लखनऊ। प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने डेंगू के नियंत्रण के लिए प्रभावी कदम उठाने के निर्देश दिए हैं । उन्होंने कहा कि सभी शासकीय चिकित्सालयों में डेंगू के नि:शुल्क उपचार की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए और इस रोग से ग्रसित मरीजों को किसी भी प्रकार अस्पताल में असुविधा नहीं होनी चाहिए। उन्होंने यह भी निर्देश दिए कि डेंगू नियंत्रण के कार्यों को स्वच्छता अभियान एवं महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में शामिल किया जाए। उन्होंने कहा कि डेंगू के नियंत्रण एवं रोकथाम में ग्राम स्वास्थ्य एवं स्वच्छता समिति का हर स्तर पर पूर्ण सहयोग प्राप्त किया जाए।
न्यूरों के मरीजों पर डेंगू का असर अधिक होता है। न्यूरों के मरीजो को आम मरीजों से अधिक सावधानी बरतने की जरुरत होती है।डेंगू बुखार के लक्षण आम बुखार से थोड़े अलग होते हैं। बुखार बहुत तेज़ होता है। साथ में कमज़ोरी हो जाती है और चक्कर आते हैं। मांशपेशियों में कमजोरी आ जाती है और उठने बैठने में भी परेशानी होने लगती है। डेंगू के मरीजों को पानी ज्यादा पीना चाहिए और फलों का रस लेना चाहिए।
गर्मी के बाद बदलता मौसम बारिश की बूंदों की आहट के साथ आता है। और मॉनसून के बाद जब मौसम दोबारा करवट लेता है तो ठंडी हवाओं की मीठी चुभन लेकर आता है। इस बदलते मौसम में पनपता है एडीज मच्छर जो अपने साथ फैलाता है डेंगू बुखार। ये बुखार इतना खतरनाक हो सकता है कि इससे मरीज जान भी जा सकती है। इसी मच्छर के काटने से डेंगू बुखार होता है।
अक्सर बुखार होने पर लोग घर पर क्रोसिन जैसी दवाओं से खुद ही अपना इलाज करते हैं। लेकिन डेंगू बुखार के लक्षण दिखने पर थोड़ी देर भी भारी पड़ सकती है। डेंगू के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाएं और प्लेटलेट्स काउंट चेक कराएं।डेंगू बुखार पाए जाने के बाद भी कई लोग घर में रहकर ही अपनी प्लेटलेट काउंट, ब्लड प्रेशर वगैरह नाप कर इलाज करना पसंद करते हैं।
घर में इलाज करते हुए कुछ खास चीज़ों का ध्यान रखना चाहिए। अगर पानी पीने और कुछ भी खाने में दिक्कत हो और बार-बार उल्टी आए तो डीहाइड्रेशन का खतरा हो जाता है। ये लिवर एन्ज़इम्स में गड़बड़ का सूचक होता है। प्लेटलेट्स के कम होने या ब्लड प्रेशर के कम होने या हीमाटाइट यानी खून का घनापन बढ़ने को भी खतरे की घंटी मानना चाहिए। साथ ही अगर खून आना शुरू हो जाए तो मरीज़ को फ़ौरन अस्पताल में भर्ती करे।
चिकित्सा और स्वास्थ्य मंत्री डेंगू नियंत्रण कार्यक्रम की समीक्षा कर रहे थे। उन्होंने अपर मुख्य सचिव, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अरुण कुमार सिन्हा को निर्देश दिए कि प्रदेश में राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम में किसी भी प्रकार की शिथिलता नही बरती जानी चाहिए। सभी चिकित्सालयों में आकस्मिक निरीक्षण की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाए। उन्होंने कहा कि देश में डेंगू रैपिड किट का बाजार अनियमित है। इसलिए डेंगू की त्वरित गुणवत्तापूर्ण जांच हेतु गाइडलाइन बनाकर उनका पालन सुनिश्चित किया जाए। उन्होंने डेंगू नियंत्रण के प्रभावी संचालन हेतु समस्त चिकित्सकों, अधिकारियों और कर्मियों को प्रशिक्षण दिलाने के भी निर्देश दिए हैं।
स्थानीय निकाय के अधिकारियों से समन्वय स्थापित कर सफाई व्यवस्था का दुरुस्त करना, ड्रेनेज सिस्टम को सुचारु बनाने सहित सभी आवश्यक व्यवस्थाएं पहले ही सुनिश्चित कर ली जाएं। उन्होंने गैर सरकारी चिकित्सालयों/चिकित्सकों के लिए अनुमोदित डेंगू उपचार के संबंध में एकरूपता लाए जाने के भी निर्देश दिये गये।। डेंगू रोग तथा उसके बचाओ के बारे में व्यापक व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए सभी कदम उठाने के भी निर्देश दिए।
चिकित्सा और स्वास्थ्य मंत्री ने प्रदेशवासियों से अपील की है कि वे डेंगू नियंत्रण कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए कूलर, छत, गमले, पक्षियों/जानवरों हेतु पीने के लिए एकत्रित पानी हर सप्ताह अवश्य बदलें। ओवरहेड टैंकों को ढंक कर रखें। कबाड़ में नारियल के खोल, खाली टायरों, प्लास्टिक या शीशे के कन्टेनरों में अथवा छतों पर पानी बिलकुल ही एकत्रित न होने दें। उन्होंने दरवाजें, खिडक़ी एवं रोशनदान में मच्छररोधी जालियों के प्रयोग की भी अपील की है।
अपर मुख्य सचिव ने अवगत कराया कि डेंगू रोग के रोकथाम के लिए सभी आवश्यक व्यवस्था सुनिश्चित कर ली गई है। सरकारी चिकित्सालयों में डेंगू रोग का नि:शुल्क उपचार के साथ ही जांच की व्यवस्था सुलभ है। उन्होंने यह भी बताया कि लखनऊ में केजीएमयू, डॉ.राम मनोहर लोहिया संस्थान, एसजीपीजीआई एवं स्वास्थ्य भवन में भी एलाइजा टेस्ट की व्यवस्था की गई है। डेंगू रोग के संबंध में व्यापक जानकारी के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारियों के कार्यालय में कंट्रोल रुम भी स्थापित किये जा रहे हैं।