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क्यूं खो जाता है,मन,किसी के हंसी ख्वाबों में ?    क्यूं ,करवटें बदलकर ,रातें गुजर जाती हैं ?क्यूं ,बेताब हो जाता है ,मन ?     किसी की इक झलक  ,पाने को ।क्यूं , आंखों में

मैं नारी ममत्व की मूरत,नीर झलकता, मेरी आंखों में ।     मैं प्रेम, सौन्दर्य का प्रतीक हूं, फिर भी क्यूं ,अबला कहलाती हूं ।      क्यूं , समाज के निर्मूल बन्धनों में, मैं तत

मुस्कुराते होंठों की, कहानी अजीब है ।        दिल में दर्द को छिपाने में,कितना कारगर हैं,ये ।दिल रोता है, फिर भी मुस्कुराकर,कुछ नयी कहानी रच देते हैं ।        प्

इस दिल पर क्यूं , जोर‌ नहीं चलता ?     वफ़ा के नाम पर, दुनिया में ठगा जाता हूं ।फिर भी इस दिल को क्यूं , समझा नहीं पाता हूं ।      मेरे हाथ, वफ़ा करने से, क्यूं रुकते नही

किसी का दिल न दुखाओ,    दिल दुखाने, की सजा, बेहिसाब होती है ।दिल दुखाने पर, आह दिल से निकलती है ।     जो दिल दुखाने वाले का, समूल नाश करती है ।लोग अपनी खुशियों के आगे, किसी का

तेरी राहों में चिरागों को, लिए फिरता हूं ।काश ! अंधेरों से न हो ,तेरा सामना ।  मेरी वफ़ायें  यूं ही , मुस्कुराती रहेंगी ।फिर चाहे , तुम्हारी नज़रों से, न हो मेरा सामना ।   ये अलग ब

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मुझ बूंद का प्रारब्ध, तो होता, अजीब ।     चलती ज्यूं , निकलकर बादलों की गोद से ।कुछ निश्चित, क्यूं नहीं होता है, मेरे भाग्य में ।     हर पल उर में, मेरे पल रहा होता है, भ

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मैं सूरज सा, चमक क्या गया ।    दुनिया, हैरान रह गयी ।जमाने ने लाख, कोशिशें की मिटाने की,     पर कोशिशें, हमको मिटा न सकी ।हम तो वो, जिगर रखते हैं ।     जो पत्थर

क्यूं , अजीब फितरत दुनिया वालों की है ?       दूसरों में कमियां निकालना,आज की पीढ़ी की, आदत सी है ।       किसी को खुश देखकर,क्यूं , दुनिया वाले खुश नहीं होते ?क

क्यूं जिन्दगी में , मिलने वाले, अपने खास नहीं होते ।       जो खास होते हैं,वो दूर क्यूं , हो जाते हैं ?जिन्दगी क्यूं , इतना आजमाती है, हमें ?        खूबसूरत लगन

सोच और वास्तविकता में, विरोध,क्यूं रहा है ?      इंसान सोचता कुछ और है,और होता कुछ और है ।प्रारब्ध के खेल निराले हैं,इसे कोई समझ नहीं पाता है ।       प्रारब्ध को कोई

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स्वरचित एवं मौलिक रचना-निर्मल गुप्ताप्रेम हो तो ऐसा,जैसा राधा-कृष्ण का था ।         त्याग हो तो ऐसा, जैसा श्री रामचन्द्र जी का था ।बावलापन हो तो ऐसा,जैसा मीराबाई जी का था ।&nb

   बिखरते हुए रिश्तों को देखकर,          क्यूं , दिल में चुभन सी उठती है ।   लाख सोचता हूं, मुझसे कोई मतलब नहीं है ।          &nbs

   बिखरते हुए रिश्तों को देखकर,          क्यूं , दिल में चुभन सी उठती है ।   लाख सोचता हूं, मुझसे कोई मतलब नहीं है ।          &nbs

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स्वरचित एवं मौलिक रचना-निर्मल गुप्ताइन गुलाबों की खूबसूरती पर,तन, मन सब वार हो गया ।      मुझको लगता है, जीवन की सूनी बगिया में, बहारों का आह्रान हो गया ।       पर ग

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स्वरचित एवं मौलिक रचना-निर्मल गुप्ताजिस मां ने,ममत्व से मुझे सींचा,वह हर भाव मेरे चेहरे का जानती है ।    सचमुच हर मां, आपने बेटे के सुख-दुख के, भाव को,पहचानती है ।कोई रिश्ता कितना भी खास हो,

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स्वरचित एवं मौलिक रचना-निर्मल गुप्ताजिन घरों में रोशनी न थी ।      वहां, मैंने हंस-हंस कर, उजाले किये ।उजाले हुए, उनकी महफिलें सज गयीं ।        महफिलें सजने पर उन्हो

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ऐ ! भोले शंकर तुम, जग में महादानी हो ।    तुम ही सृष्टि रचयिता, तुम ही संहारक हो ।तुम्हें पूजता , सम्पूर्ण जगत,कर चरणों में सतत प्रणाम ।    ऐसे भक्त पर , दुनिया का, चले न कोई वार ।

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तुम मिले तो, आज जिंदगी, मिल गयी ।        मेरे दिल में, सचमुच, इक कली खिल गयी ।इस रंगीन, आसमां में, मेरा प्यार सिमट आया है ।         इसीलिए इस आसमां ने, मेर

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स्वरचित रचना-"निर्मल गुप्ता"मैं नारी सौंदर्य का प्रतीक हूं ।    नतमस्तक सम्पूर्ण जगत,मुझ कामिनी के आगे ।मुझ बिन सृष्टि, सम्पूर्णता को न, पा पाये ।     सच पूछो,मुझ बिन, संसार प

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