कितना सुन्दर है, ये जहां । सुन्दरता चारों तरफ , नजर आती है ।इस सुन्दरता के आगे, हमारी मानवता, शर्मा जाती है । इंसानियत भी अगर, इन फूलों की तरह ,मुस्कुरा जाती।तो इस दुनि
इन मुस्कुराहटों का, कोई मोल नहीं है । मुस्कुरा कर, कितनी, खुशियां बिखेर देती हैं ।सचमुच गमों को हमसे, पल भर में, छीन लेती हैं । इन मुस्कुराहटों पर, हो निसार, कितन
सुखद एहसास, कब हो पाता है ? जब कोई, मुस्कुराता नजर आता है ।सुखद एहसास, कब हो पाता है ? जब कोई आसमां की , बुलंदियों को, छू जाता है ।सुखद एहसास, कब हो पाता ह
अतीत की खिड़कियों से, चुपचाप यादों के, मुसाफिर आते- जाते हैं । कुछ, इक नया, दर्द दे जाते हैं ।तो कुछ, दिल को खुश कर जाते हैं । ये अतीत की खिड़की भी, बड़ी अजीब है ।चुपचाप
तेज चमकती रोशनी की, चकाचौंध में, क्यूं , भूल गये, मेरी कद्र ऐ ! जमाने वालों ?मैं खुद में , इक कद्र हूं । सुन लो, ऐ ! जमाने वालों।आज भी अपनी हिम्मत
श्री गुरु चरण सरोज में, नत मस्तक सौ बार । इनकी अतुलनीय कृपा से, विघ्न न आवें पास ।सतगुरु की रहमत से, चहुं दिशि हुआ, प्रकाश । मन अंधियारा मिट गया, जब ज्ञान का दिया, प्रकाश ।मेर
हम किन्नर हैं । हमारी भी, अपनी भावनाएं हैं ।कुछ हमारे जीवन में भी, प्रेम की, सम्भावनाएं हैं ।दुनिया हमें, याद करें न करें । खुशहाली के अवसर पर
इन बेटियों की मुस्कुराहट ही, हमारे घरों की शान है । इन बेटियों के सपने ही, हमारे जीवन की शान है ।बेटियां, आज बेटों से, कहीं, कम नहीं । उनके हौंसले, हमारे
पिता पुत्र के साथ हो,पुत्र पिता के साथ । इस कलयुग में हो गये, दुर्लभ, ये विचार ।पुत्र मस्त,गर्ल फ्रेंड संग, पिता पाले, ब्यभिचार । इस कलयुग में, दिखते हैं, ऐसे, आ
जिन सघन पेड़ों के नीचे बैठकर,इक दूसरे की खैरियत पूछी जाती थी । आज इन पेड़ों के नीचे, वीरानियत, क्यूं है ?शायद, अब एक दूसरे को, किसी की चिंता न रही । &nbs
मुझ कली पर, क्यूं , रहम न आयी ? क्यूं , मेरे साथ हुई ,ये बेवफाई ?पल भर में, उजाड़ दिया हमको । टहनियों व पत्तियों से, नाता तोड़ दिया पल भर में ।बेहाल
मेरे दर्द को, कोई नहीं समझता । सिर्फ कान्हा ही, दूसरों के दुख-दर्द को समझता है ।याद जो किया, मुरली वाले को । उन्होंने खामोशी भी पढ़ ली,इशारों में ।आज कान्हा का प्यार, प
मुस्कुराहट ही, हमारी जिंदगी की शान है । मुस्कुराहट के बिना, सचमुच जिन्दगी बेकार है ।जिसने जिन्दगी में मुस्कुराना, सीखा नहीं । सचमुच उसको जिन्दगी, जीने का,
मैं निर्झर, कल-कल बहकर, मधुर संगीत को घोल रहा हूं । कानों में, इक मृदु रस भरकर, अरमानों से खेल रहा हूं ।मुझे शुकून मिलता है, तब ही,जब औरों को, कुछ दे पाता हूं ।ऐसा ख्वाब, सजाकर
इस खूबसूरत शमां में, इन फूलों में भी प्यार उमड़ आया है । इक दूजे का, आलिंगन करने को बेताब हैं ।सचमुच,इक दूजे में, प्यार बेमिसाल है । कौन कहता है, दुनिया में प्यार, कहां
क्यूं , डर रहा तू मानव ! , इस नाग के जहर से ? तू भी रहा है,पलता,इस जहर के, नगर में ।अगर डस ले ,ये नाग ,तो मानव, मर तो सकता है । पर मानव की, जीभ में,ये पलता,जहर पर जहर ह
मीरा हो गयी,प्रेम दीवानी । वन-वन भटक रही है ।कृष्ण दरश पाने को मीरा, पल-पल तड़प रही है । राधे-राधे की रटन लगाकर,पल-पल डोल रही है ।सुन मीरा की करुण पुकार, दरश दे
मुझ जैसे अनगिनत चिरागों ने, रोशनी दी जमाने को । फिर भी, जमाने से, कोई वफ़ा, क्यूं, नहीं मिली, मुझ जैसे चिरागों को ? आज भी अंधेरा कायम है, मेरे आशियाने में
मां सरस्वती मुझे, अमिट ज्ञान दो । मेरे स्वरों में, ज्ञान समा दो ।मेरे ज्ञान से,पावन हो, धरती । चहुं दिशि हो, जयकार, तेरी मां ।मैं निर्बुद्ब बालक हूं ,मां तेरा ।&n
कुछ को घर से निकलते ही,मिल गयी मंजिल । मैं तो उम्र भर, मंजिल का रास्ता, तलाशता रहा हूं ।हाथों में है, लालटेन मेरे, फिर भी कोई न, इशारा मिला है । क्यूं कर