नई दिल्लीः महेश भट्ट की फिल्म 'आवारगी' में गुलाम अली की गायी एक ग़ज़ल थी-
चमकते चांद को टूटा हुआ तारा बना डाला
मेरी आवारगी ने मुझको आवारा बना डाला
अनिल कपूर पर फिल्माया गया था इसे। आज एमसीडी चुनावों के नतीजों के बाद ये लाइनें अरविंद केजरीवाल के लिए फिट बैठ रही हैं। 2013 के आम आदमी के 'नायक' वाले आभामंडल से 2017 के धूलधूसरित खिलाड़ी तक उनका सफर भी कुछ ऐसा ही रहा है जिसे वह खुद गर्व से अराजक कहते रहे हैं। लेकिन सिर्फ चार साल में अरविंद केजरीवाल 'चमकते चांद' से ' टूटे हुए तारे' क्यों बन गये। क्या मोदी की वजह से? क्या मीडिया की वजह से, या 'सम्मोहित' जनता की वजह से?
ईवीएम विवाद से बाहर निकले पार्टी
EVM से बाहर निकलिए AAP लोग। वो विवाद अपनी जगह है लेकिन सिर्फ चार साल में अपने इस हाल के लिए कुछ खुद भी ज़िम्मेदारी लीजिए। ईमानदार और पारदर्शी बनिये, रहिए और दिखिये। अहं और आत्मकेंद्रित शैली त्यागिये। अब तो भगवंत मान भी आत्ममंथन की सलाह दे रहे हैं। जनता के बीच जाइये ज्यादा से ज्यादा। उससे सीधा संवाद कीजिये। प्रलाप मत कीजिये। जनता ने आपको आईना दिखाया है लेकिन ज़ीरो पर भी नहीं पटका है इसलिए सब कुछ खत्म नहीं हुआ है बशर्ते आप बची-खुची उम्मीद भी तोड़ न दें।
निगम के नतीजे से बिछी 2018 की बिसात
दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव में भाजपा ने तीसरी दफा भगवा परचम फहराया है। तीनों नगर निगम जीत लिए। इस नतीजे के साथ ही अगले साल वर्ष 2018 में दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव की अभी से बिसात बिछ गई है। एमसीडी चुनाव में जिस तरह से सत्ताधारी दल आम आदमी पार्टी और तीसरे नंबर की पार्टी कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया है। चुनाव के नतीजों ने भाजपा को 2018 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए टॉनिक देने का काम किया है।