भाग 7
पीयूष और कौशल दोनो मेहमान की तरह घर के बाहर बैठे हैं, आस पास के घर वाले भी आकर देख रहे हैं, बेचन पांडे जो इनको लेकर आए हैं वो मृदुला के चाचा लगते हैं,मृदुला और उसकी बहन छुपकर देख रही हैं की उनके साथ क्या हो रहा है, पर उनका आदर भाव देख खुश होती हैं,गांव के लोग दोनों को ऐसे स्वागत करते हैं जैसे उनके दामाद ही आ गए हैं,।
मृदुला के पिता भी वहा पर आते हैं,तभी मृदुला और उसकी बहन भी धीरे धीरे देखने के बहाने आती हैं उसे देख बेचन उसके बाप बाबा पांडे से कहता है ," का बाबा भईया ,देखो आप के लिए दामाद ढूंढ के लाए हैं, दशामेश घाट के पास घर है पिता अशोक दुबे है हरिश्चंद्र इंट्रमिडियट स्कूल में, (धीरे से) लड़का अच्छा है, आप भी तो ढूंढ ही रहे हो , बाबा पांडे बोलते हैं, " अरे अशोक दुबे ,वो तो हमारे मित्र हैं, (पीयूष से) क्यों तुम उन्ही के बेटे हो ,"! पीयूष ने हां में सर हिलाया,। पीयूष और कौशल की आव भगत खूब होती है, मृदुला उसे मैसेज करती है," अरे वाह ,दामाद अभी बने नही पर दामाद जैसे सेवा हो रही है,खूब मजा ले रहे हो, अब एक दिन मै तुम्हारे घर आऊंगी,! पीयूष धीरे से उसको ढूंढ लेता है, और देख मुस्कुराता है,तभी बेचन के फोन पर कॉल आता है , वह उठाता है,तो सामने से आवाज़ आती है भईया नाव वाले आ गए हैं, ! तभी पीयूष का मोबाइल बजता है नाव वाले का फोन आया है, वह कहता है कहां हो जल्दी आओ नही तो हम चले जायेंगे,"! वह कहता है," चाचा बस निकल गए हैं"! वह उठता है और वहां खड़े सभी बड़ो का पैर छूता है,कौशल भी उसका अनुसरण करता है, दोनो किनारे की तरफ बढ़ते हैं उनके साथ छोड़ने के लिए गांव के लड़के साथ जाते हैं ,।
सभी नाव के पास है, नाव चलती है,पर पीयूष की नजर मृदुला को ढूंढ रही थी, तभी दूर से एक कोने से मृदुला हाथ हिलाते दिखती है, वह भी हाथ हिलाता है, उसके चेहरे पर एक अलग ही तेज़ नजर आने लगा था, आज तो वह अपने प्रेयसी के घर के करीब जो पहुंच गया था,और वहा जो
आदर सत्कार हुआ वह तो कभी सोच भी नहीं सकता था , जब उन दोनो ने पकड़ा था तो एक बार के लिए दोनो की पैंट गीली होते होते बची थी,।
कौशल उसे खोया देखती है ,और कहता है," गुरुआं अब का सोच रहा है, अगली बार बारात लेकर आते हैं और ले जाते हैं भौजाई को,"! वह मुस्करा कर कहता है" जरूर लेकर जायेंगे और उसे बिदा करके भी लायेंगे,"! वह फिर खो जाता है ,तभी फ़ोन का रिंग टोन बजता है, वह देखता है तो उसकी प्रेयसी का नंबर है उसने उसका नाम फीड नही किया है, इस डर से कही पिताजी ने देखा तो पूछ लेंगे तो वो क्या बोलेगा, । वह फोन उठाता है तो सामने से कहती है" सजनवा ,बिना मिले चले गए,हमारी तरफ देखे भी नही,अच्छी बात नहीं है,! और हसने लगी, पीयूष कहता है " देखा तो था ,पर सभी लोग तो घेर रखे थे ,कैसे देखता ,सभी पकड़ के पीटते अगर उन्हें पता चलता की हम तुमसे मिलने आया था,"! वह फिर हंसती है,।
नाव किनारे लगती है, कौशल पूछता है, " चाचा अब कब जाओगे ,! वह कहता है" हर शनिवार इसी समय जाते हैं,जाना हो तो आ जाना, ले चलेंगे,! दोनो उसे धन्यवाद कहकर उतरते हैं, दोनो ही बड़े खुश हैं,।
घर पहुंचते ही सबसे पहले पापा से सामना होता है,वह पूछते हैं," हो आए ,! कौन से गांव में गए थे , किसके यहां" ,! इतने सारे अप्रत्याशित सवालों का सामना करने को वो तैयार नहीं था, पर अब जवाब तो देना ही था पर कुछ सुझाई नही दे रहा था,तब उसे उस गांव का नाम याद आता है,जो नाविक ने बताया था,हरिपुर । वह कहता है ," हरिपुर ,वो मेरे मित्र का नाम रमेश मिश्रा है ,! उसके पिता उसे गौर से देखते हैं, और कहते हैं" हरिपुर तो ठाकुरों का गांव है,वहा मिश्रा तो कोई नही है"! ,तभी उसकी मां आकर कहती हैं," बस भी करो पहली बार गया है, और आप भी तो कौनसा रोज जाते हो , अब गांव बड़े हो रहे हैं बहुत लोग इधर उधर से आकर बस गए ,अब यहीं देखिए पहले हम दो चार घर ही थे, अब आपको पता भी नहीं होगा कितने लोग आ गए,! वह सर हिला कर रह जाते हैं, नीता पीयूष से पूछती है" कुछ खायेगा , ! वह कहता है" नही मां ,पेट एकदम भरा है,इतना बढ़िया खाना बना था की ठूंस कर खा लिया,"! पापा कहते हैं" हां इनको यह तो अच्छा खाना नही मिलता इसलिए आधे पेट खाते हैं"! नीता पति को देखती है तो वह चुप होते हैं, पीयूष अंदर जाता है तब वो धीरे से कहते हैं," तुम्हारा लाडला बिगड़ रहा है , पहले मोबाइल फिर नए मित्र , देख लो नाक कटवा देगा , "! नीता कहती है" ठीक ही होगा ,बहुत बड़ी नाक है आपकी थोड़ी कट गई तो क्या बिगड़ जायेगा, "! वह गुस्से से देखता है तो वह मुस्करा देती है,!
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