लखनऊ : यूपी में अंतिम चरण के चुनाव में बीजेपी को पीएम नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में अपनों के ही विरोध के चलते 'नाको चने चबाने' पड़ रहे हैं. जिसके चलते यहां की आठ विधानसभा सीटों पर कड़ा मुकाबला होता दिखाई दे रहा है. पिछले चुनाव में यहां की तीन सीटों पर बीजेपी ने अपना कब्जा बनाया था. जिनको बचाने के लिए बीजेपी को इस बार एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है. इसके कारण वाराणसी में करीब -करीब सभी सीटों पर बड़ा रोमांचक मुकाबला होता दिख रहा है.
चुनाव के अंतिम चरण में वाराणसी में बीजेपी के धुरंदरों का डेरा
सूत्रों के मुताबिक बीजेपी से नाराज जनता को जहां खुश करने के लिए पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में तीन दिन के लिए डेरा डाल दिया है वहीँ पार्टी के शीर्ष नेता भी पूरी जोर शोर के साथ पार्टी को यहां अधिक से अधिक सीटें जितवाने के लिए कड़ी मेहनत करते हुए दिखाई दे रहे हैं. विधानसभा चुनाव की लड़ाई अब अपने अंतिम मोड़ तक पहुंच गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की साख कैसे बचे, इस जददोजहद में बीजेपी का पूरा केंद्रीय नेतृत्व जुटा हुआ है. बावजूद इसके बीजेपी प्रत्याशियों को विरोधियों के साथ ही अपनों की भी चुनौती मिल रही है, जिससे कई सीटों पर लड़ाई रोचक होती नजर आ रही है.
वाराणसी में कुल आठ सीटें
वाराणसी में कुल आठ विधानसभा क्षेत्र हैं. सेवापुरी, शिवपुरी, अजगरा, पिंडरा, शहर उत्तरी, शहर दक्षिणी, बनारस कैंट और रोहनियां. पिछले विधानसभा चुनाव 2012 में बनारस की तीन सीटों वाराणसी कैंट, वाराणसी उत्तरी और वाराणसी दक्षिणी सीटों पर बीजेपी का कब्जा रहा था. फिलहाल बनारस में बीजेपी को इन अपनी तीनों सीटें बचाने के लिए एड़ी चोटी का संघर्ष करना पड् रहा है, जबकि सेवापुरी विधानसभा में भी कांटे की टक्कर दिखाई दे रही है.इतना ही नहीं वाराणसी दक्षिणी सीट: मोदी के संसदीय क्षेत्र में यदि कोई सीट सबसे अधिक चर्चा में है तो वह वाराणसी दक्षिणी सीट है. इसकी वजह यहां से बीजेपी के दिग्गज व वर्तमान विधायक विधायक और लगातार सात बार चुनाव जीत चुके श्यामदेव राय चौधरी का टिकट कटना है.
बीजेपी कर रही है मशक्कत
इस सीट को ब्राह्मण बाहुल्य सीट मानी जाती है. यहां से बीजेपी ने वर्तमान विधायक श्यामदेव राय चौधरी का टिकट काटकर नीलकंठ तिवारी को मैदान में उतारा है. इसी सीट से एसपी व कांग्रेस गठबंधन की तरफ से राजेश मिश्रा को टिकट मिला है. राजेश हालांकि बनारस से कांग्रेस के टिकट पर एक बार सांसद भी चुने जा चुके हैं. बावजूद इसके उन्हें भी मतदाताओं के बीच कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है. बीएसपी ने यहां से राकेश त्रिपाठी को मैदान में उतारा है. वह अपने विरोधियों को कडी टक्कर दे रहे हैं. इलाके के लोग बताते हैं कि ब्राह्मण बाहुल्य सीट पर जीत की कुंजी मुस्लिम व दलित मतदाताओं के पास है. यहां मुस्लिम मतदाताओं का रुझान एसपी की तरफ माना जा रहा है. ऐसे में राजेश मिश्रा बीजेपी उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दे रहे हैं.
बीजेपी को पहुंचा रहे हैं उनके अपने ही नुकसान
इधर बीजेपी के नेताओं का दावा है कि कड़ी मशक्कत के बाद पार्टी के नाराज कार्यकर्ताओं को मना लिया गया है. लेकिन बीजेपी सूत्रों की मानें तो कई बागी अंदरखाने ही बीजेपी से भितरघात करने में जुटे हुए हैं. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, “कहीं कोई नाराजगी नहीं है. सबको मना लिया गया है. बीजेपी के सभी कार्यकर्ता पार्टी को जिताने में जुटे हैं. कुछ बागी कार्यकर्ताओं को बाहर का रास्ता भी दिखाया गया है.” हालांकि श्यामदेव राय चौधरी की नाराजगी से बीजेपी को किस कदर नुकसान हो रहा था, इसका अदांजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीजेपी आला कमान को एक वर्ष पहले ही बकायदा एक प्रेस नोट जारी कर यह कहना पड़ा कि पार्टी उन्हें विधान परिषद में भेजेगी.
