इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन अपनी विश्वसनीयता साबित करने के लिए भारत की जनता पर 3174 करोड़ का बोझ डालने जा रही हैं। इस पैसे से ईवीएम में एक और मशीन लगेगी जो वोट करने के बाद एक रसीद निकालेगी जो एक डिब्बे में गिरने से पहले बता देगी कि आपने जिसे वोट दिया है, उसी पर वोट पड़ा है। अगर विवाद होगा तो इस रसीद से गिनती की जाएगी। दिमाग़ तख़्ती पर रख कर सोचेंगे तो यह आधे तौर से बैलेट पेपर की वापसी भी है।
अगर चुनाव आयोग को ईवीएम पर इतना ही भरोसा है तो फिर वीवीपैट मशीन के लिए तीन हज़ार करोड़ क्यों। जब आयोग पूरी दुनिया को चुनौती दे रहा है कि मशीन से कोई छेड़छाड़ करके दिखा दे तो फिर तीन हज़ार करोड़ लगाकर एक और मशीन क्यों ? फिर बात उठेगी कि एक पर्ची वोटर ले जाएगा और एक पर्ची आयोग के पास रहेगा तो उसके लिए भी दो हज़ार करोड़ चाहिए? तीन हज़ार करोड़ की लागत से वीवीपैट मशीन आएगी। इसमें जो काग़ज़ लगेगा क्या वो बैलेट पेपर में लगने वाले काग़ज़ से कम होगा ?
मशीन और ऐप के नाम पर जनता पर कबाड़ थोपा जा रहा है। जनता कहेगी कि हम ग़रीब क्यों हैं तो सरकार कहेगी ये लो ऐप इसमें ग़रीबी दर्ज करो। ग़रीबी दूर नहीं होती, ऐप आ जाता है। इस दौर में मशीनों के प्रति ग़ज़ब दीवानगी है। सोलह राजनीति क दलों ने बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की। आयोग ने तीन हज़ार करोड़ की मशीनें मांग दी । और अगर ये मशीनें इतनी ही ज़रूरी थीं तो सरकार ने पैसे देने में इतनी देरी क्यों की ? अगर राजनीतिक दलों ने हंगामा नहीं किया होता तो कैबिनेट वीवीपैट को मंज़ूरी देती ? तो इस हंगामे का ये नतीजा तो निकला ही कि अगर वोटिंग मशीन को विश्वसनीय बनाना है तो तीन हज़ार करोड़ और ख़र्च करेंग। चुनाव आयोग इतना महँगा निवेश किसके लिए कर रहा है? अदालत के आदेश के बाद कर रहा है तो उसे ही फिर चुनौती दे कि मशीन से कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकता। चीन हज़ार करोड़ हलवा है क्या ? ग़ज़ब अंधेरगर्दी है ।