अंजली एक सामान्य परिवार की लड़की थी जो अपने परिवार की सहती थी जिसकी वजह से उसे किसी भी बात के लिए मना नही किया जाता था वो हमेशा अपने माता पिता के सम्मान को ध्यान में रख कर ही काम किया करती थी।
अंजली को 12th के बाद आगे पढ़ने की इच्छा थी इसलिए उसके पिता ने उसकी मम्मी के मना करने के बाद भी उसे कॉलेज में दाखिला दिलाया। क्योंकि वो सोचते थे की अगर अंजली पढ़ लेगी जैसी जिंदगी वो जी रहे हैं उसे ऐसी जिंदगी नही जीनी पड़ेगी। और ना ही किसी के आगे उसे हाथ फैलाने पड़ेंगे।
अंजली की माँ शकुंतला जी हॉउस वाइफ है और पिता जयराम जी छोटी से दुकान चलाते है। उनके पास ज्यादा पैसे नही थे इसलिए शकुंतला अंजली को आगे नही पढा का बोल रही थी। फिर भी तीनो अपनी दुनिया मे खुश थे ।
अंजली की एक बेस्ट फ़्रेंड थी जिसका नाम रितिका है जो उसके साथ बचपन से पढ़ी थी और उसने भी अंजली के साथ कि एक ही कॉलेज में एडमिशन लिया था। दोनो ही एक दूसरे से हर एक बात शेयर करते थे ।
रितिका एक सम्पन्न परिवार से थी उसके पापा बिजनेस मैन है जिनका नाम अभिजीत सिंघानिया ओर वाइफ का नाम अनामिका सिंधनिया। वो भी एक डॉक्टर है। रितिका का एक बड़ा भाई है जिसका नाम अनुराग। अनुराग अपने पापा का बिजनेस सम्भलता है।
रितिका एक मॉडन ख्यालात की लड़की है पर उसे पैसे का घमंड बिलकुल भी नही है। वो हमेशा मॉडन कपङे पहनती थीं इस वजह से अंजली के पापा उसे ज्यादा पसंद नही करते थे पर वो हमेशा अपने संस्कार की सीमा में रहती थी जिस वजह से उन्होंने अंजली को कभी नहीं कहा कि वह रितिका से दूर रहे। वह खुल कर जीने वाली लड़की है उसे अपने भविष्य की कोई शिंता नही है। वह तो अंजली को भी कहती है कि जिंदगी एक बार ही मिलती है उसे जैसे जीना हो जी लो बाद में अफ़सोस नही करना पड़े।
रितिका अंजली को प्यार से अनु बुलाती है। ओर अंजली रितिका को रितु बुलाती थी।
जब अंजली अपने कॉलेज के पहले दिन जा रही थी जयराम ने बस इतना कि कहा कि मन लगा कर पढ़ाई करना।
शकुंतला जी ने उसे बहुत से बाते कई जिसे अंजली बहुत ही ध्यान से सुन रही थी । जैसे पढ़ाई में मन लगाना , बेवजह किसी से बात नही करना, किसी पर भी जल्दी विश्वास नही करना। ऐसी बहुत से बाते बताई।
अंजली घर मे बने मंदिर में गई ओर कृष्ण जी की मूर्ति के सामने दिया जलाया ओर आंखे बंद कर खड़ी होकर बोली कान्हा जी आप तो जानते है ना पापा हम पर कितना विश्वास करते है आप हमारा साथ दीजिएगा की मैं कभी उनके विश्वास को न तोड़ू।
अंजली बोल ही रही थी कि तभी बाहर से किसी की गाड़ी रुकने की आवाज आई। रितिका अनु अनु जोर जोर चिलाते हुआ अंदर चली आ रही थी। जब वो हॉल में पहुँची तो उसकी नज़र सामने खड़े जयपाल जी पर गयी और उसका बोलना बंद हो गई।
अनु ओर शकुंतला जी ने अपना सिर पिट दिया। ओर रितु चुप चाप आ कर पहले जयपाल जी के ओर फिर शंकुतला जी को प्रणाम करती है। ओर एक तरफ खड़ी हो जाती है।
जयपाल जी रितु से बोले बेटा इसका ख्याल रखना ओर दोनों मन लगाकर पढ़ाई करना। आज तुम लोगो का कॉलेज का पहला दिन है तो जाओ वरना देरी हो जायेगी। ओर हा गाड़ी थोड़ी धीरे चलाना।
रितु ओर अनु दोनो घर से बाहर आ गई । रितु ने आपनी एक्टिवा स्टार्ट की ओर अनु उसके पीछे बैठी। दोनो घर से कुछ दूर आ गई ओर अनु उससे बोली तू चिलाते हुए क्यों आ रही थी । रितु बोली यार मुझे क्या पता था अंकल घर पर होंगे मुझे लगा वो चले गए होंगे।
15 मिनट में दोनों अपने कॉलेज पहुची। कॉलेज के गेट पर अनु खड़ी होकर अपने कॉलेज का नाम देख रही थी जहाँ ACEIT लिखा हुआ था यह कॉलेज अंजली की हैसियत से काफी बड़ा था।
यह उन दिनों की बात है। जब अंजली ओर रितिका का कॉलेज में प्रवेश के बाद पहली बार कॉलेज गई थीं। उस दिन अनु बहुत खुश थीं। क्योंकि उसके लिए कॉलेज का बिल्कुल नया अनुभव था। स्कूल के बाद कॉलेज की आजादी व नए दोस्तों से मिलने की उत्सुकता, खुलकर जीने की आजादी और दिल में नई उमंगे और मुस्कुराहट, उसके चेहरे से साफ झलक रही थी।
उस समय जुलाई का महीना चल रहा था। धीमी धीमी बारिश हो रही थी। ठंडी हवाएं चल रही थी। चारों ओर हरे भरे पेड़ पौधे और हरियाली थी। मानो प्रकृति भी उसके आने का स्वागत कर रही हो। इस समय अंजली एक नए अलग ही एहसास की अनुभूति हो रही थी। कॉलेज का वह दिन सुहाने सपनों जैसा लग रहा था। और उसे पहले दिन से ही उस काॅलेज से लगाव हो गया था।
।। कमशः ।।
।। जयसियाराम ।।
Vishalramawat