सादर हम स्वागत करते हैं।
बरसाने के लिए कल कुसुम मंजुल अंजलि में भरते हैं।
अंतरज्योति जगाकर उसकी क्यों न जाय आरती उतारी;
जिस प्रभु की प्रभुता अवलोके हुई जन-विबुधता बलिहारी।
जिसने बन आनंद-वन-अधिप मन को आनंदित करडाला;
क्यों न निछावर नयन करे उस पर अपनी मुक्ता की माला।