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तुझ बिन नहीं जीना

24 अक्टूबर 2021

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भाग 1

पीयूष दुबे वाराणसी के दशमेश घाट के पास ही रहता है, वह 10th ka छात्र है,वह और उसके अध्यापक पिता और मां,बस ये तीन लोगो का संपूर्ण परिवार पिछले 2 वर्षो में उसके दादा दादी एक के बाद एक स्वर्ग सिधार गए, पीयूष अपने दादा दादी को बहुत चाहता था इसलिए उसे बहुत खालीपन महसूस होता था, और जब भी ऐसा होता तो वह गंगा किनारे चलते हुए किसी सुनसान मतलब कम भीड़ वाली जगह पर बैठ जाता था और पानी को निहारता रहता था,यह उसकी प्रति दिन की दिनचर्या में शामिल हो गई थी ,एक दिन वह शाम को बैठा पानी में देख रहा था,शायद उसे पानी में दादा दादी के अक्स दिखाई देता था क्योंकि उनकी अस्थियां यही पर बहाई गई थी, अचानक उसकी नज़र सामने के किनारे पर खेल रही दो लड़कियों पर पड़ती है, वह ध्यान से देखने लगता है तो उसे दोनो ही सुंदर और आकर्षक दिखाई देती हैं, उन्हे देखने के बाद उसके अंदर का पुरुष जागृत होने लगा ,इसके पहले उसने कभी लड़कियों पर कभी ध्यान नहीं दिया था वैसे देता भी कैसे पिता ही क्लास टीचर थे ,उन्ही के साथ जाना और आना था,बाद में दादा दादी के साथ किस्से कहानियों और पढ़ाई में गुजर जाता था ,ये तो 10th में आने  के बाद और बहुत शांत रहने की वजह से उसके पिता अशोक दुबे जी ने उस से कहा" बेटा थोड़ा घूम फिर आया करो मन को शांति मिलती है, और समाज में क्या हो रहा है उसका पता भी चलता है,
तब से उसका अकेले बाहर निकलना शुरू हुआ, हां तो बात हो रही थी कि लड़कियों को देख पहली बार उसका मन पुलकित हुआ,वैसे भी गंगा मैया के दोनो किनारे में विशेषता यह है कि एक तरफ तो घाट और मंदिर मंडी से भरा इलाका तो दूसरी तरफ वीरान बालू से भरा तरबूज़ की खेती है, और उस तरफ लोग भी कम ही दिखाई देते थे, कभी कभी कोई श्रद्धालु मन्नत पूरी करने घाट के इस पार से दूसरे किनारे तक की ओढ़नी या माला चढ़ाने के लिए  नांव से जाते थे, खैर जब उसने उन्हे देखा तो अपलक देखता रहा उसे उनकी चेहरे की खिलखिलाहट साफ दिखाई देने लगी थी,आज वह इस चक्कर में घर देर से पहुंचा, उसकी मां ने पूछा " बेटा कहां चले गए थे आज देर कर दिया,"! वह कहता है" मम्मी बस ऐसे ही गंगा जी के किनारे बैठा रह गया था, उसके पिता शाम को टयूशन पढ़ाते थे तो रात देर से आते थे,!
खाना खाने के बाद पीयूष थोड़ी देर पढ़ाई करता था पर आज उसको किताबो में उन लड़कियों की तस्वीर दिखाई दे रही थी, विशेष तौर पर जो थोड़ी लम्बी थी, !
वह रात सोचते सोचते कब सो गया उसे पता ही नही चला,उसके पिता ने उसको लिटा कर चद्दर ओढ़ाया था, सुबह उठते ही पीयूष को फिर वही लड़कियां दिखने लगी, और यही इस टीन एज में खतरनाक साबित होता है,जिसकी शुरुवात पीयूष में हो चुकी थी,आज पूरे दिन पीयूष का पढ़ने में मन नहीं लगा उसे लग रहा था कि कब घर पहुंचे और बैग रखकर गंगा किनारे पहुंचे,आज उसके पिता जी को कुछ और काम आगया तो घर पहुंचने में थोड़ी देर हो गई थी ,और पीयूष के मन में तो तूफान उठ रहा था अगर उसका बस चलता तो वह स्कूल से ही भाग जाता,घर पहुंचते ही वह जल्दी जल्दी हाथ मुंह धोकर जाने लगता है तो मां कहती है नाश्ता कर ले तो वह रोल किए हुए घी के पराठे जिसमे मां ने आलू की सब्जी भी डाली थी उसको खाते हुए जाता है मां उसके इस हरकत से सोच में पड़ जाती है क्योंकि वह कभी भी ऐसी हड़बड़ाहट नही करता था,।
वह गंगा किनारे अपने स्थान पर पहुंचता है तो सामने उन दोनो को देख पुलकित हो उठता है,आज उनके साथ और भी छोटे बच्चे थे, वह उस किनारे ध्यान से पराठा खाते हुए देखने लगता है ।

आगे की कहानीअगले भाग में,,,

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रचनाएँ
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