नई दिल्ली : भारत के सबसे पुराने व्यावसायिक घराने टाटा में मची आंतरिक कलह के बाद अब देश की नामी सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस में भी घमासान मचा हुआ है। कंपनी के संस्थापकों और कर्मचारियों के बीच मतभेदों के सामने आने से कई लोग इस बात का अंदाजा लगा रहे हैं कि कहीं देश का एक और बड़ा व्यावसायिक घराना आंतरिक कलह की शिकार हो नही हो जायेगा।
अब इन्फोसिस के चेयरमैन आर शेषशायी कंपनी के दो पूर्व निदेशकों टी वी मोहनदास पई और वी बालकृष्णन के निशाने पर आ गए हैं। दोनों ने प्रशासन एवं खुलासा नियमों में चूक का आरोप लगाते हुए सार्वजनिक तौर पर शेषशायी से इस्तीफा मांगा है।
वर्तमान में 10 अरब डॉलर की कंपनी बनी इंफोसिस के सात संस्थापकों के पास कंपनी के शेयर हैं। इनमे से एन आर नारायणमूर्ति, उनकी पत्नी, बेटा और बेटी कंपनी में 3.44% संपत्ति के हिस्सेदार हैं। ये इकलौता परिवार है जिसके पास कंपनी की इतनी बड़ी हिस्सेदारी है।
बहरहाल कंपनी इन आरोपों पर चुप्पी साधे हुए हैं। यह दबाव तब और भी बढ़ गया, जब इन्फोसिस के संस्थापक एन आर नारायणमूर्ति ने शेषशायी पर अंगुली उठाते हुए कहा कि उनकी नजर के नीचे ही मुख्य कार्य अधिकारी विशाल सिक्का को भारी-भरकम वेतन पर रखा गया और पूर्व मुख्य वित्तीय अधिकारी राजीव बंसल तथा मुख्य अनुपालन अधिकारी डेविड केनेडी को कंपनी छोड़ते समय बतौर मुआवजा बड़ी रकम दी गई। हालांकि कंपनी ने दावा किया है कि इस निर्णय में प्रशासन के नियमों का पूरा अनुपालन किया गया है।
पई और बालकृष्णन ने कंपनी के सह-चेयरमैन पद पर मार्ती सुब्रमण्यन को नियुक्त करने के प्रस्ताव का भी समर्थन किया है। यह प्रस्ताव मूर्ति ने रखा है। सुब्रमणयन न्यूयॉर्क में स्टर्न बिजनेस स्कूल में प्रोफेसर हैं और 13 साल तक इन्फोसिस में स्वतंत्र निदेशक रह चुके हैं।
इन्फोसिस के दोनों पूर्व निदेशकों, मूर्ति तथा प्रॉक्सी सलाहकार फर्म इनगवर्न की शिकायत है कि अगस्त 2014 में सिक्का के कमान संभालने के बाद से ही कंपनी में कॉरपोरेट प्रशासन के नियम ढीले पड़ गए हैं।
मूर्ति ने एक टेलीविजन चैनल को बताया, 'कन्नड़ में कहावत है कि अगर आप ताड़ी के पेड़ के नीचे बैठकर दूध पिएंगे तो लोगों को लगेगा कि आप ताड़ी ही पी रहे हैं। इसलिए हमारे लिए अच्छा करना ही नहीं बल्कि अच्छा करते हुए दिखना भी महत्त्वपूर्ण है। समस्या यहीं पर है।'