नई दिल्लीः
मुरादाबाद के जिस कांठ में सिर्फ एक लाउडस्पीकर के चलते 2014 में दंगा भड़क उठा था, वहां पर चार माह पहले सपा नेता के संरक्षण में स्लॉटर हाउस खुलवाया जा रहा था, वो भी बहुसंख्यक आबादी के बीच।
वो भी तब जब स्थानीय बाशिंदे विरोध में धरना दे चुके थे। जब एसएसपी दिनेश चंद्र दुबे ने कानून-व्यवस्था बिगड़ने का हवाला देकर बूचड़खाने को एनओसी देने से मना किया तो डीजीपी जावीद अहमद ने घंटे भर में ट्रांसफर कर दिया। डीजीपी पर भी दबाव था। क्योंकि नेता की पहुँच एनेक्सी के पंचम तल तक थी। पुलिस एनओसी के लिए सीधे उसी तल से एसएसपी पर दबाव डाला जा रहा था। मगर बहादुरी के लिए 2005 में पुलिस पदक पा चुके दिनेश दुबे घुटने नहीं टेके। वही किया जो ज़मीर ने गवारा किया। बोले-इलाके में पहले से सांप्रदायिक तनाव है, लोग भड़के हैं, बूचड़खाना खुलवाकर हमें दंगा नहीं कराना है। पंचम तल की इस नाफरमानी का इनाम उन्हें ट्रांसफ़र के रूप में भुगतना पड़ा। तैनाती के तीन महीने में ही दिसंबर 2016 में दुबे को मुरादाबाद छोड़ना पड़ गया।
खैर यह घटना बानगी है कि सपा राज में एक स्लॉटर हाउस की क्या औक़ात होती थी। कि एसएसपी की कुर्सी भी हिल जाती थी। जानवरों के क़त्ल के धंधे में ख़ुद तब सचिवालय का पंचम तल भी कितना रुचि लेता था। आज वही डीजीपी जावीद अहमद हैं, मगर तेवर बदल गए हैं। अब तक उनके राज में अवैध स्लॉटर हाउस बेखौफ चलते रहे मगर आज उन्हीं के फ़रमान पर बूचडखानों पर ताले लटक रहे है।
ग़ाज़ियाबाद से मुरादाबाद और मेरठ से अलीगढ़ तक तो बनारस से बस्ती तक धड़ाधड़ एक्शन हो रहा है। दोष जावीद अहमद जैसे अफ़सर बेचारों का नहीं है , निज़ाम की नीयत का है। जावीद अहमद जैसों का काम तो बस हुक्म की तामील करना है। एक सीएम अवैध बूचड़खाना चलाना चाहता था तो डीजीपी ने चलने दिया। अब नए सीएम ने बूचड़खाना बंद करना चाहा तो डीजीपी जावीद भी ताला लटकवा रहे। क्योंकि निज़ाम बदल चुका है। नीति बदल गई। नीयत बदल गई और प्राथमिकता बदल गई है।
कुछ समय पहले फोन पर मेरी बात वेस्ट यूपी में तैनात परिचित एसएसपी से हो रही थी। मैने पूछा-आपके यहाँ किस तरह का क्राइम ज़्यादा हो रहा। पंचलाइन में बोले-'इंसान सुरक्षित हैं मगर जानवर ख़तरे में हैं'। हमने पूछा मतलब? बोले- पशुचोरी की घटनाएँ बढ़ गईं हैं। गाँव-गाँव से शिकायतें आ रहीं हैं। वेस्ट यूपी में तस्करों का पूरा गिरोह है। रात में पिकअप लेकर चलते है। पशुओं को खींच ले जाते हैं और जब तक शिकायत पर पुलिस तत्पर हो तब तक जानवर बूचडखाने में कटकर मांस में बदल जाते हैं। बोले-मवेशियों की लूट भी हो रही।
घटना बताए कि चराने के लिए एक किसान गायें ले गया था। चार-पाँच लोग आए और गाय गाड़ी में लादकर चलते बने। बूचडखाने बंद होने से मवेशियों की चोरी रुकेगी।
भला सोचिए सत्ता की सरपरस्ती अगर न होती तो कैसे पूरे यूपी में तीन सौ अधिक बूचड़खाने चल रहे होते। जिसमें से सिर्फ 126 का नाम-पता सरकारी काग़ज़ातों पर दर्ज है।
सबसे चौंकाने वाली बात है। ख़ुद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एनजीटी में हलफनमा देकर यह स्वीकार करता है कि यूपी में सिर्फ एक बूचडखाना ही वैलिड परमिट के साथ चल रहा। मामला बहुत गंभीर है। क्योंकि देश से जो 60 लाख मीट्रिक टन मांस का निर्यात होता है, उसमें से 11 लाख टन हिस्सा केवल यूपी से होता है । जाहिर सी बात है कि एक स्लॉटर हाउस से यह कतई संभव नहीं।
एनजीटी में दायर जिस याचिका पर सभी अवैध बूचड़खानों के बंदी का आदेश हुआ। उसमें कहा गया है कि गाजियाबाद, संभल, अलीगढ़ व बुलंदशहर में सबसे ज्यादा स्लॉटर हाउस हैं। यहां भूजल की स्थिति पहले से ही काफी ख़तरनाक स्थिति में है और भारी दोहन के चलते डार्क जोन में आ चुके हैं।
नियमों के अनुसार स्लॉटर हाउस में जीरो लीटर डिस्चार्ज (जेडएलडी) का मानक लागू किया जाना जरूरी है, मगर हकीकत में स्लॉटर हाउस बड़ी तादाद में पानी का उपयोग करते हैं। यही नहीं स्लॉटर हाउस में इफलुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) भी नहीं लगाए गए। जिन 21 स्थानों पर लगे भी तो इससे स्लॉटर हाउस से निकलने वाली गंदगी दूर नहीं होती। इसलिए स्लॉटर हाउस में सीवेज शोधन संयंत्र लगाए जाने चाहिए।
मैं किसी धंधे का विरोधी नहीं हूँ मगर अवैध धंधे का विरोधी हूँ। क्योंकि अवैध बूचडखाना संचालक न केवल क़ानून विरोधी काम कर रहे बल्कि लोगों की सेहत के साथ भी खेल रहे। कौन जानता है कि आप कैसा माँस सप्लाई कर रहे। बीमार पशु का माँस खिला रहे हो या संक्रमित। नियम तो यह कहता है कि मेडिकल परीक्षण के बाद ही बिना दुधारु पशु कटें। अपनी आत्मा की कहूँ तो एक भी पशु नहीं कटना चाहिए। बीमार होने पर डॉक्टर का एक इंजेक्शन भी बहुत दर्द देता है, और भला सोचिए जब किसी बेज़ुबान के गले पर छुरी चलती होगी...सिर्फ जीभ के लिए किसी की जान....राम..राम...राम
ईश्वर अल्ला तेरो नाम, सबको सन्मति दें भगवान !!