ये फुलझडियां भी, कितनी अजीब हैं ? ये स्वार्थी मानवों की, सचमुच, प्रतीक हैं ।कहीं भी, कोई, खुशी का आलम हो, तुरन्त पहुंच जाती हैं । झूम-झूम कर, नाच-नाच कर, सबको मन
प्रकृति में, सामंजस्यता, हर ओर नजर आती है । जिसे देखकर, इंसान की, इंसानियत भी, शर्माती है ।क्यूं , मनुष्य ,इतना स्वार्थी,निकृष्ट हो चला ? क्यूं ,कर उसे इंसानियत
प्रेम क्यूं , ऐसा नहीं हो जाता ? जैसा, राधा-कृष्ण का, प्रेम था ।प्रेम क्यूं , रुह में, नहीं उतर पाता ? जैसा, लैला-मजनूं का, प्रेम था ।प्रेम की संज्
अगर ये, रंग-बिरंगी नोटों की, गड्डियां न होती । तो रिश्ता दिमाग से नहीं, दिल से निभाया जाता ।पहले घर के, बड़ों को सम्मान मिलता, फिर छोटों को, कुछ सिखलाया जाता ।
गुम हो गया, सुंदर बचपन , इन कूड़े के ढेरों में । ग़रीबी के अन्धकार में, गुम हो गये, गुण, इस सुंदर हीरे के ।ललक बड़ी थी, मन में इसके, मैं भी पढ़ने जाऊंगा । बन ऊंचा अधिका
इन आंखों में, इक दर्द छुपा है । जो समन्दर सा, सैलाब ले आया है ।प्रेम करने की सजा का,ये तो, इक साया है । दिल को खिलौना समझकर, क्यूं जमाना खेलता है ?क्या , जमाने क
तेरा साथ पाकर, गगनचुंबी उड़ान भर ली, मैंने । तेरी दोस्ती से, दुनिया में, पहचान कर ली,मैंने ।तेरा साथ छूटा, तो पंख, निष्प्राण हो चले । यूं ,गिरा मैं
कितनी खूबसूरती से, रचयिता ने बना दिया, इस संसार को । सुन्दरता , चारों ओर, बिखरी हुई है ।सुन्दर नर-नारी, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे,सब उसी की धरोहर हैं । मानो खुद छवि,
हम भी, वो दिल रखते हैं । कि दूसरों के दिलों पर,, राज कर सकते हैं ।हम भी, वो नज़र रखते हैं । कि दूसरों का कत्ल,कर सकते हैं ।हम भी, वो प्यार रखते हैं ।
मधुर मुस्कान होंठो पर लेकर,आयी हूं, इस परिवार में । मुझे प्यार देना बेटी का , आयी मैं, इस नव संसार में ।कितने ख्वाब सजे हैं ,मन में, आशाओं की डोर लिये । नहीं चाह
मुझ सन्नाटे को, कोई पसन्द ,क्यूं कर पाता नहीं ? शायद मेरा मुस्कुराना, किसी को भाता नहीं ।मैं इतना अजीब हूं,कि कुछ लोग, भयभीत हो जाते हैं । उहापोह जिन्दगी
कितना खूबसूरत है, ये जहां । रंगीन वादियों में, यहां,प्यार पलता है ।सचमुच इस जहां में,हर इक को, किसी का इंतजार रहता है । रंगीन वादियां, रातें बिताती हैं,सूरज के इन्तजार
सुन्दर चितवन भरी, मुस्कान , वो हथकड़ी है । जो आजीवन कैद की सजा, सुना ही देती है ।अनेक प्रतिक्रियायें , न करके,अपनी बंदिश में, ले ही लेती है । जो भी, इसके सामने आ
चाहत में , तड़प हुई, तो इन्तजार मिल गया । मेरे वीरान दिल में, इक सुन्दर, फूल खिल गया ।हजारों मौसम, बदल गये, पर वो नहीं आये । पर हम न बदले इक पल, वो
इन आलीशान महलों में, वो सुख कहां ? जो मेहनत से बनायी गयी , झोपड़ियों में है ।इक शुकून दे जाती है, वो चीजें, जिसमें इन्सान की, मेहनत, मुस्कुराती है । विरासत में म
मैं हूं , जमाने का नजरिया । मुझे स्वयं का स्वरुप, बहुत अधिक भाता है ।पर दूसरों में, हरपल मुझे, कुछ न कुछ अवगुण , जरुर, नजर आ जाता है ।क्या करुं , मैं अपनी आदतों से मजबू
मैं हूं, दिल । हर पल, धड़कता रहता हूं ।खुशी हो या ग़म , हरपल क्रियाशील रहता हूं । कभी-कभी प्रेम की भावनाएं, संजोता हूं ।तो कभी, आक्रोशित हो, घृणा को गले लगाता हूं । &nbs
इन पक्षियों का प्रेम भी, अपने आप में, इक मिशाल है । इक दूजे को, निहारने का इनका तरीका, अपने आप में, इक मिशाल है ।इक दूजे के बिना, ये अधूरे हैं । इक दूजे के
बांध दिया , अनजान रिश्तों में । मेरी ख्वाहिशों की, किसी ने परवाह न की ।काश ! इक बार मेरे फैसले को सुन लेते, तो इतना रंजोगम का, एहसास न होता ।केवल विवाह करना ही, मेरे जी