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तुझ बिन नहीं जीना

25 अक्टूबर 2021

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भाग 6

आज स्कूल में कौशल पीयूष से कहता है ," भाई आज तो मिलने चलते हैं एक नाव वाला मेरा मित्र है वह उस पर जायेगा और एक घंटे का काम है निपटा के आएगा ,मुझे भी अपनी वाली देखनी है, उनको आज चौकियां देंगे (मतलब सरप्राइज)"! पीयूष तो एकदम से एक्साइटेड हो जाता है वह पूछता है कब " कितने बजे जाना है, !

शाम 4 बजे दोनो नाव पर सवार थे आज दोनो ने ही ट्यूशन की छुट्टी कर दी थी,बकायदा घर से परमिशन लेकर बहाना ये बना,की उसके मित्र की सगाई है और उसने नाव की व्यवस्था की है,तो दोनो को पहले डांट पड़ी फिर धमका कर परमिशन देते हैं की ऐसे छुट्टी नही कर सकते हैं,।
दोनो गंगा की लहरों को निहार रहे हैं, जैसे जैसे दूसरे किनारे के पास नाव पहुंचने लगती है वैसे वैसे उसके दिल की धड़कने तेज होने लगती है, उसे लहरों में भी मृदुला नजर आतीं है,उसे किनारे में चारो तरफ सिर्फ हाथ हिलाती मृदुला दिख रही थी,
नाव किनारे लगती है ,कौशल नाव वाले से कहता है," चाचा आप जैसे लौटने वाले होंगे  तो फोन कर दीजिएगा वैसे हम यही सामने रहेंगे,"! नाविक कहता है," हमे देर भी हो सकती है,पर तुम्हे लेकर जायेंगे,चिंता मत करो बच्चो बेफिक्र रहो,!वो नाव बांधकर जाते हैं,
पीयूष और कौशल  भी थोड़ा आगे जिस तरफ से वो आती हैं उसी तरफ जाते हैं, सामने एक छोटा सा गांव दिखाई देता है,
दोनो वहीं रुकते हैं, पीयूष उसको कॉल करता है तो वह उठाती है और कहती है" का सजनवा अब याद आई है, "! पीयूष कहता है ," कहां हो ,? हम इंतजार कर रहे हैं,! वह कहती है आज शायद नही आ पाएंगे घर में मेहमान आए हैं,"! पीयूष का तो जैसे दिल ही बैठ गया,वह रूवासा होकर कहता है," यार हम तुम्हारे लिए गंगा पार करके आए हैं और तुम आज ही धोखा दोगी,"! वह चौक कर कहती है" हे भगवान , अरे महाराज आने से पहले एक फोन तों कर देते , ठीक है रुको आते हैं पर अधिक देर रुक नही पाएंगे,"! कौशल कहता है" अरे भौजी ,अपनी बहनिया को भी लेते आना हम भी चक्कर चला लेंगे ,"! वह कहती हैं" ज्यादा उछलो मत नही तो चक्कर खा कर गिर जाओगे , हमारी बहन रास्ते में हर किसी आने जाने के चक्कर में नही पड़ेगी,समझे,फोन रखो नही तो आयेंगे कैसे "! वह फोन रखता है ।  5 मिनट में दूर गांव की तरफ से दो साया नजर आती है , पास आते ही वह साफ नजर आने लगती हैं, दोनो बड़ी तेज़ी से उनकी तरफ बढ़ते हैं,दोनो उनके पास हाफते हुए पहुंचते हैं,
मृदुला उनको देख कहती है" बदले आशिक हो सजनवा ,! बिना बताए चले आएं,हम तो आज आने वाले ही नही थे थोड़ी देर में फ़ोन करते,! कौशल कहता है" सबेरे से परेशान हैं मिलने के लिए ,मजनू बन गए हैं, ! मृदुला कहती है " हम लैला वेला नही हैं,हम तो सजनी है इनकी और ये हमारा सजनवा बनेंगे क्यों पंडित जी,हमको अपनी पंडिताइन बनाएंगे ,! पीयूष उसके बेबाक पन पर हैरान होता है,तभी गांव के एक दो लोग वहां आते हैं और इन चारो को देखते हैं तो एक कहता है , " अरे ई तो पांडे जी की लड़कियां  है जो शहर में पढ़ती है ,और ई दोनो कौन है, चलो देखें"! दोनो उनके पास पहुंचते हैं तो दोनो लड़कियां घबरा कर भागती हैं, तब उन्हे और शक होता है, तो वह इन दोनो को पकड़ते हैं, इन दोनो की हालत खराब होती है ,दोनो आदमी इन दोनों का कान पकड़ कर ऐंठने लगते हैं और पूछते हैं, " कौन हो तुम लोग, कहां से आए हो ,आस पास के तो हो नहीं , कौशल बात सम्हालता हुए कहता है, " चाचा कान तो छोड़ो दर्द कर रहा है ,पहले हमारी बात तो सुनिए, "! वह कान छोड़ता है, कौशल कहता है" चाचा हम लोग उस पार से आए हैं बस ऐसे ही घूमने हमारी नाव भी खड़ी है, देखने का मन था ,इस पार आकर ,तो ये दोनो दिख गई तो हम पूछने लगे कि सामने गांव कौनसा है बस तब तक आप आकर कान उमेठने लगे,"! दोनो आदमी उनका कान छोड़ते हैं, और कहते हैं कि क्या नाम है दोनो अपना नाम बताते हैं तो ब्राह्मण लड़के हैं जान कर वो खुश होते हैं और कहते है "चलो गांव में खा पी के जाना ,! पीयूष कहता है नाव वाले चले जायेंगे तो हम पार कैसे जायेंगे"!  , उधर दूर से मृदुला और उसकी बहन इनको ही देख रही थी, गांव वाले कहते हैं " 15 मिनट में आ जाना चलो हम आदमी भेज के  नाव रुकवा देंगे, !  इतनी दूर से हमारे गांव आए हो तो ऐसे कैसे जाओगे  चलो"! दोनो चलने लगते हैं, मृदुला अपनी बहन से कहती है " लगता है पकड़ लिए गए अब क्या होगा चल घर चले पता नहीं क्या होगा ,!

आगे की कहानी अगले भाग में पढ़िए ....!

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रचनाएँ
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