विरोधियों और अपनों के बीच फंसी बीजेपी
यही हाल उत्तरी सीट का है. उत्तरी सीट पर भी बीजेपी विरोधियों और अपनों के बीच फंसी है. यहां से बीजेपी ने वर्तमान विधायक रवींद्र जायसवाल को टिकट दिया है. एसपी व कांग्रेस गठबंधन की तरह से अब्दुल समद अंसारी चुनाव मैदान में हैं. बीएसपी ने सुजीत कुमार मौर्य को इस सीट से टिकट दिया है. इसी तरह शहर उत्तरी से बीजेपी के बागी उम्मीदवार सुजीत सिंह टीका मैदान में बीजेपी का खेल बिगाड़ने में लगे हुए हैं. पार्टी ने हालांकि उन्हें पार्टी से निकाल दिया है और वह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं. अब्दुल समद अंसारी के एकलौते मुस्लिम होने की वजह से मुस्लिम मतदाताओं का रुझान उनकी तरफ माना जा रहा है.
क्या बोले टीका ?
टीका ने हालांकि कहा कि बीजेपी ने अपने कार्यकर्ताओं को सम्मान देने की बजाय पार्टी से निष्कासित कर दिया. अब हम निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं. जनता तय करेगी कि हमारा भविष्य क्या होगा. बीजेपी को इस बार जनता ही सबक सिखाएगी.इस सीट से बीजेपी के ही एक और कार्यकर्ता अशोक कुमार सिंह भी चुनाव मैदान में हैं. वह भी प्रत्याशियों के बीच कड़ी मेहनत कर रहे हैं. हालांकि मतदाताओं का कितना समर्थन मिलेगा यह कहना अभी जल्दबाजी होगी.
कैंट सीट पर कांटे की टक्कर
वाराणसी कैंट सीट पर भी कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है. एसपी और कांग्रेस गठबंधन ने इस बार हालांकि अनिल श्रीवास्तव को यहां से टिकट दिया है. अनिल पहले भी कांग्रेस से ही इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं. तब उन्हें लगभग 50 हजार मत मिले थे. इस बार वह गठबंधन के भरोसे बीजेपी को धूल चटाने का दावा कर रहे हैं. अनिल श्रीवास्तव ने कहा कि काशी ने देश को एक प्रधानमंत्री दिया लेकिन तीन वर्षो बाद भी यहां की स्थिति जस की तस है. विकास के नाम पर कुछ नहीं हुआ है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यहां काफी काम कराये हैं और सबसे बड़ा काम तो बनारस को 24 घंटे बिजली मुहैया कराना है.
मुस्लिम मतदाताओं के वोट पर निर्भर करेगी हार-जीत
अनिल श्रीवास्तव को हालांकि इस बार वाराणसी से दमदार प्रत्याशी के तौर पर देखा जा रहा है. इलाके के लोग बताते हैं कि बीजेपी ने इस बार पिछली बार की विधायक ज्योत्सना श्रीवास्तव के बेटे सौरभ श्रीवास्तव को टिकट दिया है. इलाके के लोग एक तरफ जहां परिवारवाद का आरोप लगा रहे हैं वहीं दूसरी और अनिल श्रीवास्तव जैसे मंझे हुए खिलाड़ी के सामने सौरभ अपनी पूरी ताकत लगाए हुए हैं. बीएसपी ने इस सीट से रिजवान अहमद को मैदान में उतारा है. कैंट में हालांकि मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है, लेकिन यहां के जानकार बताते हैं कि बीजेपी को हराने के लिये मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव एसपी-कांग्रेस गठबंधन की तरफ हो सकता है.
कुर्मी बाहुल्य है सेवापुरी सीट
बनारस की सेवापुरी सीट पर भी विरोधियों ने बीजेपी की तगड़ी घेरेबंदी की है. यूं तो इस सीट पर बीजेपी के सहयोगी पार्टी अपना दल (अनुप्रिया पटेल) के उम्मीदवार नीलरतन पटेल हैं. जबकि इसी सीट से अनुप्रिया की मां कृष्णा पटेल ने अपने गुट की तरफ से विभूति नारायण सिंह को टिकट दिया है. विभूती नारायण सिंह लंबे समय तक बीजेपी के नेता रहे हैं और इलाके के मतदाताओं के बीच अच्छी खासी पैठ है. दूसरी ओर एसपी और कांग्रेस गठबंधन की तरफ से मंत्री सुरेंद्र पटेल चुनाव मैदान में हैं. पिछली बार भी वह इस सीट से अच्छे अंतर से जीते थे.