबिरी पर ही उस तक पहुंचा जा सके।
अक्षय निभाना चाहते हैं फिल्म में विजय कुमार का रोलके. विजय कुमार का जन्म 15 सितंबर 1950 को हुआ था। उनके पिता रिटायर्ड पुलिस अफसर कृष्णन नायर भी पुलिस अफसर रह चुके हैं। सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली से ग्रैजुएशन और मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से पोस्ट ग्रैजुएशन पूरा किया। पुलिस की वर्दी हमेशा आकर्षित करती थी। लिहाजा आईपीएस बनने की ठानी। आखिरकार सफलता मिली ओर चेन्नई के के विजय कुमार 1975 में तमिलनाडु कैडर में आईपीएस हो गए। फिर बाद में स्पेशल सिक्युरिटी ग्रुप (एसएसजी) में सर्विस की। जब वह स्पेशल टास्क फोर्स में पोस्टेड थे, तब उन्हें चंदन तस्कर वीरप्पन को ठिकाने लगाने के मिशन का चीफ बनाया गया था। चूंकि तमाम ऑपरेशन के एक्सपर्ट हैं, इस नाते पुलिस सेवा से रिटायर होने के बाद भी गृहमंत्रालय बतौर सुरक्षा सलाहकार उनकी सेवाएं ले रहा है।ऑपरेशन वीरप्पन के बारे में के विजय कुमार ने 14 साल के प्रयास के बाद अपनी किताब वीरप्पन - चेज़िंग द ब्रिगेंड लिखी। बीते दिनों मुंबई में किताब के रिलीज होने के वक्त अक्षय कुमार ने कहा कि भविष्य में वीरप्पन पर फिल्म बनी तो वे के विजय कुमार का रोल निभाना चाहेंगे।