सुन्दरता,अनेक रंग रुपों में, विकसित नजर आती है । कुदरत की कारीगरी, हर इक चीज़ में मुस्कुराती है ।सुन्दरता का कोई, इक, रुप नहीं होता । सचमुच, प्रेम का, कोई इक स्
प्रेम की श्रेष्ठता , सच्ची भक्ति में, नजर आती है । प्रेम की श्रेष्ठता में, बांके बिहारी की भी,कृपा दृष्टि हो जाती है ।मीरा के प्रेम के आगे, बिहारी की नजर भी, नतमस्तक हो चली ।
काश ! इस पक्षी की तरह, उड़ पाता, आसमान में । हौंसले , साकार हो पाते,मेरे, इस दुनिया के, इम्तहान में ।जमाने की फितरत है, हौंसलों को गिराने की । हमारी भी फितरत है, जमाने में कु
मुस्कुराहटें भी बहुत कुछ, कह जाती हैं । कुछ जीने का अंदाज़, बता जाती हैं ।तो कुछ गमों को, छुपाना सिखा जाती हैं । इन्हीं मुस्कुराहटों पर, न जाने कितने निसार हो गये ।न जाने कित
कांटों के साथ, रहता हूं, फिर भी मुस्करा लेता हूं । गमों के दौर में जीता हूं, फिर भी हंस लेता हूं ।ये ज़िन्दगी है, जनाब ! हंसना तो, पड़ता ही है । रोने से, किसी को कुछ, हासिल नही
राधा-कृष्ण की सुन्दर जोड़ी, मेरे मन भायी है । प्रेम छवि दर्शन कर, मेरे मन में, उमंग छायी है ।काश ! ऐसा प्रेम, प्रेमियों की रुह में, उतर जाये । उन्हें सच्चे प्रेम की, परिभाषा
क्यूं , तोड़कर, बिखरा दिया है, यार ! मुझको । मैं भी सजा था, डाल पर, तुम याद कर लो ।अरमान था मेरा, कि मैं, चरणों को, छू लूं । अपने वतन के वास्ते, जो चल पड़ा हो ।कुर्बान
बचपन प्रकृति के,प्रेम में गुजर जाता है । किशोरावस्था तक,कापी-किताब का बोझ सताता है ।यौवन, युवा प्रेम में,तथा मंजिल को चुनने में चला जाता है । तब प्रकृति का प्रेम
काश ! इन फूलों सा प्रेम, पनप जाये, जग में । लोग एक दूसरे से गले लग जाये, जग में ।इंसा में, प्रेम पनप जाये, इस जग में । तो इस धरती पर, स्वर्ग उतर आये, सचमुच में ।ई
कांटों में रहकर, भी मुस्कुरा देता हूं । अपनों से हिलमिल कर,कुछ कह लेता हूं ।अपनों को ज़िन्दगी, बसर करनी है । इन्हीं कांटों के साथ ।इसी ख्वाब से, जी भरकर हंस लेता हूं ।
खुश रहिये ।जनाब ! इन फूलों की तरह । जिंदगी, गुजारिये, इन महकते, फूलों की तरह ।देखिए, श्वेत वर्ण पुष्प को । जिसने लालिमा,अपना ली है ।लाल कलियों की ।
मैं आईना कभी, झूठ बोल पाता नहीं । जो कुछ मेरे सामने हो, वहीं बयां कर देता हूं ।लोग खूबसूरती को मेरे सामने, निहारकर खुश हो जाते हैं । मुझे अपना गवाह, बनाकर, इठलात
कितना प्यारा, ये जीव, मेरे मन को भा गया । इसका नाम है, चीकू, ये मेरे दिल में उतर गया ।इसे देखें बिना,मुझे चैन कहां आता है ? इसकी प्यारी हंसी से, मेरा दिल
क्यूं , अब कलयुग के, इस जमाने में, दुवाओं का असर न रहा ? क्यूं , कुबूल होती हैं, उनकी दुवाएं,जिनका अपना कोई, जमीर न रहा ? क्यूं ,अच्छों के साथ, बुर
मेरे मुस्कुराने में, मेरा ग़म भी शामिल है । जमाना समझता है, मैं खुशहाल हूं, बेहद ।लेकिन कोई क्या जाने, ये मुस्कराहट भी, घायल हैं, बेहद । जमाने की सोच, हकीकत से, प
कोई कहता है,बेटी परायी, अमानत है । मेरे लिए, तो बेटी,घर की, जगमगाहट है ।दो घरों को रोशन करती है, इस जहां में । सचमुच बेटी, हमारे दिलों की अमानत है ।
कितने कारवां उजड़ गये, बस्तियां सिमट गयी । समय के निर्दयी, काल चक्र में ।फिर भी क्यूं , डूबा है , मानव,तू अहं के भ्रम जाल में ? तेरी शानो-शौकत, और खजाने काम न, आ पायेंगे ।अंत
क्यूं ,प्रेम दुनिया में, राधा-कृष्ण, सा, हो नहीं पाता ? क्यूं , आधुनिक प्रेम में, रुह का रुह से, मिलन हो नहीं पाता ?आज का प्रेम, क्यूं , वासना की देहलीज पर ठिठक जाता है ? &nbs
बिखरकर टूटी नहीं , मैं आज भी उनसे, प्यार करती हूं । ये सच है, कि मैं उनका, आज भी इन्तजार करती हूं ।दिल में हैं,गमों के आशियाने , फिर भी चेहरे पर मुस्कान रखती हूं । अगर
ये नैना , सैलाब बन गये,किसी के इंतजार में । वो नहीं आये , शायद गुम हो गये, किसी के प्यार में ।दिल की चाहत, आंसुओं में, उमड़ आयी है । इसीलिए, आज ये नजरें, समुन्दर