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नई दिल्ली: अपने दौर के बेजोड़ हीरो विनोद खन्ना की याद में यूँ तो अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग में बहुत कुछ लिखा है और बेहद जज़्बाती होकर लिखा है. लेकिन अमिताभ ये बताना नहीं भूले कि एक दौर ऐसा भी था जब विनोद उनसे बड़े स्टार थे . अमिताभ उन दिनों को याद करते हुए लिखते हैं कि इस बेहतरीन दोस्ती में उन्हें वो दिन याद हैं जब विनोद उन्हें फोल्क्सवैगन कार में घुमाने ले जाते थे और मुंबई के इकलौते डिस्को क्लब में भी वो विनोद के साथ ही एंट्री पाते थे. अमिताभ लिखते हैं तब उनकी हैसियत ताज होटल के डिस्को क्लब के सदय बनने की भी नहीं थी.
पढ़िए अमिताभ के इस भावुक लेख के कुछ अंश जिन्हे अंग्रेजी से हिंदी में अनुवादित किया है दीपक शर्मा ने.
कोई बिलकुल ठहरा हुआ ...स्थिर ..आँखें जैसे हमेशा के लिए मूँद ली गयी हों... एक काया काठ के बीचोंबीच..चारों ओर से ढकी ...लपटों के बीच जलती हुई ..और सहसा एक ज़िन्दगी सामने-सामने राख हो गयी.
मैंने पहली बार उसे सुनील दत्त के अजंता आर्ट्स ऑफिस में देखा था. वो ऑफिस के भीतर दाखिल हो रहा था जहाँ मैं भी काम की तलाश में खड़ा था. ..वो एक बेहद खूबसूरत, हैंडसम सा नौजवान था ...एक सुडौल ढाँचे में कसा हुआ बदन .. एक इठलाती चाल ...और उसके चेहरे पर खिंची एक विनम्र मुस्कान जो मेरी तरफ ताक रही थी...वो 1969 का बरस था ..वो तब सुनील दत्त की फिल्म 'मन का मीत' में काम कर रहा था ...और मैं एक रोल ...किसी भी तरह के एक रोल के लिए ..भटक रहा था.
उसी अहाते में हम दुबारा मिले...इस बार मैं और वो , दत्त साहब की फिल्म 'रेशमा और शेरा ' में काम कर रहे थे....उसी अजंता आर्ट्स के दफ्तर में हम एक साथ ट्रायल करते ..फिल्म की कहानी को लेकर सिटिंग करते...थापा साहेब, अली रज़ा, सुखदेव ..सबके साथ रात रात भर की बैठकें ..मेरी लिए नई अनुभूति थी...फिल्म इंडस्ट्री कैसे काम करती है वो मेरा पहला तजुर्बा था...फिल्म की शूटिंग का वक़्त हो या जैसलमेर जैसे लोकेशन तक सफर करने का जोश...जो महीने हमने साथ साथ गुजारे या उसके बाद ...सुनसान रेगिस्तान की दहकती गर्मी में राजस्थान की पोचिना जैसे रेतीली लोकेशन पर ... एक टेंट के भीतर...विनोद, रंजीत, थापा, अली रज़ा साहेब ...कोई सात लोग थे हम उसी एक टेंट में ..और फिर हम सभी वहां से जैसलमेर के एक घर में शिफ्ट हो गए ...और उसी घर में हम लोगों के बीच अमरीश पुरी भी आ गए ...जहाँ काम के साथ साथ मस्ती और ख़ुशी का माहौल था. क्या खुशनुमा दिन थे वो..भले ही वो लोकेशन और उसके आसपास की आबोहवा कितनी ही तकलीफ देह रही हो.
जैसलरमेर से लौटकर मेरी उससे मुलाकात का दौर जारी रहा...वो तब तक एक बड़ा स्टार बन चुका था....लेकिन वो बेहद संजीदा और दूसरों के लिए नेक दिल था....उसने पीले रंग की नई फोल्क्सवैगन बीटल कार खरीदी थी...उसी कार में वो मुझे सैर के लिए ले जाता था...ये उसकी दरियादिली थी कि वो मुझे उस वक़्त मुंबई के ताज होटल में शहर के एकलौते डिस्को क्लब...में भी चोरीछुपे ले जाता था...वो क्लब का सदस्य था जबकि मेरी हैसियत उस वक़्त ताज के क्लब का सदस्य बनने लायक कतई नहीं थी....उसकी गीतांजलि से शादी, जिसे वो और हम सब प्यार से गिटली बुलाते थे...उसके दोनों बच्चों का जन्म, राहुल और अक्षय...जिन्हे वो 'अमर अकबर एंथोनी' के सेट्स पर अपने साथ अक्सर लाता था.
(साभार अमिताभ बच्चन के ब्लॉग से )