नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस, क्या है यह दिल्ली पुलिस, कहां है यह दिल्ली पुलिस, कैसी है यह दिल्ली पुलिस? दिल्ली पुलिस निर्दोषों को फंसाने वाली या दिल्ली को महफ़ूज़ रखने वाली ? यह सही है कि दिल्ली अगर चैन की नींद सोती हैं तो दिल्ली पुलिस की बदौलत, दिल्ली अगर दहलने से बची तो वहा भी दिल्ली पुलिस की बदौलत, लेकिन कमाल है यह दिल्ली पुलिस, आपराधिक वारदातों में कमी का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस न तो भ्रष्टचार में कम है और न ही निर्दोषों को फ़ंसाने में। मामले कई हैं मसलन लियाक़त अली शाह का मामला, जिसमें पुलिस अपने ही मुख़बिर साबिर के ज़रिये बंदूकें और हथगोले रखवाती और फ़िर शुरू हुआ एक ऐसा खेल जिसमें एक निर्दोष को आतंकवादी बनाने की क़वायद शुरू हो जाती है। बहरहाल नए कमिश्नर साहब अमूल्य पटनायक साहब ने स्वयं कहा है कि वह दिल्ली पुलिस की खराब छवि सुधारने की कोशिश करेंगे, अच्छा है कप्तान साहब हमें फिर से इंतज़ार रहेगा, नया निज़ाम नई बातें और...?
वाकई क्या दाग़ी हो गई है दिल्ली पुलिस ? दिल्ली पुलिस के अधिकारियों की वर्दी पर दाग लगाने वाले आरोपों में जबरन वसूली, जमीन और संपत्ति विवाद में मिलीभगत, अवैध धंधों में संलिप्ता, मामला दर्ज करने में आनाकानी और जांच में कोताही बरतने जैसे एक नहीं अनेकों आरोप लगे। साल 2016 में इसी प्रकार के आरोप में दिल्ली पुलिस के 12 सौ से ज्यादा कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई और विभागीय जांच बैठाई गई। इनमें कई को बर्खास्त कुछ ससपेंड भी किए गए। कुछ को हल्की सज़ा देकर हिदायत पर छोड़ दिया गया और कुछ कर्मियों की निंदा की गई और फिर उन्हें विभागीय कार्रवाई के लिए तैयार रहने कहा गया।
खुद पुलिस के आंकड़ों कि मानें तो इस प्रकार के मामले और आरोपों में निरंतर गिरावट आ रही है। लेकिन बीते साल भ्रष्टाचार, रंगदारी में 528 पुलिस वालों को लिप्त पाया गया। 31 पुलिसवालों को जमीन और संपत्ति विवाद और इतने ही पुलिसवालों को गैरकानूनी कार्यों में संलिप्त पाया गया। तीन पुलिसवाले वित्तीय लेनदेन में, अपराधियों और समाजविरोधी तत्वों से मिलीभगत में 12 पुलिस वाले और केस दर्ज नहीं करने के आरोप में 109 शामिल पाए गए। इसके अलावा गलत तरीके से जांच करने में 31 और अशोभनीय बर्ताव के आरोप में 433 पुलिस वाले के ख़िलाफ़ शिक़ायत दर्ज हुई।
साल 2016 में दिल्ली पुलिस के आंकडे यह बताने के लिए काफ़ी हैं कि तमाम उपायों और कार्रवाईयों के बाद भी पुलिस विभाग में काम करने वालों लोगों की मंशा साफ नहीं है। वे थाने में शिक़ायतियों को घंटों बैठाए रखने में खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं और वर्दी का रौब दिखाते हुए शिकायत दर्ज कराने वाले पर ही दबाब बनाकर दूसरी पार्टियों से मिलीभगत कर मामले को हल्का बनाने की कोशिश में रहते हैं। स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा दिल्ली पुलिस का नाम, क्योंकि यह तो दिल्ली पुलिस है...